Niti Shastra: ऐसे लोग बनते हैं स्वयं अपने पतन का कारण

Edited By Jyoti,Updated: 09 Jul, 2022 10:38 AM

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चाटुकार अथवा मायावी स्वभाव वाले लोगों की बातों से मनुष्य की आत्मा अपनी सुध-बुध खो बैठती है तथा अपने लाभ-हानि के अंतर को भूल कर न चाहते हुए भी मनुष्य कुमार्ग की गर्त में खो जाता है।

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चाटुकार अथवा मायावी स्वभाव वाले लोगों की बातों से मनुष्य की आत्मा अपनी सुध-बुध खो बैठती है तथा अपने लाभ-हानि के अंतर को भूल कर न चाहते हुए भी मनुष्य कुमार्ग की गर्त में खो जाता है।
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प्राचीन काल में एक देश का राजा बड़ा बुद्धिमान और कुशल शासक था। उसने अपनी राजसभा में उच्च कोटि के विद्वानों तथा धर्म मर्मज्ञों को स्थान दिया हुआ था। प्रतिदिन उन सबसे विभिन्न विषयों पर चर्चा तथा विचार-विमर्श करता रहता था। इस प्रकार वह अपने राज कार्य का न्यायपूर्वक निर्वाह कर रहा था।
एक दिन उसने अपने दरबार में उपस्थित पदाधिकारियों से प्रश्र किया, ‘‘इस संसार में सबसे तेज काटने वाला कौन है?’’

उत्तर में किसी ने बर्र, किसी ने मधुमक्खी, बिच्छु, सर्प आदि को तेज काटने वाला बताया किन्तु राजा उनमें से किसी के भी उत्तर से संतुष्ट नहीं दिखाई दिया।

तब उसने अपने वयोवृद्ध और अनुभवी महामंत्री की ओर देखा जो मौन रह कर सभी विद्वानों के उत्तर सुन रहे थे।
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राजा ने कहा, ‘‘मंत्रीवर आपने कुछ बताया नहीं? आप भी अपना मंतव्य सबके सामने रखें।’’

मंत्री बोले, ‘‘राजन मेरे विचार में तो विषधर जंतुओं की अपेक्षा सर्वाधिक तेज काटने वाले दो प्रकार के मानव होते हैं- ङ्क्षनदक और चाटुकार।’’

मंत्री का उत्तर सुन कर सभा में सन्नाटा छा गया। अपनी तरफ राजा सहित सभी की प्रश्नमय दृष्टि को देख कर अपनी बात को स्पष्ट करते हुए मंत्री जी ने कहा, ‘‘राजन, ईष्र्या और द्वेष आदि के विष से भरा हुआ ङ्क्षनदक, मनुष्य को पीछे से काटता है जिसके प्रभाव से आत्मा तिलमिला उठती है और दूसरा चाटुकार हितैषी बन कर अपनी वाणी में खुशामद का मीठा विष भर कर सम्मुख से ही व्यक्ति के मन में उतरता है।’’

मंत्री ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘परिणामस्वरूप वह व्यक्ति अहंकार से चूर होकर अपने दुर्गुणों को ही गुण मानकर पथभ्रष्ट हो जाता है। वह सत्यासत्य का निर्णय किए बिना ही बुरे कर्म या विकर्म करता हुआ अपनी आत्मा के पतन की ओर बढ़ता चला जाता है।’’
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राजा इस उत्तर से संतुष्ट हो गया। उसे अपने महामंत्री की बुद्धिमता पर गर्व था। —कैलाश ‘मानव’
 

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