mahakumb

नर को नारायण बनाता है ओंकार प्राणायाम

Edited By ,Updated: 16 Nov, 2016 02:04 PM

omkar pranayama

योगाभ्यास में ओम के उच्चारण का अनन्य महत्व है। इसमें ओंकार का उच्चारण सुनना व बोलना दोनों का अंतर्भाव होता है। इसका लाभ उसे ही मिलता है जो स्वयं इसका अनुभव लेता है। ओंकार

योगाभ्यास में ओम के उच्चारण का अनन्य महत्व है। इसमें ओंकार का उच्चारण सुनना व बोलना दोनों का अंतर्भाव होता है। इसका लाभ उसे ही मिलता है जो स्वयं इसका अनुभव लेता है। ओंकार प्राणायाम का अधिक लाभ सामूहिक रीति से एक लय व सुरताल में करने से होता है।


ओंकार प्राणायाम को ओंकार साधना/प्रणव साधना/प्रणवोच्चार कहते हैं। इस प्राणायाम के द्वारा सर्वशक्तिमान परमात्मा को संबोधित करते हैं। ओंकार ही उस परमात्मा का प्रतीक हो सकता है। ओम शब्द साढ़े तीन (३½) मात्रा का एकाक्षर है, यह नाम वैज्ञानिक दृष्टि से परिपूर्ण व सिद्ध है।


अकार-1 मात्रा-कंठमूल से उत्पत्ति-ब्रह्म-उत्पत्ति।
ऊकार-1 मात्रा-होंठों से उत्पत्ति-विष्णु-स्थिति।
मकार-1 मात्रा-बंद होंठों से उत्पत्ति-शिव-लय।
हलंत-1/2 मात्रा।


ओंकार सभी अक्षरों को व्याप्त करता है। जैसे सारी सृष्टि का प्रतिनिधित्व परमात्मा करता है वैसे ही सारे अक्षरों का प्रतिनिधित्व ओंकार करता है।


ओंकार प्राणायाम कैसे करें?
यह प्राणायाम किसी एकांत जगह पर करें। स्थान का बार-बार बदलाव न करें। पद्मासन या सुखासन में बैठे जिसमें सिर, गर्दन, पीठ, कमर सीधी एक रेखा में रहे। शांति से आंखें बंद का अवयव ध्यान कर सारी इंद्रियां अपने स्थान पर सजग हैं, इसका ध्यान रखें। सहज रीति से 2-3 बार लम्बी सांस लें व शीघ्रता से श्वास छोड़ दें। इसे ही दीर्घ श्वसन कहते हैं। ऐसे 3-4 बार दीर्घ श्वसन करने के बाद यथासंभव लम्बा श्वास लें। श्वास को बिना रोके, मुंह खोल कर कंठ से स्पंदन हो, ऐसा ओंकार का उच्चारण करें।
इस ओंकार उच्चारण की अनुभूति स्वयं ही करें। शुरूआत में बराबर व दीर्घ ओंकार उच्चारण नहीं होता पर धीरे-धीरे अभ्यास से दीर्घ उच्चारण होने लगता है। ओंकार के उच्चारण से एक दीर्घ कंपन उत्पन्न होता है, जो नाभि चक्र, मुख गुहा, कान के पास व सहस्राधार से होकर पूरे शरीर में अनुभव होता है। शारीरिक लाभ की दृष्टि से कंपन जरूरी है। यह ओंकार की साधना जब तक साधक को  आनंद दे, तब तक वह करे।

 

लाभ : ओंकार प्राणायाम से साधक को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक लाभ होता है।

 

* शरीर का सबसे छोटा हिस्सा ऊतकों को नवनिर्मित करने का कार्य ओंकार प्राणायाम करता है। ओंकार से प्रत्येक  ऊतक चैतन्य से परिपूर्ण हो जाती है, इससे चेतना की जागृति होती है।

* शरीर की आंतरिक इंद्रियों की सफाई होती है।

* सूक्ष्म मल दूर होता है।

* शरीर स्वस्थ, सुंदर व पवित्र बनता है।

* कंठनाली में स्वरतंतु की ट्यूनिंग होती है।

* फुफ्फुस की कार्यक्षमता बढ़ती है।

* श्वसन विकार दूर होते हैं।

* रक्तशुद्धि होती है।

* हृदय को विश्राम मिलता है।

* मज्जा संस्थान सक्रिय होता है।

* पाचन क्रिया व उत्सर्जक क्रिया सुधरती है।

* मन के मल, मोह, अहंकार, मद से छुटकारा मिलता है।

* मन शांत, प्रसन्न रहता है।

* मन की  आकलन शक्ति बढ़ती है।

* मन रिक्त, स्वच्छ, पवित्र व हल्कापन महसूस करता है। इतना ही नहीं, एक मंगलमय वातावरण निर्मित होता है।

* हमारे दैनंदिन व्यवहार में आने वाले तनाव के कारण आने वाली निराशा, उदासी व अशांति ओंकार के स्पष्ट व दीर्घ उच्चारण से नष्ट होती है। ओंकार के नियमित उच्चारण से रक्तदान, दमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।

* अत: स्रावी संस्थान चुस्त होता है।

* नर को नारायण बनाने की क्रिया ओंकार प्राणायाम में है।

* बुद्धि तीव्र, निर्णायक क्षमता व स्मरण शक्ति बढ़ती है।

 

* शरीर, मन व बुद्धि को स्वस्थ रखने वाला अष्टांगों का सार ओंकार है। ओंकार से अष्टांग योग का भी पालन हो जाता है। जिस प्रकार मन पर उत्तम संस्कार होने के लिए जप, तप, कीर्तन, भजन आदि कर्म साधन प्रचलित हैं, उसी प्रकार ध्यान की कल्पना करें तो ओंकार एक साधना प्रतीत होती है किन्तु इसका नियमित अभ्यास आवश्यक है। अत: ऊषा काल में, ब्रह्म मुहूर्त में किसी रम्य स्थान में जाकर सूर्योदय के समय प्रसन्नचित्त बैठ कर यदि ओंकार का नियमित अभ्यास किया जाए तो यह उच्चारण सुमधुर, हृदय को प्रसन्न करने वाला होता है।


अत: प्रत्येक योग प्रेमी को नियमित रूप से श्रद्धा भाव से ओंकार का उच्चारण करना चाहिए।    

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!