इस मंदिर में हलवे का नहीं माता तो लगता है ये अद्भुत भोग!

Edited By Jyoti,Updated: 12 Mar, 2022 05:53 PM

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हिंदू धर्म में देवताओं के साथ देवियों की पूजा भी की जाती है। शास्त्रों के अनुसार सभी देवियों में से देवी सरस्वती, लक्ष्मी और मां काली इन तीनों देवियों को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आज की जानकारी में हम आपको बताएंगे।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में देवताओं के साथ देवियों की पूजा भी की जाती है। शास्त्रों के अनुसार सभी देवियों में से देवी सरस्वती, लक्ष्मी और मां काली इन तीनों देवियों को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आज की जानकारी में हम आपको बताएंगे। ऐसे पौराणिक मां काली के मंदिर के बारे में। जो कि पंजाब स्थित पटियाला शहर में हैं। बात करेंगे इस मंदिर से जुड़े इतिहास की और कुछ अनसुने रहस्यों की।  
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पटियाला श्री काली देवी मंदिर का इतिहास-
पटियाला का यह मंदिर तकरीबन 200 साल पुराना है। मान्यता है कि इस मंदिर में प्रवेश करने मात्र ही भक्तों के दुखों का नाश होना शुरू हो जाता है। यहां केवल पटियाला या पंजाब से लोग ही नहीं आते बल्कि देश-विदेश से भी यहां भक्तजन माता के दर्शन करने को आते हैं। इसके अलावा भक्तों का कहना है कि सच्चे दिल से प्रार्थना करने से यहां साक्षात देवी भगवती के दर्शन होते हैं। गौर करने वाली ये बात है कि यहां स्थित मां काली की मूर्ति कोलकाता से लाई गई है।
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कहा जाता है कि इस मंदिर का नींव पत्थर पटियाला के 8वें महाराजा भूपिंदर सिंह ने रखा था लेकिन, इसका पूर्ण रूप से निर्माण महाराजा कर्म सिंह ने करवाया था। इस मंदिर परिसर की एक और विशेषता है कि इस मंदिर के बीच में काली मंदिर से भी पुराना राज राजेश्वरी मंदिर भी स्थित है। मंदिर के निर्माण दौरान देवी मां का मूर्ति का मुख शहर के बाहर की तरफ यानी बारादरी गार्डन की तरफ रखा था। उस समय वहां शहरी लोगों का वास इतना नहीं था लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी और लोग उस तरफ जाकर रहने लगे तो देवी मां की नजरों के तेज का प्रभाव उन पर न पड़े। इसलिए मंदिर में दीवार बना दी गई।रोजाना सुबह देवी मां को स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार किया जाता है। यही नहीं मंदिर में पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना भी की जाती है।
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देवी मां का खास भोग-
कहते हैं कि अन्य देवियों की तरह मां काली को हलवे का भोग नहीं लगाया जाता है। मां दुर्गा का विकराल रूप कहलाई जाने वाली मां काली को शराब, बकरे, काली मुर्गी का भोग लगाया जाता है। क्योंकि हमारे शास्त्रों में देवी का प्रिय भोग मांस-मदिरा को बताया गया है। लेकिन कई भक्तजन मां को मीठे पान का बीड़ा भी चढ़ाते हैं और नारियल का भोग भी लगाते हैं। कहा जाता है देवी ने दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है। इसके अलावा शत्रुओं का भी नाश हो जाता है। ज्योतिषों अनुसार मां काली का पूजन करने से जन्मयकुंडली में बैठे राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं। 
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श्री काली देवी जी का मंदिर बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बस स्टैंड या  रेलवे स्टेशन से पैदल चलकर जाएं तो केवल 10 मिनट में पहुंचा जा सकता है। अगर रिक्शा और दो पहिया वाहन से जाने में मात्र 5 मिनट मंदिर परिसर पहुंचाया जा सकता है।
 

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