Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jan, 2024 10:46 AM
हिमालय के उत्तर-पूर्व में अन्नपूर्णा पर्वत शृंखला में लगभग 5 हजार फुट की ऊंचाई पर
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Purnagiri Devi Temple Tanakpur- हिमालय के उत्तर-पूर्व में अन्नपूर्णा पर्वत शृंखला में लगभग 5 हजार फुट की ऊंचाई पर व चम्पावत जनपद के टनकपुर शहर से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर पूर्णागिरि एक मनोहारी स्थल है। पूर्णागिरि भारत- नेपाल सीमा पर आस्था का केंद्र तो है ही पर नैसर्गिक सौंदर्य प्रेमियों के लिए भी यह कम रोमांचकारी नहीं है। पूर्णागिरि के आसपास का क्षेत्र प्रसिद्ध जिम कार्बेट नैशनल पार्क में आता है जिसके कारण यहां विचरण करने वाले वन्य प्राणियों को आसानी से देखा जा सकता है। इसी क्षेत्र से काली नदी पहाड़ों से उतर कर मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। अन्नपूर्णा पर्वत की चोटी से सूर्योदय व सूर्यास्त, काली नदी, चम्पावत, टनकपुर व नेपाल के गांवों का मनोरम दृश्य देखते ही बनता है।
Purnagiri temple history: यहां की सप्त धाराओं से बनी सरयू नदी दक्षिण-पश्चिम दिशा से विस्तार लेती हुई टनकपुर भावर के मैदानी इलाके में प्रवेश करती है, जहां इसे शारदा नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी भारत और नेपाल की सीमा रेखा भी निर्मित करती है। शारदा नदी का फैलाव देखकर पर्यटक स्तब्ध रह जाते हैं। नदी में पहुंचने से पहले दूर-दूर तक फैली रेत मानों पर्यटकों का स्वागत करती है। दूरस्थ क्षेत्रों से आए यात्रियों की भीड़ आसपास देखने को मिलती है। यहां सरकारी, प्राइवेट व निजी वाहनों की कतारें लगी रहती हैं। नदी के किनारे बाजार-सा माहौल रहता है, जिसमें कुछ लोग चाय की दुकान पर चाय की चुस्की लेते हैं। कुछ छोले-भटूरे खाने में मस्त रहते हैं व कुछ यात्री ठहरने के लिए होटल व धर्मशाला ढूंढते हैं।
यहां छोटी-छोटी दुकानें बड़ी ही आकर्षक लगती हैं। सफेद बताशे और चुनरी लिए सैलानी नदी में स्नान के लिए जाते हैं। मानो शारदा नदी का शीतल व निर्मल जल मां भगवती के चरणों का स्पर्श कर रहा हो। यह स्थल यात्रियों का प्रथम विश्राम स्थल है। पूर्णागिरि मंदिर जाने का यह प्रवेश द्वार भी है। यहीं से वन मार्ग आरंभ हो जाता है। ककराली गेट बस स्टैंड से थोड़ा आगे जाने पर घने वन को पार करते हुए एक संकरे व चढ़ाई वाले मार्ग पर चलना पड़ता है। मार्ग में दूर-दूर तक झाड़िया, लताएं व ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के रूप में प्रकृति पसर कर स्वागत करती है।
लगभग 14 किलोमीटर की चढ़ाई पूरी करने के बाद ठूलीगाड़ पर बने अस्थायी बस स्टैंड पर पहुंचे। यहां एक छोटा-सा बाजार है। इसके निकट एक बड़ी-सी नदी है जो इस चढ़ाई में पड़ने वाले अन्य नदी-नालों से बड़ी है इसलिए इसे ठूली (बड़ी) गाड़ कहते हैं। आगे बढ़ने पर चढ़ाई के साथ-साथ गाड़ी की गति धीमी होती जाती है।
पर्वतों की शीतल पवन से सूर्य का ताप तेजहीन होता जाता है। रानीघाट का मैदान तथा किहुआ की नौली पार करते हुए प्राचीन महादेव की मंडी पहुंचते हैं। यहां से आगे लगभग 5 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई शुरू हो जाती है। यहीं से पूर्णागिरि शिखर (मंदिर) की यात्रा का शुभारंभ हो जाता है। तीन जल धाराओं को पार करते ही बांसी की चढ़ाई शुरू हो जाती है। हम लोग हनुमान चट्टी होते हुए भैरव चट्टी तक पहुंचे। यहां गाड़ी खड़ी करने, धर्मशाला, प्याऊ, दुकानें और खाने-पीने आदि की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
Why Purnagiri temple is famous: हरियाली से भरे वन मार्ग पर पैदल यात्रा करना आनंद का अनुभव कराता है। रास्ते में सीढ़ीनुमा खेत व पहाड़ी गांव, जगह-जगह दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे चढ़ाई चढ़ते जाते हैं हरी-भरी झाडिय़ां और लताओं के बीच चीड़ और देवदार के पेड़ गगन छूते दिखाई देते हैं। बवाली और कुसुलिया को पार करके हुमांस तक पहुंचा जाता है। यहां पर कई बच्चों का मुंडन संस्कार किया जाता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक नजारा देखते ही बनता है। पर्वतों के बीच से चांदी से झरझर बहते झरने दूर से साफ दिखाई देते हैंं।
हुमांस से आगे बांस के जंगलों के बीच चढ़ाई दुर्गम होती जाती है। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी पर्वत की चोटी को छूते तो कभी पर्वत शृंखलाओं से बच कर हवा के साथ आगे निकल जाते हैं। इन्हीं पर्वत शृंखलाओं की चोटी पर पूर्णागिरि माता का भव्य मंदिर है। मां भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं शायद इसीलिए इन्हें पूर्णागिरि कहते हैं। पूर्णागिरि एक शक्तिपीठ स्थल है। यह मंदिर बहुत शांत व सौम्य स्थल पर बना हुआ है। इस स्थल पर पहुंचकर तन-मन को अध्यात्म की स्वर लहरियां पूरी तरह प्रभावित करती हैं। मस्तिष्क मां के चरणों में स्वत: ही झुककर सम्मोहन में बंध जाता है।
पूर्णागिरि मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र मास में आयोजित होने वाले मेले में भीड़ कुंभ के मेले जैसा विशाल रूप ले लेती है। पूर्णागिरि के आसपास के क्षेत्र भी अपनी नैसर्गिक आभा बिखेरते हुए सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इनमें श्यामला ताल, दुर्ग के अवशेष, चम्पावत, देवीधुरा, लोहाघाट, एबट माऊंट, पंचेश्वर, आदिगोरखनाथ, रीठा साहिब आदि मनोहारी स्थल इस क्षेत्र में देखने को मिलते हैं।
How can I go to Purnagiri Temple कैसे पहुंचें :
रेल मार्ग : टनकपुर, पीलीभीत, हल्द्वानी, पिथौरागढ़, खटीमा व शाहजहांपुर आदि यहां के समीपवर्ती रेलवे स्टेशन हैं। टनकपुर पूर्वोत्तर रेल मार्ग द्वारा बरेली से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग : यहां पर पहुंचने के लिए आप सड़क मार्ग द्वारा भैरव चट्टी तक आसानी से पहुंच सकते हैं। बरेली से टनकपुर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है।
कहां ठहरें : पूर्णागिरि यात्रा के दौरान आप टनकपुर, हनुमान चट्टी व भैरव चट्टी के अवास गृह में ठहर सकते हैं।