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Phulera Dooj: प्रेम और रंगों की गहरी भावनाओं का प्रतीक कैसे बना फुलेरा दूज, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Feb, 2025 08:19 AM

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Phulera Dooj Katha 2025: फुलेरा दूज की कथा में विशेष रूप से राधा और कृष्ण के प्रेम और उनके आपसी रिश्ते के गहरे भावनात्मक पहलुओं को समर्पित किया जाता है। इस कथा के माध्यम से यह बताया जाता है कि यह दिन कैसे विशेष रूप से कृष्ण और राधा के प्रेम के रंगों...

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Phulera Dooj Katha 2025: फुलेरा दूज की कथा में विशेष रूप से राधा और कृष्ण के प्रेम और उनके आपसी रिश्ते के गहरे भावनात्मक पहलुओं को समर्पित किया जाता है। इस कथा के माध्यम से यह बताया जाता है कि यह दिन कैसे विशेष रूप से कृष्ण और राधा के प्रेम के रंगों के साथ जुड़ा हुआ है। फुलैरा दूज की यह कथा केवल कृष्ण और राधा के रंगीन प्रेम को ही नहीं दर्शाती, बल्कि यह जीवन में प्रेम और रंगों की गहरी भावनाओं का प्रतीक भी है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य केवल रंगों में रंगना नहीं, बल्कि अपने भीतर और बाहर प्रेम की विविधताओं को महसूस करना है।

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Phulera Dooj katha फुलेरा दूज कथा: कथाओं के अनुसार किसी कारणवश लंबे समय तक श्रीकृष्ण राधा जी से मिलने नहीं जा पाए। ये देख राधारानी का मन काफी दुखी हुआ और उनके साथ गोपियां भी परेशान होने लगी। इस उदासी को देखकर सारे ब्रज के वन सूखे पड़ने लगे। 

वनों की स्थिति को देखकर जब श्रीकृष्ण को पता चला कि ऐसा राधारानी के उनके प्रति विरह के कारण हो रहा है, तब वह राधा जी से मिलने गए। कृष्ण को देखकर राधा रानी खुश हो गई और चारों तरफ फिर से हरियाली छा गई।

तब श्रीकृष्ण ने फूलों को तोड़ा और राधा जी पर बरसाने लगे। राधारानी ने भी उन पर फूलों को बौझार कर दी। ये देखकर सारे गोप-गोपियां भी एक-दूसरे पर फूल फेंकने लगे। चारों दिशाओं में खुशियों और उमंगों की बहारें छा गई। तभी से मथुरा में फूलों से होली खेली जाने लगी।

फुलेरा दूज के दिन ब्रज भूमी और उसके आस-पास के सभी मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है और फूलों की होली खेली जाती है। देश-विदेश से लोग इस मनमोहक होली के रंगों में रंगने आते हैं। यहां की छटा का आनंद ही निराला होता है।

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फुलेरा दूज की एक अद्भुत कथा:
कई वर्षों पहले वृंदावन में एक सुंदर दिन जब वसंत ऋतु का आगमन हो रहा था, कृष्ण अपनी गोपियों के साथ खेल रहे थे। इसी दौरान कृष्ण ने एक विशेष मनोवृत्ति के साथ एक और रहस्यमयी कार्य किया। उन्होंने अपनी सबसे प्रिय राधा को इस दिन विशेष रूप से रंगों से सजाया। यह रंग सिर्फ बाहरी रूप में नहीं थे, बल्कि यह कृष्ण के प्रेम और भावनाओं का प्रतीक थे, जो उन्होंने राधा के लिए महसूस किए थे।

कृष्ण ने राधा से कहा, “तुम मेरी आत्मा हो और मैं तुम्हारे रंगों में रंगकर तुम्हारे करीब आना चाहता हूं।”

इस भावनात्मक वचन से राधा का दिल भर गया और उन्होंने कृष्ण के प्रेम को अपने जीवन में हर रूप में स्वीकार किया। तभी कृष्ण ने राधा को सभी रंगों से रंगने का प्रस्ताव दिया, यह रंग उनके प्रेम की विविधताओं और गहराई का प्रतीक बने।

फुलेरा दूज का दिन विशेष रूप से कृष्ण और राधा के प्रेम को बयां करने वाला दिन बन गया, जब इस दिन हर रंग ने कृष्ण और राधा के रिश्ते के विविध रूपों को दर्शाया। इस दिन के जरिए प्रेम, समर्पण और विश्वास के उन रंगों का उत्सव मनाया गया, जो इस प्रेममय ब्रह्मांड में अभूतपूर्व हैं। कृष्ण ने राधा को अपने प्यार के हरे, गुलाबी, पीले, लाल, नीले और सफेद रंग से रंगा, जो जीवन की विविधता और सुंदरता को दर्शाते थे।
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कृष्ण का राधा को रंगने का अद्भुत उद्देश्य:
एक और गहरी कथा जो फुलैरा दूज से जुड़ी है, वह है कृष्ण का राधा को रंगने का उद्देश्य। कृष्ण ने राधा को रंगने के दौरान यह संदेश दिया कि जीवन में प्रेम और रंग दोनों मिलकर एक सुंदर समन्वय बनाते हैं। यह प्रेम और भक्ति का रंगीन मिलन था, जो उस समय के पारंपरिक रंगों से अधिक गहरी भावना को व्यक्त करता था।

राधा ने जब कृष्ण से रंग लिया तो उन्होंने महसूस किया कि यह रंग केवल बाहरी नहीं, बल्कि अंदर की भावनाओं का उत्सव है। यह एक ऐसी भावना का प्रतीक था, जिसे शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता था। इस दिन को प्रेम के रंगों के रूप में मनाने का उद्देश्य यही था कि जीवन के हर क्षण को प्रेम से भरा जाए और प्रेम की हर एक भावना को खुलकर व्यक्त किया जाए।

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राधा और कृष्ण का विशेष मिलन:
इस कथा में कृष्ण और राधा का मिलन केवल एक सामान्य प्रेम मिलन नहीं था, बल्कि यह आध्यात्मिक एकता का प्रतीक था। कृष्ण के रंगों में राधा का रंग और राधा के रंगों में कृष्ण का रंग, दोनों एक दूसरे में समाहित हो जाते हैं। इस दिन को मनाने के पीछे प्रेम, समर्पण और आस्था की एकता का संदेश था, जिसे आगे चलकर होली के रूप में विस्तार मिला।

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संदेश:
फुलैरा दूज की कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक रंग है, जो हमें एक दूसरे से जोड़ता है। कृष्ण और राधा का प्रेम हमें यह समझाता है कि जीवन में विविधता और रंगों के बावजूद, असली प्रेम वही है जो हम दिल से महसूस करते हैं और जिसे बिना शर्त के अपनाते हैं। यह कथा न केवल राधा और कृष्ण के प्रेम को उजागर करती है, बल्कि जीवन में प्रेम के रंगों को आत्मसात करने का संदेश भी देती है।

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