सुंदर वादियों में बसे इस मंदिर में शिव जी नहीं, शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं...?

Edited By Jyoti,Updated: 23 Dec, 2021 04:14 PM

rahu mandir uttrakhand

यूं तो हमारे देश यानि भारत में सुंदर वादियों की कोई कमी नहीं है। पर जब घूमने आदि की बात की जाती है, सबसे पहले जिस जगह का मन में विचार आता है वो है उत्तराखंड।

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यूं तो हमारे देश यानि भारत में सुंदर वादियों की कोई कमी नहीं है। पर जब घूमने आदि की बात की जाती है, सबसे पहले जिस जगह का मन में विचार आता है वो है उत्तराखंड। कहा जाता है उत्ताखंड की प्रत्येक जगह नजरों में समा जाने वाली मानी जाती है। इन स्थलों में धार्मिक स्थलों से लेकर पर्यटन स्थल भी शामिल है। वादियों से घिरा उत्तराखंड हर किसी के मन को लुभा लेता है। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं, जो यहां स्थित है। दरअसल हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के पैठाणी क्षेत्र में स्थित राहु मंदिर की। 

बताया जाता है कि ये दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग के रूप में शिव जी नहीं बल्कि राहु देवता को पूजा जाता है। मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब राहु छल से समुद्र मंथन से निकला अमृत पी लिया तो उसे अमर होने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। कहते हैं राहु का कटा हुआ सिर उत्तराखंड के इसी स्थान पर गिरा। जहां सिर गिरा उसी स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया। आपको बता दें कि ऐसा माना जाता है कि आज भी राहु का सिर यहां इस पत्थर के नीचे फंसा हुआ है।

स्कंद पुराण के केदारखंड में इस मंदिर का वर्णन मिलता है जिसके मुताबिक महाभारत के बाद जब पांडव स्वर्गारोहिणी की ओर जा रहे थे तो उन पर राहु दोष लग गया था। जिसके बाद पांडवों के द्वारा राहु दोष से मुक्ति पाने के लिए राहु की पूजा की गई थी। ये उत्तर भारत का एकमात्र राहु मंदिर है जिसका निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा किया गया था। और जिस शैली में केदारनाथ मंदिर बनाया गया है उसी शैली में ये राहु मंदिर भी बनाया गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां शिव के दर्शन करने से राहु दोष से मुक्ति मिल जाती है सावन के महीनों में बैल दान करने से यहां सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

धड़ विहीन की राहू की मूर्ति वाला ये मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी प्राचीन शिल्पकला अनोखी और आकर्षक है। पश्चिममुखी इस प्राचीन मंदिर के बारे में यहां के लोगों का मानना है कि राहू की दशा की शान्ति और भगवान शिव की आराधना के लिए ये मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है। पश्चिम की ओर मुख वाले इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्राचीन शिवलिंग है। मंदिर के शीर्ष पर अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक रूप में गज व सिंह की स्थापना की गई है.. मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर स्थित मंदिरों के शिखर क्षितिज पट्टियों से सज्जित हैं।

मंदिर की दीवारों के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जिनमें राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र उत्कीर्ण हैं। इस मंदिर के बाहर हाथी और शेर की प्रतिमा है जो बहुत ही पुरानी और अनोखी है। इसी कारण मंदिर को राहु मंदिर नाम दिया गया।


 

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