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Parivartini Ekadashi: ये छोटा सा काम देगा वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Sep, 2024 08:28 AM

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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पाशर्व, परिवर्तिनी अथवा वामन द्वादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु श्रीरसागर में चार मास के श्रवण के पश्चात करवट बदलते हैं क्याेंकि

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Parivartini Ekadashi 2024: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पाशर्व, परिवर्तिनी अथवा वामन द्वादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु श्रीरसागर में चार मास के श्रवण के पश्चात करवट बदलते हैं क्याेंकि निद्रामग्न भगवान के करवट परिवर्तन के कारण ही अनेक शास्त्राें में इस एकादशी काे परिवर्तिनी एवं पार्शव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
 

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Vamana Dwadashi puja vidhi कैसे करें पूजन
इस व्रत काे करने के लिए पहले दिन हाथ में जल का पात्र भरकर व्रत का सच्चे मन से संकल्प करना हाेता है। प्रातः सूर्य निकलने से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत हाेकर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प मिष्ठान एवं फलाें से विष्णु भगवान का पूजन करने के पश्चात अपना अधिक समय हरिनाम संकीर्तन एवं प्रभु भक्ति में बिताना चाहिए।
 
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कमलनयन भगवान का कमल पुष्पाें से पूजन करें, एक समय फलाहार करें और रात्रि काे भगवान का जागरण करें। मंदिर में जाकर दीपदान करने से भगवान अति प्रसन्न हाे जाते हैं और अपने भक्ताें पर अत्यधिक कृपा करते है। 
 
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Significance of Vamana Dwadashi क्या है पुण्यफल 
भगवान काे एकादशी अति प्रिय है परंतु एकादशी तिथि काे किए गए व्रत एवं हरिनाम संकीर्तन से प्रभु बहुत जल्दी और अधिक प्रसन्न हाेकर अपने भक्ताें पर कृपा करते हैं। इस मास में भगवान वामन जी का अवतार हुआ था। इसी कारण व्रत में भगवान विष्णु के बाैने रूप की पूजा करने से भक्त काे तीनाें लाेकाें की पूजा करने के समान फल मिलता है। यह एकादशी भक्त काे वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फलदायिनी हाेती है। मनुष्य के सभी पापाें का नाश करने वाली इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी मनाेकामनाएं पूर्ण हाेती हैं तथा अंत में उसे प्रभु के परमपद की प्राप्ति हाेती है। विधिपूर्वक व्रत करने वालाें का चंद्रमा के समान यश संसार में फैलता है।

एकादशी के दिन भगवान सायंकाल के समय करवट बदलते हैं। इसी कारण प्रभु का महाेत्सव शाम काे करना चाहिए। उन्हाेंने कहा कि शास्त्रानुसार श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्यभाव, सखाभाव व आत्म निवेदन आदि भक्ति के 9 अंग हैं, परंतु सभी के नाम संकीर्तन करना सर्वश्रेष्ठ है इसलिए रात काे प्रभु के नाम का संकीर्तन अवश्य करना चाहिए।
 
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