250 मीटर की उंचाई पर स्थित है ये अद्भुत मंदिर, जहां राधा रानी से पहले मोर को लगता है भोग

Edited By Jyoti,Updated: 25 Aug, 2020 03:45 PM

radha rani temple barsana

26 अगस्त को देश के लगभग हर कोने में राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राधा रानी का प्राक्ट्य श्री कृष्ण

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26 अगस्त को देश के लगभग हर कोने में राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राधा रानी का प्राक्ट्य श्री कृष्ण के अवतरण से ठीक 15 दिन बाद भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाना में हुआ था जिस कारण बरसाना को एक पावन तीर्थ माना जाता है। प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी की तरह इस त्यौहार को बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। हालांकि इस बार कोरोना के चलते हर जगह इस त्यौहार को सादही से ही मनाया जाएगा। बताया जाता है कि मथुरा के बरसाना में राधा रानी मंदिर स्थित है, जिसे बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर तथा राधा रानी महल के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष यहां भी राधा अष्टमी तिथि को राधा रानी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में- 
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250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थिता राधा रानी का महल-
राधा जी का यह प्राचीन मंदिर या कहें महस मध्यकालीन है, जो लाल और पीले पत्थर से निर्मित है। ऐसा लोक मत है कि 1675 ई. में राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य और सुंदर मंदिर का निर्माण राजा वीरसिंह ने करवाया था। जिसे तदोपरांत स्थानीय लोगों द्वारा मंदिर में पत्थरों लगवाए गए। बता दें राधा रानी का यह सुंदर और मनमोहक मंदिर लगभग 250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर निर्मित है। जहां जाने के लिए कईं सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। शास्त्रों में राधा श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। यही कारण है कि राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है।  
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श्याम और गौरवर्ण के पत्थर
यहां स्थित बरसाने की पुण्यस्थली अधिक हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम एवं गौरवर्ण के हैं, जिन्हें यहां के निवासी भगवान कृष्ण और उनकी प्रिय राधा रानी के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। 

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बताया जाता है कि बरसाने से नन्दगांव लगभग 4 मील की दूरी पर है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद जी का निवास स्थल था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर एक संकेत नामक स्थल है, जिसके बार में किंवदंतियों के अनुसार श्री कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। कहा जाता है संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान है यहां भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुंदर मेला होता है। 
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राधा रानी से पूर्व मोर को लगता है भोग
राधा रानी के इस महल में राधाष्टमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। मगर इसकी सबसे खास बात ये है कि राधा जी को लड्डुओं और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने से पहले ये भोग सबसे पहले मोर को खिलाया जाता है। इसके पीछे का ये कारण ये बताया जाता है कि मोर को यहां राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। इसलिए पहले इन्हें भोग लगाया जाता है। 

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