Ram Prasad Bismil death Anniversary: आज भी रामप्रसाद बिस्मिल के लिखे गीत युवाओं का करते हैं मार्गदर्शन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Dec, 2022 07:34 AM

ram prasad bismil death anniversary

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है, वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है...

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Ram Prasad Bismil death Anniversary 2022: सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है, वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है...

Ram prasad bismil essay: बिस्मिल अजीमाबादी की लिखी इस कविता ने हजारों नौजवानों को स्वतंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर करने की प्रेरणा दी। महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल, जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्र के लिए न्यौछावर कर दिया, ने इन पंक्तियों को अदालत में गाकर देश भर के नौजवानों में जोश भर दिया था।

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When was ram prasad bismil born:
रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक कृषक परिवार में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) शुक्रवार को हुआ और केवल 30 वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, 19 दिसम्बर, 1927 को वह शहीद हुए।

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उनके पिता का नाम मुरलीधर और मां का नाम मूलमती था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पिता के सानिध्य में घर पर हुई। बाद में उर्दू पढ़ने के लिए वह एक मौलवी साहब के पास गए। वह जब नौवीं कक्षा में थे, तब आर्य समाज के सम्पर्क में आए। उन्हें वैदिक धर्म को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। रामप्रसाद बिस्मिल ने अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत का प्रण लिया। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी जीवनचर्या ही बदल डाली। इन्होंने 19 साल की उम्र से ही बिस्मिल के नाम से उर्दू और हिंदी में शक्तिशाली देशभक्ति की कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं।

उनके जीवन पर सबसे अधिक उनकी मां का प्रभाव पड़ा, जिन्होंने सदाचार, कर्तव्यपरायणता और देशभक्ति की शिक्षा अपने बच्चों को दी। रामप्रसाद बिस्मिल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ‘‘यदि मुझे ऐसी माता न मिलती, तो मैं भी अतिसाधारण मनुष्यों की भांति, संसार चक्र में फंसकर जीवन निर्वाह करता।’’

Ram prasad bismil contribution in freedom struggle: आर्य समाज के सदस्य और देशभक्त भाई परमानंद की गिरफ्तारी और फांसी की सजा होने की खबर ने रामप्रसाद बिस्मिल को झकझोर दिया। उनके भीतर स्वतंत्रता की ज्वाला भड़क उठी। इसके बाद से ही उन्होंने विदेशी ताकत को उखाड़ फैंकने का निश्चय कर लिया। मैनपुरी षड्यंत्र केस के प्रसिद्ध क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित से वह काफी प्रभावित हुए। बिस्मिल व दीक्षित दोनों ने मैनपुरी, इटावा, आगरा व शाहजहांपुर आदि जिलों में गुपचुप अभियान चलाया और युवकों को देश की आन पर मर मिटने के लिए संगठित किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘देशवासियों के नाम संदेश’ नामक एक पत्र प्रकाशित किया।

उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के गठन में अहम योगदान दिया, जिसका संविधान पीले रंग के पर्चे पर छाप करके सदस्यों को भेजा गया। 3 अक्तूूबर, 1924 को इस पार्टी की एक कार्यकारिणी-बैठक कानपुर में की गई, जिसमें शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेश चन्द्र चटर्जी व राम प्रसाद बिस्मिल आदि कई प्रमुख सदस्य शामिल हुए। इसमें पार्टी का नेतृत्व बिस्मिल को सौंपकर सान्याल व चटर्जी बंगाल चले गए। पार्टी के लिए फंड एकत्र करने में कठिनाई को देखते हुए आयरलैंड के क्रान्तिकारियों का तरीका अपनाया गया और पार्टी की ओर से पहली डकैती 25 दिसम्बर, 1924 (क्रिसमस की रात) को बमरौली में डाली गई, जिसका कुशल नेतृत्व बिस्मिल ने किया था।

Ram prasad bismil death reason: भारत के स्वतंत्रता संग्राम इतिहास में काकोरी की घटना बेहद महत्वपूर्ण है। इस घटना के बाद भारतीय जनमानस स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्रांतिकारियों की ओर आशा भरी दृष्टि से देखने लगा। क्रांतिकारियों का उद्देश्य ट्रेन से शासकीय खजाना लूटकर उससे हथियार खरीदना था, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके।

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Why was Ram Prasad Bismil sentenced to death: रामप्रसाद बिस्मिल 9 अगस्त, 1925 को चंद्रशेखर आजाद सहित अपने 9 साथियों के साथ सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर पर शाहजहांपुर में सवार हुए। चेन खींचकर उसे रोका और खजाना लूटा गया। इस कार्य में उनके साथ अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल शामिल थे। काकोरी कांड के बाद ब्रिटिश सरकार बेहद गंभीर हो गई और गहन छान-बीन करवाई गई। जांच के बाद यह सिद्ध हो गया कि यह क्रांतिकारियों की योजना थी। देश भर से 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 26 सितम्बर, 1925 को बिस्मिल भी गिरफ्तार कर लिए गए।

महीनों तक मुकद्दमा चला। अंतत: उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी से पहले इस वीर सपूत ने अपनी मां को पत्र लिखा। एक पत्र उन्होंने अपने सबसे प्रिय मित्र अशफाक उल्ला खां को भी लिखा।

 बिस्मिल को 19 दिसम्बर, 1927 को फांसी हुई। उससे पूर्व सुबह वह स्नान कर तैयार हुए। फांसी के फंदे के समीप पहुंचे। उनसे अंतिम इच्छा के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वनाश।’’

उन्होंने भारत ‘माता की जय’ और ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाया और देश की स्वतंत्रता के लिए वीर रामप्रसाद बिस्मिल ने फांसी के फंदे को चूम लिया। उनके बलिदान का समाचार समूचे देश में फैल गया। फूलों की चादर ओड़े बिस्मिल के शव का अंतिम संस्कार किया गया। जब यह सूचना उनकी मां को मिली तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने पुत्र की इस मृत्यु पर प्रसन्न हूं, दु:खी नहीं। मैं श्री रामचन्द्र जैसा ही पुत्र चाहती थी।’’

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती भी बेहद प्रसिद्ध थी। दोनों बेहद अच्छी शायरी और गजल भी लिखते थे। स्वयं रामप्रसाद बिस्मिल बेहतरीन रचनाकार थे। बेहद प्रसिद्ध ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ नामक गीत उन्होंने ही लिखा था। महज तीस वर्ष के जीवन काल में उन्होंने 11 से भी अधिक किताबें लिखीं।   

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