Pramukh Swami Maharaj death anniversary- सभी के कल्याण की भावना को ही धर्म मानते थे प्रमुख स्वामी जी महाराज

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Aug, 2024 03:41 PM

pramukh swami maharaj death anniversary

गांधीनगर (गुजरात) व नई दिल्ली के बाद अमरीका के न्यूजर्सी क्षेत्र में इससे भी विशाल ‘अक्षरधाम’ हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तक प्रमुख स्वामी जी महाराज की अद्भुत देन है। अबू धाबी में बी.ए.पी.एस.हिंदू मंदिर का

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Pramukh Swami Maharaj death anniversary- गांधीनगर (गुजरात) व नई दिल्ली के बाद अमरीका के न्यूजर्सी क्षेत्र में इससे भी विशाल ‘अक्षरधाम’ हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तक प्रमुख स्वामी जी महाराज की अद्भुत देन है। अबू धाबी में बी.ए.पी.एस.हिंदू मंदिर का इतिहास 1997 में प्रमुख स्वामी महाराज की मध्य-पूर्व की यात्रा के दौरान शुरू हुआ। 5 अप्रैल, 1997 की शाम को प्रमुख स्वामी महाराज ने शारजाह के एक रेगिस्तान का दौरा किया जहां उन्होंने अबू धाबी में एक मंदिर की कल्पना की और कहा कि यह देशों, संस्कृतियों और धर्मों को करीब लाएगा।

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हिंदू संस्कार, हिंदू विचारधारा, हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तन में जिन संतों का विशेष योगदान रहा, उनमें प्रमुख स्वामी महाराज अग्रणी थे। 1200 मंदिरों के निर्माण  द्वारा उन्होंने सभी के लिए हिन्दुत्व के उदार मूल्य और वैश्विक विचार उद्घाटित किए। उनके दिव्य व्यक्तित्व व जीवन कार्य से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ।

स्वामीनारायण मंदिर में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करते हुए कैलीफोर्निया (अमरीका) की सिलीकोन वैली के उपनगर मिलपिटास में स्वामी श्री ने कहा था कि कुछ लोग सवाल करते हैं कि मंदिरों की क्या आवश्यकता है ? समाज को तो अस्पताल, महाविद्यालय, पाठशालाएं चाहिएं क्योंकि इनसे लोग शिक्षित होते हैं लेकिन मंदिर भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, इनमें संतों के सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है, दुख दूर होते हैं।
 
प्रार्थना करने से शांति प्राप्त होती है। पारिवारिक एवं सामाजिक परेशानियों का निराकरण होता है। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होता है, शंकाएं दूर होती हैं। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने से चिन्तन शांति प्राप्त होती है। 

उनका कहना था कि विज्ञान का विकास होने पर भी मनुष्य सुखी नहीं। उसे शांति नहीं मिलती क्योंकि भौतिकवाद बढ़ रहा है। दुनिया का बाहृ विकास हुआ, किंतु आंतरिक विकास के लिए संतों का अनुसरण और सभी के लिए कल्याण की भावना रखना ही हमारा धर्म है। हमारा जीवन निर्व्यसनी एवं सदाचारी होना चाहिए। 

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शांतिलाल (प्रमुख स्वामी जी महाराज) का जन्म 7 दिसम्बर, 1921 को गुजरात के चानसद गांव में हुआ। उनके माता-पिता, मोतीभाई और दीवालीबेन पटेल शास्त्री जी महाराज के शिष्य और अक्षर पुरुषोत्तम मत के अनुयायी थे। 

शास्त्री जी महाराज ने युवा शांतिलाल को जन्म के समय आशीर्वाद दिया और उनके पिता से कहा था, ‘‘यह बच्चा हमारा है, जब समय परिपक्व हो, तो कृपया इसे हमें दें। वह हजारों लोगों को भगवान की भक्ति की ओर ले जाएगा।’’ 

शांतिलाल ने मात्र 8 वर्ष विद्याभ्यास किया और 7 नवम्बर, 1939 को गृह त्याग करके अहमदाबाद में शास्त्री जी महाराज के वरदहस्त से पार्षदी दीक्षा और 10 जनवरी, 1940 को अक्षरदेहरी, गोंडल में भगवती दीक्षा प्राप्त की। इन्हें 23 नवम्बर 1971 को संस्था का प्रमुख घोषित करते हुए  ‘प्रमुख स्वामी’ जी महाराज का नाम दिया गया। 

विश्वभर में 1200 से अधिक मंदिरों और विराट सांस्कृतिक परिसरों का सृजन आपके दिव्य जीवन की मूर्तिमंत गवाही है। दूसरों की भलाई में अपना भला है, इस जीवन सूत्र के साथ लाखों लोगों को आत्मीय स्नेह से अध्यात्म पथ दिखाने वाले प्रमुख स्वामी जी महाराज एक विरल संत-विभूति थे, जिन्होंने 13 अगस्त, 2016 को संसार त्याग दिया।   

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