Ram Navami 2025: राम के नाम में छुपा है जीवन का सच्चा सुख, आप भी करें इसका अनुभव

Edited By Prachi Sharma,Updated: 06 Apr, 2025 09:57 AM

ram navami 2025

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि भगवान श्रीराम अपने प्रिय अभिजीत मुहूर्त में अयोध्या के राज भवन में माता कौशल्या के पुत्र के रूप में प्रकट हुए। दोपहर का समय था

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Ram Navami 2025: चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि भगवान श्रीराम अपने प्रिय अभिजीत मुहूर्त में अयोध्या के राज भवन में माता कौशल्या के पुत्र के रूप में प्रकट हुए। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न अधिक धूप थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए क्योंकि श्री राम जी का जन्म सुख का मूल है।

तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं- दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में दिव्य आयुध धारण किए हुए, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले श्री भगवान प्रकट हुए।

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भगवान शिव माता सती से कहते हैं कि ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद, पुराण और शास्त्र नेति-नेति कहकर जिनकी कीर्ति गाते हैं, उन्हीं सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, मायापति, नित्य परम स्वतंत्र, बह्म रूप भगवान श्री रामजी ने अपने भक्तों के हित के लिए अपनी इच्छा से रघुकुल के मणिरूप में अवतार लिया है।

अपने आचरण से श्रेष्ठतम मानव का आदर्श उपस्थित करके मनुष्यों को श्रेष्ठ सेवा धर्म की शिक्षा प्रदान करना और तदनुरूप उन्हें कर्तव्य का बोध कराना ही भगवान श्रीराम जी के अवतरण का मुख्य प्रयोजन है। श्रीमन्नारायण स्वरूप भगवान श्रीराम ने मानव रूप में अवतार लेकर माता-पिता के वचन पालन, सत्यवचन पालन, शरणागतवत्सलता, प्रजा पालन, धर्म, मर्यादा, सेवा, सदाचार  के आचरण से जो शिक्षा दी है, वे सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अनुकरणीय हैं।
उन्होंने जो मर्यादा के मापदंड स्थापित किए, वे शास्त्र मर्यादा बन गए और भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।

श्री रामचरित मानस के एक प्रसंग में भगवान श्रीराम भरत जी से कहते हैं कि मैं समस्त पुराणों और वेदों का निश्चित सिद्धांत तुमसे कहता हूं, कि दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं और दूसरों को दुख पहुंचाने के समान कोई पाप नहीं।
वाल्मीकि रामायण में  माता सीता जी से माता-पिता की सेवा का महत्व बताते हुए कहते हैं कि इनकी आराधना करने से धर्म, अर्थ और काम तीनों प्राप्त होते हैं तथा मनुष्य श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त करता है।

तुलसीदास जी रामचरितमानस में राम राज्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि-
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

रामराज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति तथा मर्यादा में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं।

ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ जी भगवान श्री राम जी से कहते हैं कि सर्वप्रथम मैंने सूर्य वंश की पुरोहिती लेने से मना कर दिया था, परन्तु जब ब्रह्मा जी ने मुझे समझाया कि साक्षात् परब्रह्म परमात्मा मनुष्य रूप धारण कर रघुकुल शिरोमणि होंगे, तब मैंने विचार किया कि जिनकी प्राप्ति के लिए योग, यज्ञ, दान, तपादि आदि सद्कर्म किए जाते हैं, मेरा परम सौभाग्य है कि इतने कर्म मात्र से मैं उन्हें प्राप्त कर लूंगा।

काक भुसुन्ड जी गरूड़ जी से कहते हैं कि अयोध्यापुरी में जब-जब श्री रघुवीर भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करते हैं, तब-तब मैं जाकर श्री रामजी की नगरी में रहता हूं और प्रभु की शिशुलीला देखकर सुख प्राप्त करता हूं। फिर हे पक्षीराज! श्री रामजी के शिशु रूप को हृदय में रखकर मैं अपने आश्रम में आ जाता हूं।

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भगवान शंकर भगवान श्री राम जी के पावन चरित्र की महिमा बताते हुए मां भवानी से कहते हैं :
हे भवानी! श्री रामजी की इन सगुण लीलाओं के विषय में बुद्धि और वाणी के बल से तर्क नहीं किया जा सकता। ऐसा विचार कर जो तत्वज्ञानी और विरक्त पुरुष हैं, वे सब शंका छोड़कर श्री रामजी का भजन ही करते हैं।
भगवान श्री राम सुग्रीव से कहते हैं-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥

-जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते।
अपनी अनुपम भक्ति के बल पर रघुनाथ जी की परम भक्त शबरी तथा जटायु ने परमधाम सहज प्राप्त कर लिया। लंका से जब हनुमान जी सीता जी की खोज करके वापस आए तो रघुवीर बोले- हे हनुमान! तुम्हारे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं तुम्हारा ऋण कभी नहीं चुका सकता।

तुलसीदास जी कहते हैं- जो राम नाम महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा काशी में मुक्ति हेतु इसी राम नाम महामंत्र का उपदेश दिया जाता है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस राम नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं। ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता है। राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं।

वे पुण्यात्मा पुरुष धन्य हैं, जो वेद रूपी समुद्र के मथने से उत्पन्न हुए कलियुग के मल को सर्वथा नष्ट कर देने वाले, अविनाशी, भगवान श्री शंभु के सुंदर एवं श्रेष्ठ मुख रूपी चंद्रमा में सदा शोभायमान, जन्म-मरण रूपी रोग के औषध, सबको सुख देने वाले और श्री जानकीजी के जीवनस्वरूप श्री राम नाम रूपी अमृत का निरंतर पान करते रहते हैं।

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