मिनी कुतुब मीनार से प्रसिद्ध ये मीनार, दिल्ली सल्तनत की सीमा की निगरानी के लिए किया जाता था इसका इस्तेमाल

Edited By Prachi Sharma,Updated: 31 Aug, 2024 10:28 AM

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ग्रेटर नोएडा के गुलिस्तानपुर गांव में एक गरगज की मीनार है। आज भी वह पूरे वैभव के साथ खड़ी हुई है। ऐतिहासिक धरोहर गरगज की मीनार लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। जिले के लोग इसे मिनी कुतुब मीनार

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ग्रेटर नोएडा के गुलिस्तानपुर गांव में एक गरगज की मीनार है। आज भी वह पूरे वैभव के साथ खड़ी हुई है। ऐतिहासिक धरोहर गरगज की मीनार लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। जिले के लोग इसे मिनी कुतुब मीनार के नाम से जानते भी हैं। मुगलकाल में बनी 60 फुट की इस मीनार की दो मंजिलें टूट कर गिर चुकी हैं। अब इसकी ऊंचाई 40 फुट रह गई है।

लखौरी ईंटों से बने गरगज के अंदर ऊपर जाने के लिए लोहे की सीढ़ियां थीं। मार्गदर्शक चिह्न के रूप में होता था उपयोग कभी रास्ता और समय जानने के लिए इस मीनार का उपयोग किया जाता था। इस मीनार के अंदर सीढ़ियां भी अब टूट चुकी हैं। हालांकि, इसकी नींव काफी गहरी और मजबूत है। इसे नीचे से चौड़ा और ऊपर से संकुचित बनाया गया। इसके निर्माण में लखौरी ईटों के साथ चूना का भी इस्तेमाल किया गया था। आमने-सामने खुले गेट हैं और ऊपर से नीचे तक तीन-तीन झरोखे भी हैं। गरगज के अंदर अब पत्थर की सीढ़ियों के निशान मात्र शेष रह गए हैं।

इलाके के एक बुजुर्ग रामपाल का कहना है कि मीनार को मुगल सल्तनत के वक्त का बताया जाता है। लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसे देखते आ रहे हैं। माना जाता है कि दिल्ली सल्तनत की सीमा की निगरानी रखने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा बाढ़ और सूखे की स्थिति को देखकर इस पर चढ़कर लोगों को चेतावनी दी जाती थी। अंग्रेजों के समय में इसका उपयोग दूरबीन द्वारा इलाके के सर्वेक्षण करने के लिए किया गया।

हालांकि, कुछ जानकारों ने इसे वाचिंग टावर की संज्ञा देकर परिभाषित किया था। कहा जाता है कि मुगलों की सेना आगरा से दिल्ली की ओर रवाना होती थी, तो इस पर चढ़कर रास्ते में पड़ने वाले किसी भी अवरोध की जानकारी हासिल की जाती थी। खो रही है पहचान सूरजपुर कस्बा के पास गुलिस्तानपुर गांव में स्थित गरगज की मीनार समय के साथ-साथ अपनी ऊंचाई और पहचान भी खोती जा रही है।

देख-रेख न होने की वजह से धीरे-धीरे यह मीनार अब खंडहर के रूप में तब्दील हो चुकी है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसका काफी महत्व है।प्राचीन काल की अनेक धरोहरों को विकसित करने की घोषणाएं भी हुईं लेकिन अभी तक काम ही शुरू नहीं हुआ है। हालांकि, यह प्राचीन धरोहर जिला प्रशासन के रिकॉर्ड में दर्ज है। 
 

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