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स्वामी सत्यानंद जी- आध्यात्मिक कमाई जन्म-जन्मांतरों तक काम आती है

Edited By ,Updated: 22 Dec, 2016 02:23 PM

ram sharnam gohana

राम नाम के उपासक हंसराज जी ‘‘राम नाम दीपक बिना, जन मन में अंधेर।। रहे, इससे हे मम मन, नाम सुमाला फेर।।’’ ‘श्री

राम नाम के उपासक हंसराज जी

‘‘राम नाम दीपक बिना, जन मन में अंधेर।।
रहे, इससे हे मम मन, नाम सुमाला फेर।।’’


‘श्री राम शरणम’ गोहाना के संस्थापक, सेवा, सिमरन और भक्ति की साकार मूर्त भक्त हंसराज जी का जन्म 2 अक्तूबर सन 1916 में मंडी चिन्योट जिला झंग (पाकिस्तान) में एक समृद्ध विज परिवार में हुआ। इन्हें सनातनी संस्कार, प्रभु में आस्था और भक्ति में श्रद्धा के संस्कार ‘गुढ़ती’ में ही मिले थे क्योंकि उनके पिता श्री गोपाल दास एवं माता श्रीमती लक्ष्मी देवी अत्यंत धार्मिक प्रवृति के थे और धर्म कर्म में पूरी रुचि रखते थे।
भक्त जी अभी आठ वर्ष के ही थे जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया लेकिन किसे मालूम था कि पिता विहीन यह पुत्र कालान्तर में अपने श्रद्धालुओं के ‘पिता’ जी के रूप में प्रसिद्धि पाएगा। 


अपने दादा श्री बरकत शाह के संरक्षण में इन्होंने कारोबार और हिसाब-किताब को व्यवस्थित रखने की शिक्षा ली और इसके साथ ही दुनियावी सूझ-बूझ। छोटे से छोटे काम को भी मुस्तैदी से करने की आदत भी उन्हीं से सीखी और मेहनत तथा ईमानदारी के संस्कार भी उन्हीं से पाए। भक्त जी के व्यक्तित्व में एक साधक की साधना, एक किसान का कठोर श्रम और एक बनिए जैसी व्यावसायिक सूझ-बूझ मौजूद है।


पथ में प्रकटे सतगुरु, हस्त पकड़ कर आप।
ताप तप्त को शांत कर, दिया नाम का जाप।।


बड़े संयोग से किसी सच्चे गुरु का संपर्क और सान्निध्य प्राप्त होता है। वे शिष्य बड़े भाग्यशाली होते हैं जिन्हें अपने गुरु की अनुकंपा प्राप्त होती है। ऐसे ही परम सौभाग्यशाली भक्त हंसराज जी थे जिन्हें अपने गुरुदेव श्री स्वामी सत्यानंद महाराज का असीम स्नेह, दुलार, विश्वास एवं संरक्षण प्राप्त हुआ और जिनका वरद हस्त सदैव उन पर बना रहा। 


सन् 1934 में जब ये केवल 18 वर्ष के थे कि स्वामी सत्यानंद जी चक्क झुमरा आए हुए थे। भक्त जी तुरंत आर्य समाज मंदिर पहुंच गए जहां स्वामी जी ठहरे हुए थे। कुछ देर मौन व्याप्त रहा। शायद नियति द्वारा निर्धारित वह घड़ी आ गई थी जिसमें मनुष्य का भाग्य उदय होना निश्चित होता है। उसी क्षण स्वामी जी महाराज से राम नाम की दीक्षा ली और अपने आपको उनके चरणों में पूर्णत: समर्पित कर दिया। गुरुदेव ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘आध्यात्मिक कमाई जन्म-जन्मांतरों तक काम आती है। जैसे बैंक में जमा रुपया ब्याज सहित वापस मिल जाता है, नाम जाप उस बैंक में जमा कराई हुई पूंजी है जिसका दीवाला कभी नहीं निकलता। उस कमाई को खूब कमाना, खूब आराधन-मनन करना, सिमरन करना। सिमरन से दुर्गुण दूर होते हैं, कारोबार में उन्नति होती है। मन को शांति और बल मिलता है, निर्भयता का संचार होता है। सेवा को जीवन का आधार बनाना और याद रखना, जितना सेवक उतना ऊंचा।’’


भक्त हंसराज जी महाराज तथा स्वर्गीय कौशल्या देवी जी के सुपुत्र श्री कृष्ण जी अपने पूज्य माता व पिता की भांति अत्यंत विनम्र मृदुभाषी सहज एवं सरल हैं। सच्चे संत का साथ तो उन्हें पिता जी के प्रथम स्पर्श से ही प्राप्त हो गया था। ऐसे आध्यात्मिक एवं राममय परिवेश में पला बालक कृष्ण कितना सौभाग्यशाली है जिसे स्वामी सत्यानंद जी ने अपनी बांहों में झुलाया, अपनी गोद में बिठा कर दुलार किया और उनकी बाल सुलभ इच्छाओं को पूरा किया। 


जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना ही यह है कि जिन्हें हम प्यार करते हैं जिनकी निर्मल छाया में बैठ कर हम अपना जीवन संवारते हैं, उनके लिए कभी यह विचार ही नहीं कौंधता कि वह कभी हमसे बिछुड़ भी सकते हैं। 


‘‘पिता जी के बारे में हम ऐसा ही सोचते थे परंतु 4 सितम्बर, 2014 को पिता जी अन्तत: राम में सदा-सदा के लिए लीन हो गए। उनके लाखों श्रद्धालुओं को यह दुखद एहसास हुआ कि जैसे सिर से पिता का साया उठ गया हो। पिछले 2 वर्ष में कोई भी ऐसा क्षण नहीं आया जब पिता जी का निराकार रूप में राम नाम के सभी उपासकों को आशीर्वाद न मिला हो। प्रचंड ज्योति अखंड ज्योति में लीन हो गई। 


पिता जी ने राम शरणम गोहाना में स्वामी सत्यानंद पब्लिक स्कूल, स्वामी सत्यानंद अस्पताल तथा संजीवनी (प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र) की स्थापना की। इसके अतिरिक्त अमृतसर में राम शरणम अस्पताल, अबोहर का माता कौशल्या अस्पताल, लुधियाना में दयानंद मैडीकल अस्पताल के पास सेवा सदन आज बेमिसाल सेवा के धाम बन चुके हैं।’’

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