Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Oct, 2023 10:52 AM
हरी-भरी वादियों, प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण देवभूमि उत्तराखंड सदियों से आकर्षण का केंद्र रही है तथा इसी देवभूमि के शीश मुकुट में एक कोहिनूर हीरे
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Rajaji National Park: हरी-भरी वादियों, प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण देवभूमि उत्तराखंड सदियों से आकर्षण का केंद्र रही है तथा इसी देवभूमि के शीश मुकुट में एक कोहिनूर हीरे की तरह स्थित है- राजाजी राष्ट्रीय उद्यान। प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित राजाजी राष्ट्रीय उद्यान विशालकाय एशियाई हाथियों के उत्कृष्ट प्राकृतिक आवासों में से एक है। हिमालय की तलहटी में शिवालिक तराई में स्थित होने के कारण इस उद्यान के प्राकृतिक परिवेश एवं उसमें निवास करने वाले वन्य जीवों की प्रजाति एवं प्रकार में अद्भुत विविधता है।
हिमालयी और गंगा तटीय समतल भू-भाग की वानस्पतिक एवं जैन विविधताओं का अनूठा संगम है राजाजी राष्ट्रीय उद्यान।
‘सी.आर.’ अथवा ‘राजाजी’ के नाम से प्रख्यात चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाम पर स्थापित है यह राष्ट्रीय उद्यान। वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक राजगोपालाचारी स्वतंत्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। 10 अप्रैल, 1952 से 13 अप्रैल 1954 तक वह मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री रहे। वह गांधीजी के समधी थे (राजा जी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था)। उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया।
Nature lovers paradise प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग
वनाच्दादित पहाड़ियों से सुसज्जित सघन हरीतिया वाले भूदृश्य तथा वादियों में खिलखिलाते झरने तथा वन्य प्राणियों की अद्भुत विविधता से इस राजाजी राष्ट्रीय उद्यान को प्रकृति प्रेमियों तथा वन्य जीवन से लगाव रखने वालों का मनचाहा स्वर्ग बना दिया है।
राजाजी (स्थापित 1948), मोतीचूर (स्थापित 1936) एवं चीला (स्थापित 1977) नामक तीन अभ्यारण्यों को मिलाकर 17 अगस्त 1983 को 820-42 वर्ग कि.मी. में फैले इस उद्यान की स्थापना हुई और भारत रत्न चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाम पर इसका नामकरण ‘राजाजी राष्ट्रीय उद्यान’ किया गया। इसमें सामान्यतः एक विरल निस्तब्धता एवं शांति फैली रहती है जो कभी-कभी हाथियों के चीता, बाघ या गुलदार की झलक पाकर हिरणों द्वारा की गई सचेतक ध्वनि से अथवा पंछियों की चहचहाहट से टूटती है। प्रकृति की इस प्रशांत गोद में कुछ समय बिताकर जाने वाले हर पर्यटक वापसी पर स्वयं को आत्मिक रूप से समृद्ध अनुभव करता है।
Home to 500 elephants 500 हाथियों का आवास
यह ‘प्रोजैक्ट एलीमैंट’ के अंतर्गत चिन्हित किए गए ‘शिवालिक हाथी रिजर्व’ का कोर क्षेत्र भी है। यहां लगभग 500 हाथी अपने नैसिगक स्वरूप में निवास करते हैं। अक्सर यहां हाथियों के बड़े-बड़े झुंड विचरते हुए दिखाई देते हैं। पर्यटकों का कभी-कभी विद्यालकाय गजराज से आकस्मिक सामना अविश्वसनीय घटना बन सकता है। यहां के हाथियों में नर-मादा का अनुपात भी इस प्रजाति द्वारा वासित अन्य क्षेत्रों की तुलना में उत्तम है। यह उद्यान भारतीय उपमहाद्वीप के अंतर्गत बाघों एवं हाथियों के प्राकृतिक वास की उत्तरी-पश्चिमी सीमा निर्धारित करता है।
Diversity of animals जानवरों की विविधता
समुद्र तट से 300 से 1350 मीटर ऊंचाई के बीच फैला यह उद्यान अपने आदिवासी वन्य जन्तुओं की संख्या तथा प्रजातिगत विविधता दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। बाघ, गुलदार, घुरल तथा महाशीर जैसी कुछ लुप्त होती प्रजातियों का भी यह महत्वपूर्ण प्राकृतिक वास है। इसी उद्यान में किसी दुर्गम ढलान पर सहजता से दौड़ लगाते घुरल को देखा जा सकता है जो पर्यटकों हेतु यादगार अनुभव हो सकता है।
Three species of deer हिरणों की तीन प्रजातियां
यहां पर हिरणों की 3 प्रजातियों चीतल, सांभर एवं काकड़ के साथ-साथ हिमालयी भालू, देसी भालू, ऊदबिलाव आदि भी पाए जाते हैं। किंग कोबरा इस उद्यान का विशेष अधिवासी है। इस उद्यान में पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियां है जिनमें 90 से अधिक अप्रवासी है। शीतकाल में ऋषिकेश बैराज से भीमगोड़ा हरिद्वार तक विभिन्न प्रवासी पक्षी विचरण करते सहज ही दिखाई देते हैं। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से प्रकृति की प्रशांत गोद में कुछ समय बिताकर जाने वाला हर पर्यटक वापसी पर स्वयं को आत्मिक रूप से समृद्ध अनुभव करता है। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के निकट स्थित है। यह धार्मिक नगर हरिद्वार एवं ऋषिकेश के भी निकट है। समृद्ध जैव विविधता एवं प्राकृतिक सुन्दरता तथा समीप बसे नगरों के कारण राजाजी राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड के पर्यटन मानचित्र में अपना विशेष स्थान रखता है।
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों हेतु प्रत्येक वर्ष 15 नवम्बर से 15 जून तक खुला रहता है। राष्ट्रीय उद्यान के अंदर विभिन्न आकर्षक स्थानों पर स्थित 9 वन विश्रामगृह लगभग एक शताब्दी पुराने हैं जो सभी आगंतुकों का आजीवन स्मरणीय वन्यजीव अवलोकन के अनुभवों से स्वागत करते हैं। वन विश्राम गृहों का आरक्षण एक माह पूर्व कराया जा सकता है। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण हेतु प्रवेश द्वार से परमिट प्राप्त करना एवं वापस जाने से पहले अदेयता प्रमाण पत्र लेना आवश्यक है। राष्ट्रीय उद्यान के कोर क्षेत्र में जाना एवं ध्वनि यंत्रों का प्रवेश वर्जित है।