Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Sep, 2022 10:58 AM
उदासीनाचार्य भगवान श्रीचंद्र जी का अवतरण 1494 ई. में श्री गुरु नानक देव जी के गृह माता सुलखनी जी की कोख से सुल्तानपुर लोधी में हुआ। यह ऐसा दौर था, जब तत्कालीन क्रूर शासक बलात् लोगों का धर्म परिवर्तन करवा रहे थे।
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Prakash Utsav of udasin acharya Lord Shri Chandra ji: उदासीनाचार्य भगवान श्रीचंद्र जी का अवतरण 1494 ई. में श्री गुरु नानक देव जी के गृह माता सुलखनी जी की कोख से सुल्तानपुर लोधी में हुआ। यह ऐसा दौर था, जब तत्कालीन क्रूर शासक बलात् लोगों का धर्म परिवर्तन करवा रहे थे। सामान्य लोग अपनी सनातन परम्परा के अनुसार पूजन-अर्चन का अधिकार खो चुके थे। ऐसे समय में गुरु नानक देव जी और भगवान श्रीचंद्र जी ने जनमानस के कल्याण के लिए धर्म-यात्राओं का मार्ग अपनाया।
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श्री गुरु नानक देव जी की धर्म यात्राओं को उनकी उदासियों के रूप में जाना गया तो भगवान श्रीचंद्र जी ने अपने पिता के इस मार्ग का अनुसरण करते हुए सम्पूर्ण विश्व का पैदल भ्रमण करके उस समय के जनमानस में खो चुके विश्वास को जगाया। अपनी यात्राओं के दौरान उस समय के क्रूर शासकों को अपने चमत्कार से प्रभावित कर अपने उपदेशों के माध्यम से ‘शासक-धर्म’ के विषय में बतलाया। कश्मीर के श्रीनगर में उस समय याकूब खां का शासन था। उसने हिन्दुओं पर प्रतिबंध लगा रखा था। वे अपनी परम्परा के अनुसार अर्चना-पूजा नहीं कर सकते थे।
भगवान श्रीचंद्र जी को पहुंचने पर जब ऐसे प्रतिबंध के विषय में पता चला तो उन्होंने शंखनाद किया, घंटी बजाई, आरती-पूजा की। आवाज शाही महलों में पहुंची। याकूब ने सैनिकों को भेजा कि जाओ जाकर देखो शाही फरमान का उल्लंघन किसने किया है? सैनिक आए, भगवान श्रीचंद्र जी पर शस्त्र प्रहार करने के लिए हाथ ऊपर उठाए तो हाथ वहीं रुक गए। ऐसे चमत्कार से प्रभावित होकर सैनिक वापस चले गए और बाद में इनके प्रवचनों से प्रभावित होकर राजा ने सभी प्रतिबंध हटा दिए। यात्राओं के इसी क्रम में भगवान काबुल, कंधार, अफगानिस्तान, भूटान इत्यादि स्थानों पर भी गए।
कहते हैं पेशावर में भगवान ने एक स्थान पर पांच ज्योतियां जलाईं और वहां के राजा ने वचन दिया कि ये ज्योतियां निरंतर जलती रहेंगी और पेशावर में आज भी वे ज्योतियां उसी रूप में जल रही हैं। इसी प्रकार भगवान श्रीचंद्र पाकिस्तान के सिंध के नगर ठट्टा में वहां के लोगों की पुकार सुनकर गए और वहां के शासकों को हिन्दुओं को किसी भी तरह की यातनाएं न देने के लिए आदेश दिया।
यूं तो भगवान निरंतर यात्राओं में रहे, परंतु उनके कुछ ऐसे स्थान हैं जहां पर उन्होंने निरंतर कुछ समय रह कर तपश्चर्या की। जैसे पंजाब के गुरुदासपुर जिले में बारठ नाम का ग्राम। बारठ ग्राम गुरु नानक देव जी महाराज का ननिहाल था। इतिहासकारों के मतानुसार जीवन के लगभग 36 वर्ष आप इस ग्राम में अलग-अलग समय पर रहे। भगवान का यह तप स्थान आज भी विद्यमान है जो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधीन है। यहां हर अमावस्या पर भारी मेला लगता है। श्रीचंद्र नवमी का पर्व मनाया जाता है।
ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार तीसरे, चौथे, पांचवें और छठे गुरु इसी स्थान पर भगवान से मिलने के लिए आए थे। बारठ नगर के निकट ही पठानकोट जिले में भगवान का एक और स्थान है ममून साहिब। भगवान के हाथ का लगाया हुआ वट वृक्ष यहां विद्यमान है।
आसपास जल नहीं था, भगवान ने यहां पर मीठा जल निकाला। आज भी वर्ष में एक दिन गांव में पानी नहीं होता और लोग आश्रम में आकर कुएं में लगी जल की मोटर से पानी की पूर्ति करते हैं। आपने अपनी वाणी ‘मात्रा वाणी’ के माध्यम से मानव मात्र को आपसी वाद-विवाद से ऊपर उठकर भ्रातृभाव के साथ रहने का संदेश दिया। सम्पूर्ण जीवन जनमानस के कल्याण के लिए व्यतीत कर 149 वर्ष की आयु में चम्बा में रावी नदी के किनारे पहुंच कर वहां से शिला पर सवार होकर नदी पार कर भगवान सदेह इस धराधाम से लुप्त हो गए।