Pradakshina: इस घटना के बाद हिन्दू धर्म में परिक्रमा की रीति का आरंभ हुआ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Feb, 2023 10:35 AM

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एक बार भगवान शंकर तथा माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय तथा गणेश जी को सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए पृथ्वी का एक चक्कर लगाने को कहा। उन्होंने दोनों से कहा कि जो पहले आएगा

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Story of Ganesha and Kartikey: एक बार भगवान शंकर तथा माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय तथा गणेश जी को सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए पृथ्वी का एक चक्कर लगाने को कहा। उन्होंने दोनों से कहा कि जो पहले आएगा वहीं इस दौड़ का विजेता होगा। यह सुन कार्तिकेय अपनी सुंदर सवारी मोर पर पृथ्वी का चक्कर लगाने निकल पड़े।

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इधर गणेश जी ने अपने दोनों हाथ जोड़े तथा भगवान शंकर एवं माता पार्वती के गिर्द चक्कर लगाना शुरू कर दिया। कार्तिकेय लौटे तो गणेश जी आराम से बैठे थे। जब उन्होंने गणेश जी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका संसार तो स्वयं उनके माता-पिता हैं। इसलिए उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए पृथ्वी का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है।

पुराणों के अनुसार इस घटना के बाद ही हिन्दू धर्म में परिक्रमा करने की रीति का आरंभ हुआ। तब से लेकर आज तक मंदिरों में परिक्रमा करने का रिवाज है।

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Why do we do parikrama in temple and why always clockwise: शास्त्रों में लिखा है कि जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो उसके मध्य बिंदू से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है। यह निकट होने पर अधिक गहरा और चमत्कारी होता है। मंदिर में परिक्रमा सही दिशा तथा सही विधि से ही की जानी चाहिए। 

परिक्रमा जब शुरू करें तो दाईं ओर भगवान या देवी-देवता की मूर्ति रहनी चाहिए। जैसे घड़ी में सूई घूमती है उसी तरह परिक्रमा के दौरान साधक को भी घूमना चाहिए। जिस भगवान या देवी-देवता की परिक्रमा कर रहे हैं उसके मंत्र का जाप करते जाना चाहिए। पूरे विधि-विधान से की गई परिक्रमा से मनुष्य को ईश्वर से दूर होने का आभास नहीं होता और उसमें यह भावना बनी रहती है कि प्रभु उसके आसपास ही हैं।

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परिक्रमा धीरे-धीरे करनी चाहिए
ऐसी भी मान्यता है कि परिक्रमा धीरे-धीरे करनी चाहिए। ऐसा करने से हमारा ध्यान ईश्वर या देवी-देवता पर सतत केंद्रित रहता है जिससे हमें मन की अपार शांति प्राप्त होती है। वैसे तो सभी भगवान और देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है किंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग भगवान तथा देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की संख्या भी अलग-अलग है। देवियों की एक परिक्रमा ही की जाती है। शिव जी की परिक्रमा से मन में उठने वाले बुरे विचारों पर अंकुश लगता है। इसी तरह गणेश जी तथा हनुमान जी की तीन परिक्रमा हमारी सोची हर बात को पूरा करती है। परिक्रमा करते समय गणेश जी तथा हनुमान जी का विराट स्वरूप हमें हिम्मत देता है।

भगवान विष्णु तथा उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा से हमारे संकल्प ऊर्जावान बनकर हमारी सकारात्मक सोच में वृद्धि करते हैं। इसी तरह सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा से मन पवित्र होता है तथा हमें अच्छे विचार आते हैं।

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भगवान की ही नहीं अग्नि और पेड़ों की भी होती है परिक्रमा
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार केवल भगवान की ही नहीं बल्कि कई अन्य वस्तुओं की भी परिक्रमा की जाती है। इसमें अग्नि, पेड़ तथा पौधे प्रमुख हैं। सबसे पवित्र माने-जाने वाले तुलसी के पौधे की परिक्रमा करना हिंदू धर्म में आम बात है। पीपल के पेड़ में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है।

दीपक की सात परिक्रमा न केवल शनि दोष वरन सभी तरह के ग्रह जनित दोषों से छुटकारा दिलाती है। इसके अलावा हिन्दू धर्मावलम्बी विवाह संस्कार में अग्नि की परिक्रमा को बहुत महत्व देते हैं। यह रिवाज है कि पति-पत्नी द्वारा विवाह संस्कार के दौरान हवन कुंड में जलती हुई अग्नि के सात फेरे लिए जाते हैं और सात जन्मों तक एक-दूसरे का साथ निभाने का वचन भी वे एक-दूसरे को देते हैं जिन मंदिरों में परिक्रमा का मार्ग न हो, वहां भगवान के सामने खड़े होकर अपने पांवों को इस प्रकार चलाना चाहिए जैसे कि हम चल कर परिक्रमा कर रहे हों। जिन देवताओं की परिक्रमा की संख्या का विधान मालूम न हो उनकी तीन परिक्रमा की जा सकती है। तीन परिक्रमा के विधान को सभी जगह स्वीकार किया गया है।

यही कारण है कि ठीक श्री गणेश जी की तरह ही मंदिर में भक्त भी भगवान की या देवी-देवता की मूर्ति की परिक्रमा करता है। इससे जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, वह मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है।

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