Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Sep, 2024 07:41 AM
हमारी संस्कृति को दर्शाता एक दोहा है- ‘क्षमा बढ़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। क्या विष्णु को घट गयो, भृगु जो मारी लात।’
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हमारी संस्कृति को दर्शाता एक दोहा है- ‘क्षमा बढ़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। क्या विष्णु को घट गयो, भृगु जो मारी लात।’
क्षमा कायरता नहीं, बड़प्पन है। उत्पात कायरता है क्योंकि उत्पाती व्यक्ति अपने अन्तर में उठने वाले बैर, क्रोध एवं अहंकार आदि शत्रुओं के समक्ष अपने घुटने टेक चुका होता है। आत्म विजेता कभी उत्पात नहीं कर सकता, अहंकारी व क्रोधी किसी को माफ नहीं कर सकता। क्षमाभाव आत्म विजय का प्रतीक है। शिशुपाल की सौ गलतियों को श्री कृष्ण ने क्षमा कर दिया। ईसा मसीह ने कहा हे प्रभु उन लोगों को क्षमा कर देना, जिन्होंने मुझे क्रॉस पर लटकाया है। प्रभु राम ने कैकयी के अपराध को उदारता से माफ कर दिया। भगवान महावीर स्वामी ने गोशालक की शरारतों को समता से सहा व उसे क्षमा देकर प्रभुत्व का परिचय दिया। स्वामी दयानंद ने जहर देने वाले के प्रति भी मन में वैर-भाव का जहर पैदा नहीं होने दिया। ऐसे एक-दो नहीं अनेक उदाहरण मिल जाएंगे।
क्षमा की उपयोगिता को सभी महापुरुषों ने स्वीकारा है, किन्तु महावीर स्वामी ने इसे और ज्यादा महिमा-मण्डित किया है। जैन धर्म का सर्वप्रमुख पर्व सम्वत्सरी महापर्व है, जिसे क्षमापर्व भी कहा गया है क्योंकि इस दिन का संदेश है कि जिस किसी भी व्यक्ति के प्रति मन में वैर-विरोध है, उससे क्षमायाचना करके अपना व दूसरे का बोझ उतार दें।
नफरत का तेजाब हमारे ही शरीर व दिमाग में रहकर हमें ही सड़ाता रहता है, सताता है। इसीलिए जब हम किसी को माफ करते हैं, तो वास्तव में खुद को ही माफ करते हैं क्योंकि इस तरह हमारे दिमाग से दुर्विचारों का बोझ उतरता है व हमें शांति की प्राप्ति होती है।
आम आदमी की क्या औकात है, दुश्मन तो भगवान को भी नहीं छोड़ते। गोशालक खुद को भगवान के बराबर साबित करने की जिद पर अड़ा था, किन्तु भगवान महावीर स्वामी सहज रहे। भगवान तो वीतराग थे, गोशालक को भगवान महावीर स्वामी का चुप रहना भी बर्दाश्त न हो सका, अत: उसने तेजोलेश्या की अग्नि से भगवान के दो शिष्य भस्म कर डाले।
भगवान ने तब भी समताधर्म नहीं छोड़ा, गोशालक को क्षमा ही किया। इस क्षमा ने गोशालक की आत्मा को झकझोर दिया। यही वजह है कि मरते वक्त गोशालक अपने शिष्यों को कहकर गया कि मैं गलत था, प्रभु सही थे। युद्ध धरती को स्वर्ग नहीं बना सकते। क्षमा के फूल खिलते रहेंगे तो धरती सुरक्षित व सुरभित होती रहेगी।
संवत्सरी महापर्व/क्षमापर्व के उपलक्ष्य में सभी जैन साधु-साध्वियां तथा इनके लाखों अनुयायी लगभग 36 घंटे का निर्जल उपवास करते हैं। तप, त्याग व क्षमा का यह संदेश विश्वव्यापी बने, इस पर्व की शिक्षा रूप आत्मा एकदिवसीय न रह कर, हर आत्मा में शाश्वतरूप से समा जाए, यही मंगल भावना है।