Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jul, 2023 11:12 AM
संगीतकार मार्तंड पंडित ओंमकारनाथ ठाकुर की प्रसिद्धि चारों ओर फैल रही थी। कोई भी व्यक्ति उनके संपर्क में आने के बाद उनके संगीत की सराहना किए बिना
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Pandit Omkarnath Thakur story: संगीतकार मार्तंड पंडित ओंमकारनाथ ठाकुर की प्रसिद्धि चारों ओर फैल रही थी। कोई भी व्यक्ति उनके संपर्क में आने के बाद उनके संगीत की सराहना किए बिना नहीं रह पाता था। वह अपनी कला का पूरा सम्मान करते थे और दिन-रात कड़ी मेहनत करते। वह विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शिष्य थे जो ग्वालियर घराने से संबंध रखते थे। पंडित जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के म्यूजिक फैकल्टी के प्रथम डीन भी बने थे। 1933 में वह इंग्लैंड गए। वहां उन्होंने कार्यक्रम प्रस्तुत किया तो उनके संगीत की धूम मच गई। लोग उनकी कला के कायल होने लगे।
उनके एक अंग्रेज प्रशंसक ने उनसे कहा कि आपका संगीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है, क्यों न आप अपनी इस कला को विश्व में चारों ओर बिखेर दें। प्रसिद्धि पाने के लिए यदि आप इस बार जॉर्ज पंचम को पत्र लिखकर अपने संगीत कार्यक्रम में उपस्थित होने की प्रार्थना करेंगे तो वह अवश्य आएंगे।
आपका कार्यक्रम तो सफल होगा ही जॉर्ज पंचम आपके संगीत से प्रसन्न होकर आपको रायबहादुर की उपाधि दे देंगे। यह बात सुनकर ओंकारनाथ बोले, क्या आप मुझे चाटुकार समझते हैं कि मैं प्रशंसा और पदवी पाने के लिए जॉर्ज पंचम के दरबार में अर्जी लगाऊंगा। मैं संगीत की साधना सरस्वती की उपासना के रूप में करता हूं। विदेशी शासन की पदवी या पुरस्कार की मेरे मन में कभी चाह नहीं रही। सच्चा कलाकार वही है, जो पुरस्कार या प्रसिद्धि की चाह नहीं रखता हो।