संत गौरव श्री पीयूष मुनि जी महाराज- धन और धर्म का सदुपयोग आवश्यक

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Sep, 2024 04:43 AM

piyush muni ji maharaj

लौकिक जीवन में धन की महत्ता के कारण इसे उपप्राण कहा गया है। धन यदि इस जीवन का परम सहयोगी- साथी है तो धर्म परलोक में उसे दुखों तथा यातनाओं से बचाता है। धन इच्छाओं के साथ-साथ आवश्यकताओं की

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Saint Gaurav Shri Piyush Muni Ji Maharaj: लौकिक जीवन में धन की महत्ता के कारण इसे उपप्राण कहा गया है। धन यदि इस जीवन का परम सहयोगी- साथी है तो धर्म परलोक में उसे दुखों तथा यातनाओं से बचाता है। धन इच्छाओं के साथ-साथ आवश्यकताओं की पूर्ति का भी साधन है परंतु धर्मपूर्वक धनार्जन करना बुरा नहीं है और उस संचित धन को लोकसेवा के पुनीत कार्यों में व्यय करना सर्वश्रेष्ठ कर्म है। इस तरह धन धर्म की और धर्म धन की शोभा बनने के साथ एक-दूसरे के पूरक भी बन जाते हैं। धन बुरा नहीं है परंतु धन की लिप्सा और आसक्ति बुरी है। धन का व्यामोह भाई को भाई का दुश्मन और खून का प्यासा बना देता है। धन का बढ़ा हुआ लोभ ही मित्र को मित्र के साथ विश्वासघात करने के लिए विवश करता है। धन की वासना ही सामाजिक संघर्षों, कलहों तथा युद्धों का मूल कारण है। 

जिससे प्राणिमात्र का अभ्युदय और कल्याण हो, वही सच्चा धर्म है। धर्म कामनाओं का संक्षेपीकरण और आवश्यकताओं का भी मर्यादीकरण करता है। इससे समाज में कहीं अराजकता नहीं फैलती बल्कि प्रेम, मैत्री तथा पारस्परिक सद्भावना के वातावरण का सृजन होता है इसलिए धन और धर्म का समन्वय अत्यधिक आवश्यक है।

धर्म धनाढ्यों को उद्बोधन देता है कि वे धन के मद में आकर निर्धनों और असहायों का निरादर न करें अपितु उनके साथ सद्भावना और सहानुभूति का व्यवहार करें। धन बहुत कुछ है किंतु सब कुछ नहीं है। वह माथे पर अंकित कलंक की काली रेखा नहीं मिटा सकता, न दुष्कर्मों के फल से मानव की रक्षा कर सकता है, न यमराज को रिश्वत देकर मृत्यु की मनहूस घड़ी को टाल सकता है। 

सूई की नोक में से भले ही ऊंट निकल जाए किंतु धन का लोभी मनुष्य कभी भी स्वर्ग प्राप्त नहीं कर सकता। धन को द्रव्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह बहता रहता है और सदा किसी एक के पास नहीं रहता। बहते हुए जल की भांति यह अपना स्थान शीघ्र ही बदल लेता है इसलिए धन-वैभव का अभिमान मिथ्या है। धन को अपनी आवश्यकताएं पूरी कर समाज के वंचित तथा अभावग्रस्त वर्ग को भी राहत पहुंचाने में सही इस्तेमाल करें, यही धन की सार्थकता है। धर्मपूर्वक धन का प्रयोग स्व तथा पर के लिए सुखदायक स्थितियां बनाता है।

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!