Edited By Jyoti,Updated: 30 Oct, 2018 03:14 PM
हम में से बहुत से एेसे लोग होते हैं जो हमेशा भगवान को किसी न किसी स्वार्थ के चलते ही याद करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एेसा क्यों होता है।
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हम में से बहुत से एेसे लोग होते हैं जो हमेशा भगवान को किसी न किसी स्वार्थ के चलते ही याद करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एेसा क्यों होता है। आखिर क्यों व्यक्ति को दुख या किसी परेशानी में ही ईश्वर और धर्म की याद आती है। तो आइए आपको आपके इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं। आपको बता दें कि जब इंसान की खुद के प्रति आस्था खत्म हो जाती है या कहें कि उसे अपने अस्तित्व के प्रति विश्वास नहीं होता, तब उसके पास भगवान का द्वार ही शेष रह जाता है। इसी दुख पीड़ा के चलते उसका भगवान की तरफ़ झुकाव बढ़ने लगता है।
कहने का भाव है कि जब व्यक्ति महसूस करता है कि उसका तिरस्कार हो रहा है, सब मिलकर उसको सता रहे हैं, वह बूढ़ा और शिथिल हो गया है, व्याकुलता बढ़ गई है, मन बेचैन है, तब उसे भगवान की याद आती है, धर्म की बात याद आ जाती है।
श्रीमद्भगवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- इस ब्रह्मांड में केवल ‘चार प्रकार के व्यक्ति मेरी भक्ति करते हैं- ‘दुःखी, जिज्ञासु, ज्ञानी और आकांक्षी। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तब मेरी भक्ति करता है। मतलब जब तक उसे किसी प्रकार का दुख दर्द नहीं होता वह मेरी भक्ति तो क्या मुझे कभी याद तक नहीं करता।
दूसरे जिनके मन में सत्य के साक्षात्कार की तड़प होती है, जो जिज्ञासु होते हैं। यानि जिनके मन में भगवान को साक्षात देखने की इच्छा होती है। इसी भाव के चलते वो मेरी भक्ति करते हैं।
तीसरे प्रकार के व्यक्ति जो ज्ञानी होते हैं, वे मुझे याद करते हैं।
चौथे वे होते हैं जिनके मन में पदार्थ की आकांक्षा उभर आती है। वे उसकी पूर्ति के लिए भगवान को याद करते हैं। मतलब जिन लोगों का किसी चोज़ को पाने की ख्वाहिश होती है वो इसी भाव से भगवान को हर समय याद करते रहते हैं।
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