इतिहास की अनूठी दास्तान को दर्शाता है भोपाल का ये किला

Edited By Jyoti,Updated: 20 Sep, 2019 04:50 PM

raisen fort in madhya pradesh bhopal

भोपाल (ब्यूरो रिपोर्ट): भारत में जितने अद्भुत व खूबसूरत मंदिर हैं उससे दोगुना ऐतिहासिक व प्राचीन किले आदि हैं। जो हमारे देश को अधिक खूबसूरत व आकर्षक बनाती हैं।

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भोपाल (ब्यूरो रिपोर्ट): भारत में जितने अद्भुत व खूबसूरत मंदिर हैं उससे दोगुना ऐतिहासिक व प्राचीन किले आदि हैं। जो हमारे देश को अधिक खूबसूरत व आकर्षक बनाती हैं। अब आप समझ तो चुके ही होंगे कि हम आज अपने इस आर्टिकल के माध्यम से आपको एक ऐतिहासिक किले के बारे में बताने जाने वाले हैं। हम बात कर रहे हैं रायसेन के किला की। एतिहासिक मान्यताओं की मानें तो रायसेन का किला इतिहास की अनूठी दास्तान को दर्शाता है। 11 वीं शताब्दी के आस-पास बने इस किले पर कुल 14 बार विभिन्न राजाओं, शासकों ने हमले किए। तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद आज भी यह किला सीना तानकर खड़ा है। बता दें भोपाल से 45 कि.मी. दूर जिला मुख्यालय रायसेन में 1500 से अधिक ऊंची पहाड़ी पर लगभग 10 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ ये किला स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार रायसेन के इस किले का निर्माण एक हजार ईपु का बताया जाता है।
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रायसेन के किला की चार दीवारी में वो हर साधन और भवन हैं, जो अमूमन भारत के अन्य किलों में भी हैं। लेकिन यहां कुछ खास भी है, जो अन्य किलों पर नज़र नहीं आता। किला पहाड़ी पर तत्कालीन समय का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम इसे अन्य किलों से तकनीकी मामलों में अलग करता है।

एक जगह एकत्र होता है पानी
लगभग दस वर्ग कि.मी. में फैले इस किले की पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में एकत्र होता है। नालियां कहां से बनी हैं, उनमें पानी कहां से समा रहा है, कितनी नालियां हैं। ये सब आज तक कोई नहीं जान पाया। सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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गजब का है ईको साउंड सिस्टम
इत्रदान महल के भीतर दीवारों पर बने आले ईको साउंड सिस्टम की मिसाल हैं। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में साफ़ आवाज़ सुनाई देती है। दोनों दीवारों के बीच लगभग 20 फीट की दूरी है। यह सिस्टम आज भी समझ से परे हैं।

किला परिसर में बने सोमेश्वर महादेव मंदिर के अलावा हवा महल, रानी महल, झांझिरी महल, वारादरी, शीलादित्य की समाधी, धोबी महल, कचहरी, चमार महल, बाला किला, हम्माम, मदागन तालाब है।

दुर्ग पर हुए हमले
1223 ई. में अल्तमश

1250 ई. में सुल्तान बलवन

1283 ई. में जलाल उद्दीन खिलजी

1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी

1315ई. में मलिक काफूर

1322 ई. में सुल्तान मोहम्मद शाह तुगलक
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1511 ई. में साहिब खान

1532 ई. में हुमायू बादशाह

1543 ई. में शेरशाह सूरी

1554 ई. में सुल्तान बाजबहादुर

1561 ई. में मुगल सम्राट अकबर

1682 ई. में औरंगजेब

1754 ई. में फैज मोहम्मद

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किला से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं-
17 जनवरी 1532 ई. में बहादुर शाह ने रायसेन दुर्ग का घेराव किया।

06 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावति ने 700 राजपूतानियों के साथ दुर्ग पर ही जौहर किया।

10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।

जून 1543 ई. में रानी रत्नावली सहित कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।

जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी द्वारा किए गए विश्वासघाती हमले में राजा पूरनमल और सैनिकों का बलिदान।
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साल में एक बार खुलता है मंदिर
दुर्ग पर स्थित सोमेश्वर महादेव का मंदिर साल में एक बार ही महाशिवरात्रि पर खुलता है। बताया जाता है पुरातत्व विभाग के अधीन आने पर विभाग ने मंदिर को बंद कर दिया था। 1974 में नगर के लोगों ने एकजुट होकर मंदिर खोलने और यहां स्थित शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा के लिए आंदोलन किया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने महाशिवरात्रि पर खुद आकर शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई। तब से हर महाशिवरात्रि पर मंदिर के ताले श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं और यहां विशाल मेला लगता है। वहीं एक दरगाह हैं जो हिन्दू मुस्लिक एकता की गंगा जमुना तहज़ीब की मिसाल हैं।

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