Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Jul, 2024 10:42 AM
बागपत जनपद के पुरा महादेव स्थित परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में सावन की शिवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए पूरे सावन
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Pura Mahadev Temple Baghpat: बागपत जनपद के पुरा महादेव स्थित परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में सावन की शिवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए पूरे सावन माह में शिव भक्त सुबह से ही लाइन में लगते हैं।
कजरी वन में स्थित है मंदिर
मंदिर उस कजरी वन में स्थित है, जहां पर जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहा करते थे। कथा प्रचलित है कि पुरा महादेव गांव कजरी वन में बसा हुआ है। आश्रम में ऋषि की पत्नी रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी से जल भरकर भगवान शिव को अर्पण किया करती थी। यहां एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए पहुंचे। जमदग्नि ऋषि की अनुपस्थिति में रेणुका से उनका साक्षात्कार हुआ। रेणुका ने सहस्त्रबाहु राजा की सेवा की। राजा सेवा भाव देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि एक जंगल में इतनी व्यवस्थाएं कैसे हो सकती हैं।
राजा ने उठा लिया था ऋषि की पत्नी को
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा ने जिज्ञासा पूर्वक जब रेणुका से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कामधेनु गाय का जिक्र करते हुए उनकी कृपा के बारे में बताया। राजा उस अद्भुत गाय को बलपूर्वक वहां से ले जाने लगा तो रेणुका ने इसका विरोध किया। राजा गुस्से में रेणुका को ही बलपूर्वक उठाकर ले गया। इसके बाद राजा ने हस्तिनापुर अपने महल में ले जाकर रेणुका को कमरे में बंद कर दिया। एक दिन बाद उसने रेणुका को आजाद कर दिया। उन्होंने वापस आकर सारी बात ऋषि को बताई।
रेणुका को आश्रम छोड़ने को कहा
इस पर ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को ही आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया लेकिन वह नहीं गई। फिर ऋषि ने अपने तीन पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा लेकिन पुत्रों ने ऐसा करने से मना कर दिया।
पिता के आदेश पर चौथे पुत्र परशुराम ने अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में उनको पश्चाताप हुआ। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। परशुराम की तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा।
परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी माता को जीवित कर दिया। इसके साथ ही भगवान शिव ने परशुराम को एक फरसा प्रदान किया। इससे ही उन्होंने 21 बार पापी राजाओं का संहार किया था।
रानी का हाथी रुक गया था वहां पर
परशुराम ने जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी, वहां पर मंदिर बना दिया। समय बीतने के साथ ही मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया। कई वर्षों बाद यह मिट्टी के ढेर में परिवर्तित हो गया। कहा जाता है कि एक बार लणडोरा की रानी घूमने के लिए निकली थी। उस टीले पर आकर उनका हाथी रुक गया। लाख कोशिशों के बाद भी हाथी ने उस टीले पर पैर नहीं रखा। इस पर रानी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने टीले की खुदाई आरंभ कर दी। खुदाई में वहां पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ। फिर रानी ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। यही शिवलिंग आज पुरा महादेव गांव स्थित परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।