Edited By Jyoti,Updated: 03 Dec, 2021 12:06 PM
एक बार एक शिष्य अपने गुरु से किसी कारण नाराज हो गया। इतना उदास हो गया कि वह आश्रम को ही त्याग देना चाहता था। उसके सहपाठी और साथियों ने बहुत समझाया पर वह माना नहीं
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक बार एक शिष्य अपने गुरु से किसी कारण नाराज हो गया। इतना उदास हो गया कि वह आश्रम को ही त्याग देना चाहता था। उसके सहपाठी और साथियों ने बहुत समझाया पर वह माना नहीं और बस चला गया। गुरु से भी नहीं मिला। गुरु ने कहा कि अगर वह जाना चाहता है तो उसे जाने दो, पर उसे कह दो कि रास्ते में पड़ी चीजों को गौर से देखता हुआ जाए।
शिष्य को इस सलाह में कोई बुराई नजर नहीं आई, वह हर चीज को गौर से देखता हुआ आगे बढ़ता रहा। कुछ दूर चलने पर रास्ते में उसने एक गधा देखा। गधा हरी-हरी घास चर रहा था लेकिन वह पूरा झुककर ही घास चर पा रहा था। यह देखकर नाराज शिष्य एकदम ही ठिठक-सा गया। वह पास में बैठ गया, देर तक विचार करता रहा।
तभी उसने सोचा कि सिर्फ पेट भरना हो तो भी पूरा झुकना पड़ता है। मैं तो इस गधे से भी मूर्ख हूं। यह तो बस घास के सामने ही झुका जा रहा है। मैं तो इतने ज्ञानी गुरु जो मेरा जीवन सुनहरा करना चाहते हैं, उनके सामने तक नहीं झुक रहा। ओह, मैं कितना मति भ्रष्ट हूं। यह विचार करता हुआ वह वापस अपने गुरु के पास लौट गया और गुरु से माफी मांगी।