Edited By Jyoti,Updated: 18 May, 2018 01:30 PM
उत्तराखंड के चम्पावत ज़िला में अन्नपूर्णा पहाड़ी पर 5500 फुट की ऊंचाई पर पूर्णागिरी मंदिर स्थित है, जिसे महाकाली पीठ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर सिखों के गुरु नानक देव के धार्मिक स्थल नानकमत्था और रीठा साहिब के बीच पहाड़ी पर स्थित है।
उत्तराखंड के चम्पावत ज़िला में अन्नपूर्णा पहाड़ी पर 5500 फुट की ऊंचाई पर पूर्णागिरी मंदिर स्थित है, जिसे शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर सिखों के गुरु नानक देव के धार्मिक स्थल नानकमत्था और रीठा साहिब के बीच पहाड़ी पर स्थित है। ये मंदिर पूरे 1 दशक पुरानी पर स्थित है, जो पिछले कुछ समय में दरकती जा रही है। मंदिर के आसपास रहने वालों के अनुसार इस मंदिर की स्थिति को देखते हुए 2007 में सरकार की तरफ से जरूरी काम भी उठाए गए थे।
मान्यता है कि यहां दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शंकर जी की अर्धांगिनी माता सती की नाभि का भाग गिरा था। यही कारण है कि इसे 108 शक्ति पीठों में से एक माना गया है। देवी सती के इस पूर्णागिरी शक्ति पीठ के दर्शन करने प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन होता है। इसके अलावा यहां हर साल एक मेले का आयोजन होता है, जो विशुवत संक्रांति से शुरू होकर चालीस दिनों तक चलता है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब भोलेनाथ हवन कुंड से देवी सती के शरीर को निकाल कर आकाश गंगा के मार्ग से जा रहे थे, तब श्री हरि ने शिव जी को शोक से निकालने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से देवी की देह के टुकड़े कर दिए, जो पृथ्वी के अलग-अलग भाग में जा गिरे। मान्यता के अनुसार जहां-जहां देवी के शरीर के टुकड़े गिरे, वहीं-वहीं शक्तिपीठ स्थापित हुए। इन शक्ति पीठों की संख्या विभिन्न धर्म ग्रंथों में भिन्न-भिन्न बताई गई है। उन्हीं में से एक उत्तराखंड के चम्पावत का पूर्णागिरी मंदिर है जहां माता सती की नाभि का हिस्सा गिरा था।
उत्तराखंड के अनेक देवस्थलों में से इस दैवीय-शक्ति व आस्था का अद्भुत केंद्र पूर्णागिरि मंदिर अपने आप में कुछ अलग ही विशेषता रखता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी पूर्णागिरि की महिमा को मन से स्वीकार करते हैं। देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिका गिरि, हेमला गिरि व मल्लिका गिरि में मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है। संगमरमरी पत्थरों से बना मंदिर हमेशा लाल वस्त्रों, सुहाग-सामग्री, चढ़ावा, प्रसाद व धूप-बत्ती की खुशबू से भरा रहता है। परिसर में माता का नाभिस्थल पत्थर से ढका है जिसका निचला छोर शारदा नदी तक है। यहां मनोकामना पूरी होने पर चीर की गांठ खोलने की मान्यता प्रचलित है।
सिद्धनाथ मंदिर
मान्यका के अनुसार मां पूर्णागिरि धाम के साथ बाबा सिद्धनाथ का महात्म भी जुड़ा है। कहते हैं कि बाबा सिद्धनाथ मां पूर्णागिरि के भक्त थे, जो रोज़ देवी के दर्शन के लिए दरबार में हाजिरी लगाते थे। एक दिन देवी पूर्णागिरि अपने शयन कक्ष में शृंगार कर रही थीं कि इसी बीच अचानक बाबा सिद्धनाथ देवी के शयन कक्ष में प्रवेश कर गए, जिससे क्रोधित होकर देवी ने बाबा के शरीर के टुकड़े कर उन्हें हवा में उछाल दिया था।
जब देवी को यह पता चला कि शयनकक्ष में प्रवेश करने वाला उनका अनन्य भक्त बाबा सिद्धनाथ था तो देवी को पछतावा हुआ। तब देवी ने बाबा को वरदान दिया मेरे दर्शन वाले हर भक्त की मनोकामना तभी पूरी होगी जब वो तम्हारे दर्शन करेगा।