Edited By Jyoti,Updated: 04 Sep, 2022 09:17 AM
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भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा रानी के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में इस शुभ दिन देवी राधा का जन्म हुआ था। धर्म ग्रंथो में किए उल्लेख के
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भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा रानी के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में इस शुभ दिन देवी राधा का जन्म हुआ था। धर्म ग्रंथो में किए उल्लेख के मुताबिक राधा रानी वृषभानु एवं उनकी पत्नी कीर्ति की पुत्री थी। तो वुहीं कुछ पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि राधा रानी का अवतरण माता कीर्ति के गर्भ से नहीं बल्कि वृषभानु जी की तपोस्थली से हुआ था। तो राधा अष्टमी के इस खास अवसर पर जानते हैं राधा रानी से जुड़ी पौराणिक कथा, इस के दिन व्रत महत्व व व्रत विधि-
कहा जाता है कि राधा श्री कृष्ण संग गोलोक में रहा करती थीं। प्राचीन समय की बात है जब देवी राधा कुछ समय के लिए गोलोक में नहीं थी, तब कान्हा विराजा नामक सखी के साथ गोलोक में घूम रहे थे। जब राधा रानी को इस बात का पता चला तो वे बेहद क्रोधित हो गई। उसके पश्चात वे कृष्ण जी के पास आई और उनसे अपशब्द कहने लगी। यह सब देख कान्हा के मित्र श्रीदामा को गुस्सा आया और उन्होंने राधा जी को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। देवी राधा का ऐसा भयंकर रूप देख कर विराजा ने वहां से प्रस्थान किया और नदी के रूप में चली गई। इस सबके बाद राधा रानी ने भी श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया। देवी राधा के श्राप के कारण वश श्रीदामा ने शंखचूड़ नामक राक्षस के रूप में जन्म लिया। शंखचूड़ राक्षस जो भगवान विष्णु जी का अपार भक्त के रूप में जाना गया।
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जब श्रीदामा और राधा ने एक-दूसरे को श्रापित किया, तब श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि पृथ्वी पर आपको वृषभानु जी एवं उनकी पत्नी कीर्ति की पुत्री रूप में रहना होगा। वहीं पर आपका विवाह रायाण नाम के एक महाजन से होगा। रायाण मेरा ही एक रूप होगा और वहां भी आप मेरी ही प्रेमिका बन कर रहेंगी।
संसार की दृष्टि से माता कीर्ति गर्भवती हुई और उन्हें प्रसव पीड़ा भी हुई लेकिन देवी कीर्ति के गर्भ में योगमाया की प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्म दिया, जब वह प्रसव पीड़ा से गुजर रहीं थी, उसी समय वहां देवी राधा कन्या के रूप में प्रकट हो गईं।
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व्रत व पूजा विधि-
सुबह सबसे पूर्व स्नान ग्रहण कर सूर्यदेव को जल अर्पण करें। मंदिर में पांच रंग के मंडप सजाएं, उनके ठीक बीचो-बीच मिट्टी या तांबे का कलश रखें। इसके पश्चात इस पात्र के ऊपर सुसज्जित राधा रानी की स्थापना करें। फिर श्री राधा की विधिवत पूजा करें, ध्यान रखें इनकी पूजा दोपहर के समय में ही की जाती है। व्रती ध्यान दें पूजा के बाद उपवास करें और केवल एक समय ही भोजन करें। अगले दिन अपनी श्रद्धा के अनुसार सुहागिन स्त्रियों व ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें। स्वयं भी प्रसाद के रूप में भोजन को ग्रहण कर लें।
व्रत का महत्व-
कृष्ण की प्रिय राधा रानी के जन्मदिन पर व्रत रखने से भगवान कृष्णण तो प्रसन्न होते ही हैं साथ ही साथ मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। राधा नाम संसार के सभी दुखों को हरता है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है।
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