Edited By Jyoti,Updated: 03 Sep, 2020 04:40 PM
01 सितंबर से इस साल का पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है, जो इसी मास की 17 तारीख यानि सर्वपितृ अमावस्या के दिन समाप्त हो जाएगा। शास्त्रों में ये पूरा पक्ष केवल पूर्वजों को प्रसन्न करने का होता है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
01 सितंबर से इस साल का पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है, जो इसी मास की 17 तारीख यानि सर्वपितृ अमावस्या के दिन समाप्त हो जाएगा। शास्त्रों में ये पूरा पक्ष केवल पूर्वजों को प्रसन्न करने का होता है। सनातन धर्म की मानें तो इससे संबंध रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने पितरों का तर्पण करना चाहिए। इसकी महत्वता का परिणाम धार्मिक ग्रंथों में वर्णित एक कथा है, जिसमें किए उल्लेख के अनुसार महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक दानवीर कर्ण अपनी मृत्यु के बाद 15 दिनों के लिए केवल अपने पितरों का तर्पण करने आए थे।
इस बात से ये सिद्ध होता है कि पितरों का तर्पण करना कितना आवश्यक व लाभदायक होता है। बल्कि कहा जाता है पितरों को देवताओं के समान माना जाता है। यहीं कारण है कि हर कोई इस दौरान अपने पितरों के प्रसन्न करने के लिए विधि वत पिंडदान आदि कार्य करते हैं। मगर कुछ लोग जाने-अनजाने में इस दौरान ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिस कारण न तो उन्हें पिंडदान का फल प्राप्त होता है न ही पितर प्रसन्न होते हैं। ऐसे में हर किसी के लिए ये जानना ज़रूरी है इससे संबंधित नियमों आदि का खास ध्यान रखना अति आवश्यक माना जाता है। आइए आपको बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की जल देते समय किन नियमों का ध्यान रखना चाहिए।
पिता का तर्पण
दूध, तिल और जौ मिला हुआ जल लेकर, अपने गोत्र का नाम लेते हुए
“गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत तृप्यतमिदं तिलोदकम
गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः”
मंत्र का 3 बार उचच्चारण करते हुए पिता को जलांजलि देें।
पितामह का तर्पण
उपरोक्त बताई गई सामग्री को जल में मिलाकर अपने गोत्र का नाम लेते हुए
“गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामाह का नाम) शर्मा वसुरूपत तृप्यतमिदं तिलोदकम
गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः”
मंत्र बोलते हुए 3 पितामाह को जलांजलि दें।
माता का तर्पण
हाथ में जल लेकर अपने गोत्र का नाम लेते हुए
“गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त तृप्यतमिदं तिलोदकम
गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः”
मंत्र बोल कर 16 बार पूर्व दिशा में, 7 बार उत्तर दिशा में तथा 14 बार दक्षिण दिशा में जलांजलि दें।
दादी का तर्पण
उपरोक्त बताई गई विधि को दोहराते हुए अपने गौक का नाम लें और
“गोत्रे पितामा (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त तृप्यतमिदं तिलोदकम
गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः”
मंत्र बोल का जितनी बार हो सके जाप करते हुए जलांजलि दें।
( नोट: इस बात का खा ध्यान रखें कि तर्पण के समय आपके मन में श्रद्धा का भाव होना ज़रूरी है, कहा जाता है श्रद्धा से दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। )