Edited By Jyoti,Updated: 15 Jun, 2019 04:38 PM
हमारे देश में ऐसे बहुत ही अजीब-गरीब मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसे जानने के बाद हर कोई दंग रह जाता है। आज हम आपके लिए कुछ ऐसा ही बताने वाले हैं जिसे जानने के बाद यकीनना आप हैरान हो जाएंगे।
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हमारे देश में ऐसे बहुत ही अजीब-गरीब मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसे जानने के बाद हर कोई दंग रह जाता है। आज हम आपके लिए कुछ ऐसा ही बताने वाले हैं जिसे जानने के बाद यकीनना आप हैरान हो जाएंगे। आज भी ऐसी बहुत सी जगहें हैं जहां पीरियड्य यानि मासिक धर्म को लेकर महिलाएं खुल कर बात नहीं कर पातीं। पंरतु वहीं एक ऐसा भी जगह है जहां पीरियड्स को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। जी हां आपको जानकर हैरानो हो रही होगी। हैरान होना लाज़मी भी है। मगर ये सच है ओडिशा में पीरियड्स को एक त्यौहार के तौर पर मनाया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि यह पर्व यहां के मुख्य त्यौहारों में से एक कहा जाता है, जिसे रजो पर्व कहा जाता है। बता दें कि यह पर्व हर साल 14 जून से शुरू होता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व के प्रथम दिन को पहीली रजो, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति, तीसरे दिन भूदाहा व बासी रजा और चौथे दिन को वासुमति स्नान के नाम से जाना जाता है।
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस पर्व में वही स्त्रियां भाग ले सकती हैं, जो मासिक धर्म से गुज़र रही होती हैं। बताया जाता है कि इस दौरान घर के सारे कामकाज़ ठप रहते हैं। घर का सारा काम पुरुष करते हैं, खाना तक भी पुरुष ही बनाते हैं।
यहां की लोक मान्यताओं के अनुसार श्री हरि विष्णु की पत्नी भूदेवी (पृथ्वी) को राजस्वला से गुज़रना पड़ता है। उनका यह पीरियड तीन से चार दिन तक का होता है। इस दौरान ज़मीन से जुड़े सारे काम रोक दिए जाते हैं ताकि भूदेवी को आराम दिया जा सके।
बता दें भारत में धरती (पृथ्वी) को हमेशा से स्त्री का दर्ज़ा दिया गया है। सामान्य तौर पर स्त्री के रजस्वला होने के बाद माना जाता है कि वह संतानोत्पत्ति में सक्षम है। ठीक उसी तरह अषाढ़ मास में भूदेवी रजस्वला होती हैं और खेतों में बीज डाला जाता है ताकि फसल की पैदावार अच्छी हो। यहां कि आम भाषा में रज पर्व को रजो पर्व कहा जाता है। इसके अलावे रजो पर्व को मॉनसून के आगमन का संकेत भी माना जाता है। कहा जाता है कि रजो पर्व के बाद से ही यहां मॉनसून पर्व शुरू हो जाता है। ओडिशा देश का इकलौता राज्य है जहां पीरियड्स पर पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि पश्चिम और दक्षिण ओडिशा में यह परंपरा कई वर्षों से जारी है।