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Punaura Dham: जीर्णोद्धार की बाट जोहता सीता जी का प्राकट्य स्थल ‘पुनौरा धाम’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Apr, 2023 11:49 AM

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बिना राम के सीता नहीं और बिना सीता के राम नहीं। संपूर्ण विश्व में लोग भगवान को याद करते हैं तो एक स्वर से सीता-राम कहते हैं।

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Punaura Dham: बिना राम के सीता नहीं और बिना सीता के राम नहीं। संपूर्ण विश्व में लोग भगवान को याद करते हैं तो एक स्वर से सीता-राम कहते हैं। विश्व भर में सीता-राम के अनुयायी चाहते थे कि अयोध्या में श्री रामलला का भव्य मंदिर बने और अंतत: न्यायालय से भव्य मंदिर बनाने की स्वीकृति मिली।

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Bihar Tourism: यह तो बात हुई भगवान श्री राम की। अब ध्यान देने की आवश्यकता है बिहार के सीतामढ़ी के निकट ‘पुनौरा धाम’ स्थित मां सीता के प्राकट्य स्थल पर। न वहां मस्जिद है, न चर्च है और न ही कोई जमीनी विवाद है। प्राकट्य स्थल का कुण्ड भी मौजूद है और छोटा-सा मंदिर भी बना है परंतु मां सीता के प्राकट्य स्थल का जो भव्य स्वरूप होना चाहिए, उसकी ओर न बिहार के संस्कृति मंत्रालय और न ही केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय का विशेष ध्यान जा रहा है।

Janki Mandir: जब अयोध्या में श्री रामलला का भव्य मंदिर बन रहा है तो मां जानकी के प्राकट्य स्थल का जीर्णोद्धार क्यों नहीं हो रहा ? अब समय आ गया है जब ‘पुनौरा धाम’ को भारत के पांचवें धाम के रूप में स्थापित किया जाए। पहले तो लोगों को पता ही नहीं था कि ‘पुनौरा धाम’ है कहां, परंतु जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने शास्त्रों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि पुनौरा धाम ही मां सीता का प्राकट्य स्थल है।

Why is Punaura Dham famous: वह दस वर्षों से जानकी नवमी पर ‘पुनौरा धाम’ में अनवरत, नि:शुल्क कथा कर यह संदेश दे रहे हैं कि मिथिला वासियों और भारतवासियों मां जानकी प्राकट्य स्थल के जीर्णोद्धार और उसकी भव्यता में सभी लोग सहयोग करें।

मिथिला की पावन भूमि
कैलाश से कन्याकुमारी और कामख्या से कच्छ तक सम्पूर्ण भारत भूमि तीर्थ स्थानों से भरी है, परंतु मिथिला की भूमि का सदैव विशेष महत्व रहा है। देवता भी यहां निवास करने के लिए सर्वदा आतुर रहने के कारण इसे ‘सुरवंदिता’ कहा गया है। सनातन धर्म के कई पवित्र स्थान मिथिलापुरी में ही स्थित होने तथा मां सीता का प्राकट्य स्थल होने के कारण ‘पुण्यारण्य’ (‘पुनौरा धाम’) की पवित्र भूमि परम पुण्यदायक है।

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तीर्थों में श्रेष्ठता
धर्मशास्त्रों में तीर्थों के तीन रूपों का वर्णन है-नित्य तीर्थ, भगवदीय तीर्थ और सत तीर्थ। इसमें ‘पुण्यारण्य’ (‘पुनौरा धाम’) को सनातन से तीनों रूप प्राप्त हैं। माता सीता जी इसी भूमि से अवतरित होने के कारण यह ‘भगवदीय तीर्थ’ है, पुण्डरीक ऋषि का पावन आश्रम होने से यह सत तीर्थ तथा अयोध्या, मथुरा आदि की तरह लीला भूमि होने के कारण इसे नित्य तीर्थ होने का सौभाग्य प्राप्त है।

विशेष फलदायक
‘वृहद विष्णुपुराण’ के ‘मिथिला खंड’ के अनुसार संसार में प्राणियों की सारी मनोकामनाएं पूरी करने वाली विशेष फलदायक यज्ञ स्थली ‘पुण्योर्वरा’ (‘पुनौरा धाम’) की यात्रा और दर्शन विशेषकर चैत्र श्री रामनवमी और वैशाख श्री जानकी नवमी में मोक्ष के अभिलाषियों को करने चाहिएं।

‘पुण्यारण्य (पुनौरा धाम)’ ही मां जानकी प्राकट्यस्थल  
शास्त्रों में वर्णन है कि एक बार सम्पूर्ण मिथिला में घोर दुर्भिक्ष पड़ जाने से मिथिलावासियों में त्राहि-त्राहि मच गई। लोग अन्न और जल के अभाव में मरने लगे। उस समय मिथिला में महाराजा निमि के वंशज राजा जनक राज कर रहे थे। राजर्षि जनक ने विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ज्योतिषियों की आपात सभा बुलाकर इस संकट से मुक्ति पाने बारे विचार-विमर्श किया जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि राजा जनक को ‘हलेष्ठी यज्ञ’ करना चाहिए जिसके लिए ‘पुण्यारण्य’ (पुण्डरीक आश्रम) को उपयुक्त स्थान के रूप में चुना गया।  

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वृहद विष्णुपुराण के मिथिला माहात्म्य के अष्टम अध्याय के अनुसार 88 ऋषियों एवं रानी सुनैना सहित राज जनक हलेष्ठी यज्ञ के लिए पुण्डरीक आश्रम ‘पुण्यारण्य’ पधारे थे, जहां हलेष्ठी यज्ञ की सिद्धि प्राप्त हुई और मां जानकी का प्राकट्य हुआ।

‘पुनौरा धाम’ एवं ‘मां जानकी कुण्ड’ की महिमा
‘पुनौराधाम’ में प्रवेश मात्र से प्राणी पवित्र हो जाता है। मां जानकी कुण्ड में जलस्पर्श एवं स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसे ‘पुण्यनिधि’ कहा गया है। शास्त्रों-पुराणों में वर्णन है कि यहां तीर्थाटन करने से सभी पापों, संकटों से मुक्ति पाकर श्रद्धालु पुण्यलोक की प्राप्ति करते हैं।

इस बात की महती आवश्यकता है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों मां सीता प्राकट्य स्थल को गोद लें और उसे अयोध्या की तरह भव्यता प्रदान करने की दिशा में कारगर कदम उठाएं।

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