Edited By Jyoti,Updated: 07 May, 2019 04:49 PM
![parshurameshwar pura mahadev temple](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2019_5image_16_45_292312150temple-ll.jpg)
जैसे कि सब जानते हैं कि आज परशुराम जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन इनकी पूजा करना बहुत लाभदायक होता है।
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जैसे कि सब जानते हैं कि आज परशुराम जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन इनकी पूजा करना बहुत लाभदायक होता है। तो चलिए इस खास मौके पर आपको बताते हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसका इतिहास इनके साथ जुड़ा हुआ है। मान्यता है इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाने से जातक की हर मनोकामना पूरी होती है।
![PunjabKesari, Parshurameshwar Pura Mahadev Temple, Parshuram Jayanti, Dharmik Sthal](https://static.punjabkesari.in/multimedia/16_47_4711961501.jpg)
यहां जानें मंदिर के बारे में-
उत्तरप्रदेश के बागपत के पुरा गांव में परशुरामेश्वर मंदिर नामक मंदिर स्थापित है। ये मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मान्यताओं के अनुसार यहां जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह ज़रूर पूरी होती है। ये मंदिर बहुत ही पवित्र स्थल माना जाता है। वो इसलिए क्योंकि कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान परशुराम ने भगवान शिव की आराधना की थी। बता दें यहां साल में दो बार कांवड़ मेला लगता है जिसमें 20 लाख से अधिक श्रद्धालु कांवड़ लाकर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करते हैं।
मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार जहां पर परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है काफ़ी पहले यहां पर कजरी वन हुआ करता था। जहां जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी से जल भर कर लाती थीं औ वह जल शिव को अर्पण करती थीं। बता दें कि हिंडन नदी को पुराणों में पंचतीर्थी कहा गया है। ये नदी हरनन्दी नदी के नाम से भी भी विख्यात है।
![PunjabKesari, Parshurameshwar Pura Mahadev Temple, Parshuram Jayanti, Dharmik Sthal](https://static.punjabkesari.in/multimedia/16_48_1232921503.jpg)
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार भगवान परशुराम की तपोस्थली और वहां स्थापित शिवलिंग खंडहरों में तब्दील हो गया था। जिसके बाद पुनः लंढौरा की रानी ने इस मंदिर का निर्माण ने करवाया था।
किवदंतियों के अनुसार एक बार रुड़की स्थित कस्बा लंढौरा की रानी अपने लाव-लश्कर के साथ यहां से गुजर रही थीं, तो उनका हाथी इस स्थान पर आकर रुक गया। महावत की तमाम कोशिशों के बावजूद हाथी एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा। जिज्ञासावश रानी ने नौकरों से यहां खुदाई कराई तो वहां शिवलिंग के प्रकट होने पर आश्चर्य चकित रह गईं। इन्हीं रानी ने यहां पर एक शिव मंदिर का निर्माण कराया, जहां वर्तमान में हर साल लाखों श्रद्वालु हरिद्वार से पैदल गंगाजल लाकर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो इस सिद्ध स्थान पर श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करता है उसकी सभी इच्छायें पूर्ण हो जाती हैं।
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