राहु-केतु-शनि एवं मंगल की वक्रदृष्टि से मुक्ति दिलवाता है तोता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 02:31 PM

parrot gives relief from curvature of rahu ketu saturn and mars

पद्मपुराण में वर्णन आया है कि जिस घर में तोता पाला जाता है और उसका नाम भगवान के नाम पर रखा जाता है तो उस घर में राहु, केतु, शनि एवं मंगल की वक्रदृष्टि नहीं पड़ती तथा उस घर में यमराज का प्रवेश भी अत्यावश्यक होने पर ही होता है अर्थात उस घर में ‘अकाल...

पद्मपुराण में वर्णन आया है कि जिस घर में तोता पाला जाता है और उसका नाम भगवान के नाम पर रखा जाता है तो उस घर में राहु, केतु, शनि एवं मंगल की वक्रदृष्टि नहीं पड़ती तथा उस घर में यमराज का प्रवेश भी अत्यावश्यक होने पर ही होता है अर्थात उस घर में ‘अकाल मृत्यु’  की संभावना नहीं होती। तोता पालने से सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है।


‘‘शुकोपालयेत् यत्नम्, ईश्वरोनाम प्राधृत: तस्यागृहे न प्रविशन्ति, राहू-केतुश्चमृत्यव:।।’’


‘शुकोपाख्यानम्’ ग्रंथ के अनुसार  एक ब्राह्मण ने शौकवश एक तोता खरीदा। तोता जिस दिन खरीदा गया वह दिन ‘नरक निवारण चतुर्दशी’ का  था। जब ब्राह्मण देव उस शुक (तोता) को लेकर अपने घर पहुंचे तो ब्राह्मणी ने उसे देखते ही उसका नाम ‘सीताराम’ रख दिया। परिवार के सभी सदस्य ‘सीताराम’ को पाकर खुश थे।


‘सीताराम’ बहुत ही छोटा था इसीलिए उसे सुविधायुक्त पिंजरे में रखा गया। दो-तीन दिनों के अंदर ही ‘सीताराम’ परिवार के सभी सदस्यों से घुल-मिल गया और पिंजरे के अंदर अपने करतबों को दिखाने लगा।


दस दिनों तक ‘सीताराम’ बहुत ही प्रसन्नावस्था में रहा किंतु ग्यारहवें दिन से वह सुस्त रहने लगा। वह रहस्यमयी नजरों से परिवार के सभी सदस्यों को देखता रहता था। तेरहवें दिन दोपहर में वह परिवार के सभी सदस्यों के साथ पूजागृह में अपने पिंजरे में था।


उसने अपने मुंह से एक विचित्र-सी आवाज निकाली। ब्राह्मण के द्वितीय-पुत्र ने पिंजरा खोल दिया। ‘सीताराम’ पिंजरे के मुंह पर आकर बैठ गया। उसने ब्राह्मण-परिवार के सभी सदस्यों को एक नजर डालकर देखा और पुन: पिंजरे के अंदर जाकर गिर पड़ा। ब्राह्मण पुत्रों, पुत्री एवं ब्रह्माणी ने ‘सीताराम’ को हाथ से बाहर निकाला।


गंगाजल को मुंह में डाला और देव-प्रतिमा के समक्ष रख दिया। देवालय में स्थित सभी देवी-देवताओं के चरण स्पर्श करने के उपरांत ‘सीताराम’ ने अपना दम तोड़ दिया। शोकाकुल परिवार ने उचित स्थान पर श्री माधव द्वादशी के दिन उसकी समाधि बना दी।


‘शुकोपाख्यानम्’ के अनुसार उस ब्राह्मण परिवार पर राहु-केतु की वक्र दृष्टि थी जिससे बहुत बड़ा अनिष्ट हो सकता था किंतु उस ब्राह्मण परिवार के अनिष्ट को अपने ऊपर लेकर शुक सीताराम ने अपने प्राण का त्याग कर दिया। इस प्रकार तोते के बलिदान से उस परिवार का अनिष्ट समाप्त हो गया-

‘‘सीतारामो शुक: एक:, ब्राह्मणकुल समागमेत्। त्रयोदशावधिकालेन, महानिष्टां शान्तयेत्।।’’


उपरोक्त आख्यान से यही पता चलता है कि ब्राह्मण ने उस तोते को शौकिया खरीदा था किंतु ब्राह्मणी ने भी संयोगवश ही उसका नाम ‘सीताराम’ रख दिया था। उस तोते ने उस परिवार पर आने वाले महासंकट को अपने ऊपर ले लिया तथा मात्र तेरह दिनों की सेवा एवं ममत्व के कारणों से उसने उस परिवार के लिए अपना ‘आत्मोत्सर्ग’ कर दिया।


ब्राह्मण परिवार को जब महात्मा द्वारा ‘सीताराम’ के ‘आत्मोत्सर्ग’ की बात ज्ञात हुई तो उस परिवार ने पुन: एक तोते को एक व्याध से खरीदा और उसका नाम भी ‘सीताराम’ ही रख दिया। दूसरे तोते ने चिरकाल तक ब्राह्मण परिवार में रहकर सुख-सुविधा के साथ ही स्नेह को प्राप्त किया। ब्राह्मण-परिवार भी ‘सीताराम’ की कृपा से सुख-सौभाग्य को प्राप्त कर ऐश्वर्यवान बन गया।


पशु-पक्षियों को पालना, उन्हें स्नेह देना, ममत्व के साथ उन्हें भोजन एवं दानों को देते रहने से सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है।  उनका नाम अगर ईश्वर के नाम पर रखा जाता है तो न चाहते हुए भी ईश्वर के नाम का उच्चारण होता रहता है तथा परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। अगर आपने भी तोता पाल रखा है तो उसका नाम ‘सीताराम’ ही रख दीजिए।

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