Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Sep, 2024 03:40 PM
जहां आनन्द है वहीं प्रेम है और जहां प्रेम है वहां आनन्द है। आनन्द रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं। दोनों ही मिलकर संसार के रहस्य के तत्वज्ञान को प्रकट
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जहां आनन्द है वहीं प्रेम है और जहां प्रेम है वहां आनन्द है। आनन्द रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं। दोनों ही मिलकर संसार के रहस्य के तत्वज्ञान को प्रकट करके सभी को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। श्री राधा और कृष्ण के प्रेम के कई स्थल हैं, जो भारतीय संस्कृति और भक्ति परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। आईए करें उन स्थलों के दर्शन-
Vrindavan वृंदावन: यह स्थल राधा और कृष्ण के प्रेम के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है। यहां कई मंदिर हैं, जैसे कि श्री राधा रमण मंदिर, श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर और श्री राधा दामोदर मंदिर, जो राधा-कृष्ण की लीलाओं को समर्पित हैं।
Mathura मथुरा: मथुरा, कृष्ण की जन्मस्थली है और यहां कई महत्वपूर्ण मंदिर हैं जैसे कि श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर। यह भी राधा और कृष्ण के प्रेम के कई संदर्भों से जुड़ा हुआ है।
Govardhan गोवर्धन: गोवर्धन पर्वत जो कि श्री कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था, यह राधा और कृष्ण की प्रेम कथाओं से जुड़ा हुआ है।
Nandgaon नंदगांव: यह स्थान श्री कृष्ण के पालन-पोषण के लिए प्रसिद्ध है और यहां कृष्ण लीलाओं के कई महत्वपूर्ण स्थल हैं।
Radha Kund राधा कुंड: वृंदावन के पास स्थित राधा कुंड एक पवित्र स्थान है जहां माना जाता है कि राधा और कृष्ण ने अपनी लीलाओं का आनंद लिया।
Barsana बरसाना: यह राधा के जन्म स्थल के रूप में प्रसिद्ध है और यहां राधा के प्रति समर्पित कई मंदिर हैं जैसे कि राधा रानी मंदिर।
Bhandirvan भांडीर वन: ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वृंदावन में यमुना पार भांडीर वन में स्वयं ब्रह्मा जी के पुरोहित तत्व में श्री राधा कृष्ण विवाह संपन्न हुआ था। श्री राधा कृष्ण का संबंध निस्वार्थ प्रेम की अदृश्य बेड़ी से बंधा हुआ है।
Nidhivan निधिवन: धार्मिक नगरी वृन्दावन में निधिवन एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान है। मान्यता है कि निधिवन में श्रीराधा एवं श्रीकृष्ण आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में आज भी प्रसाद (माखन मिश्री) प्रतिदिन रखा जाता है। शयन के लिए पलंग लगाया जाता है तथा प्रातः बिस्तर को देखने से प्रतीत होता है कि यहां निश्चित ही कोई रात्रि विश्राम करने आया था और भोजन भी ग्रहण करके गया है।
Sanket संकेत: श्रीकृष्ण रहते थे नंद गांव में और राधा रानी रहती थी बरसाना गांव में। दोनों गांव के बीच में एक गांव है 'संकेत'। माना जाता है की सांसारिक जगत में श्री राधा कृष्ण की प्रथम भेंट यहीं पर हुई थी और आरंभ हुआ लौकिक प्रेम का।
Mor Kuti मोर-कुटी: बरसाने के पास एक छोटा सा स्थान है मोर-कुटी। एक समय लीला करते हुए राधा जी प्रभु से रूठ गई और मोर-कुटी पर जाकर बैठ गई। वहां एक मोर से लाड करने लगी। ठाकुर जी उन्हें मनाने लगे पर वह न मानीं। ठाकुर जी को उस मोर से ईर्ष्या होने लगी। किशोरी जी ने ये शर्त रख दी कि बांके बिहारी मेरी नाराजगी तब दूर होगी जब तुम इस मोर को नृत्य प्रतियोगिता में हरा कर दिखाओगे। मोर ऐसा नाचा कि उसने ठाकुर जी को थका दिया।
Gahvar Van, Barsana गहवर वन: मयूर कुटी और मान मंदिर के मध्य गहवर वन है। जो नित्य विहार का स्थल है। मान्यता है की पांच हजार साल पहले इस वन को स्वयं राधा रानी ने लगाया था। कहते हैं गायों को चराने वाली ग्वालों को आज भी इस वन में बंसी की धुन व राधा रानी के घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है। कुमुदनी कुंड अथवा विहार कुंड पर जब श्री कृष्ण गाय चराने आते तो अक्सर राधा रानी से यहीं भेंट करते थे।
Kurukshetra कुरुक्षेत्र: नंदगांव छोड़ने के बाद उनकी मुलाकात कुरुक्षेत्र में हुई। सूर्यग्रहण के समय ब्रजवासी कुरुक्षेत्र में स्नान के लिए आए थे। तभी श्री राधा और कृष्ण का मिलन हुआ। यहां स्थापित तमाल वृक्ष इस बात का गवाह है।
ये स्थान राधा और कृष्ण की प्रेम कथाओं और उनके दिव्य लीलाओं के साक्षी हैं और उनके भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं।