Edited By Jyoti,Updated: 06 Aug, 2020 01:34 PM
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद के माह में श्री कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था जिस कारण सनातन धर्म में इस महीना को विशेष व पावन माना जाता है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद के माह में श्री कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था जिस कारण सनातन धर्म में इस महीना को विशेष व पावन माना जाता है। बता दें भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को सनातन धर्म में एक पावन व बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। लोग सुबह से लेकर शाम तक भगवान श्री कृष्ण के आगमन की तैयारियों में लगे रहते हैं, चूंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात में हुआ था, इसलिए रात में लोग इनकी पूजा करते हैं और इनके आगमव खुशियां मनाते हैं। बता दें इस बार जन्माष्टमी का त्यौहार कुछ जगहों पर 12 को तो कुछ स्थलों पर 13 अगस्त को मनाया जाएगा। तो वहीं वृंदावन की बात करें तो यहां तिथि-नक्षत्र का संयोग न मिलने के चलते 11-12 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा।
ज्योतिषियों द्वारा बताया जा रहा है कि इसका कारण ये है कि श्री कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र के एक साथ नहीं मिल रहे। इनके अनुसार 11 अगस्त को अष्टमी तिथि सूर्योदय के बाद लगेगी, किंतु पूरे दिन और रात में रहेगी। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि के दिन रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। काशी के ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि इस साल यानि 2020 की जन्माष्टमी पर्व पर श्रीकृष्ण की तिथि और जन्म नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है। इसलिए इस बार 11 अगस्त, मंगलवार को अष्टमी तिथि पूरे दिन और रातभर रहेगी। धर्म ग्रंथों की बात करें तो इसमें इनमें श्री कृष्ण के बचपन से लेकर बाल्य अवस्था तक की लीलाओं के बारे में पढ़ने-सुनने को मिलती है। इन लीलाओं में इनकी प्रेम लीलाएं भी शामिल हैं। आज हम आपको इनकी एक लीला के बारे में बताने वाले हैं। चलिए जानते हैं राधा रानी से जुड़ी श्री कृष्ण की इन लीलाओं के बारे में-
श्री कृष्ण और राधा रानी का प्रेम संसार में आज भी बहुत प्रसिद्ध है। आज भी लोग सच्चे प्रेम की उदाहरण के लिए भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की बात करते हैं। मगर क्या आपको पता है एक बार राधा रानी श्री कृष्ण के एक काम से इतना नाराज़ हो गई थी कि उन्होंने श्री कृष्ण को खुद को स्पर्श करने तक से मना कर दिया था। जी हां, ये सत्य है, इससे जुड़ी घटना की एक निशानी आज भी गोवर्धन पर्वत की तलहटी में कृष्ण कुंड के रूप में मौज़ूद हैं।
दरअसल भगवान श्री कृष्ण ने कंस के भेजे हुए अरिष्टासुर नामक असुर का वध किया था। कथाओं के अनुसार अरिष्टासुर असुर बैल के रूप में गोकुल वासियों और श्रीकृष्ण को कष्ट देने आया था। जिसे उसे दंड देते हुए उसका वधठ कर दिया। परंतु क्योंकि असुर ने बैल का रूप धारण किया हुआ था, इसलिए राधा रानी के साथ-साथ सारी गोपियां भी श्री कृष्ण को गौ का हत्यारा मानने लगी थी। हालांकि श्री कृष्ण ने राधा रानी को समझाने का प्रयास किया, उन्होंने बैल का नहीं बल्कि असुर का वध किया है। बहुत समझाने के बाद भी जब राधा रानी नहीं मानी को श्री कृष्ण ने जो़र से अपनी ऐड़ी जमीन पर पटकी तो वहीं से जल से धारा बहने लगी। कहा जाता इस जलधारा से एक कुंड बन गया।
कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण ने समस्त तीर्थों से कहा कि आप सभी यहां आइए। भगवान के आदेश पर सभी तीर्थ राधा रानी एवं भगवान कृष्ण के सामने उपस्थिति हो गए। और इस कुंड में प्रवेश कर गए। जिसके बाद उन्होंने इसमें स्नान कर अपने आप से बैल की हत्या का पाप उतारा। मान्यता है कि स्नान के बाद श्री कृष्ण ने जो भी जातक इस कुंड में स्नान करेगा वाले उसे एक ही बार में सभी तीर्थों में स्नान का पुण्य प्राप्त होगा।