Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Jul, 2024 09:09 AM
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चिंता सर्वव्यापक रोग है। अखिल विश्व चिंता रूपी आग में जल रहा है। किसी को धन कमाने की चिंता है। किसी को संतान न होने की चिंता है, तो कोई संतान के कारण चिंताओं से ग्रस्त है। किसी को कन्या के विवाह की चिंता है तो
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Chinta chita saman hai: चिंता सर्वव्यापक रोग है। अखिल विश्व चिंता रूपी आग में जल रहा है। किसी को धन कमाने की चिंता है। किसी को संतान न होने की चिंता है, तो कोई संतान के कारण चिंताओं से ग्रस्त है। किसी को कन्या के विवाह की चिंता है तो कोई विधवा बहू की चिंता को लेकर दुखी है। व्यापारी व्यापार से, किसान खेती से और विद्यार्थी पढ़ाई से संबंधित चिंताओं से परेशान है। जिन्हें ऊंची पदवियां नहीं मिलतीं वे तो चिंतित हैं ही लेकिन जिन्हें ये पदवियां मिल जाती हैं वे भी अनेक प्रकार की चिंताओं से ग्रस्त हैं। बच्चा-बूढ़ा, औरत-मर्द, अमीर-गरीब, अनपढ़-विद्वान सब चिंता के शिकार हैं।
Chinta tension kaise dur karen: मानव जीवन कांटेदार वृक्ष के पास उगे केले के पौधे के समान है। जिस प्रकार हवा चलने पर केले के पत्ते कांटेदार वृक्ष द्वारा छलनी हो जाते हैं, उसी प्रकार चिंता के झोंके प्रतिदिन मनुष्य को घायल करते हैं। हम चिंता क्यों करते हैं? चिंता के पीछे यह भय छिपा रहता है कि कोई अप्रिय बात न हो जाए-ऐसा न हो जाए, वैसा न हो जाए। यह भय अज्ञानता से जन्म लेता है। अगर मन को यह विश्वास हो जाए कि प्रभु द्वारा बनाए गए संसार में कभी कुछ गलत नहीं हो सकता, तब हम चिंता किस बात की कर सकते हैं? इसी प्रकार अगर मन में यह विश्वास हो जाए कि इस दुनिया में जो कुछ हो रहा है, कर्म और फल के नियम के अनुसार हो रहा है अन्यथा कभी कुछ भी नहीं हो सकता, तब भी हम निश्चित हो जाते हैं। चिंता हमारा कुछ बना या बिगाड़ नहीं सकती।
चिंता दीमक की तरह भीतर ही भीतर मनुष्य को खाती रहती है। चिंता रूपी नागिन ज्ञान और विश्वास के अमृत का नाश करके जीव के भीतर अज्ञानता का विष भर देती है। यह मनुष्य को मानसिक पतन की तरफ ले जाती है।
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इससे मनुष्य की लड़ने की शक्ति नष्ट हो जाती है। चिंताग्रस्त व्यक्ति को परमार्थ में विश्वास रखते हुए साहस, निडरता और दृढ़ता से आगे बढऩे का प्रयत्न करना चाहिए।
ऋषि-मुनि कहते हैं कि चिंता तभी करनी चाहिए जब कोई अनहोनी बात हो सकती हो। परिवर्तन विश्व का सनातन नियम है और यह संयोग और वियोग नियम के अनुसार चल रहा है।
कर्म और फल का नियम अटल है इसलिए चिंता में डूबे रहने की बजाय हर प्रकार की स्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए।
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