Ramakrishna Jayanti: स्वामी जी के ये विचार बदल सकते हैं आपकी सोच

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Mar, 2024 08:13 AM

ramakrishna jayanti

शांति के अग्रदूत स्वामी राम कृष्ण परमहंस का जन्म 17 फरवरी, 1836 को बंगाल के ग्राम कामारपूकूर में श्री खुदीराम के घर मां चंद्रादेवी की कोख से हुआ था। उनका बचपन का नाम गदाधर था। मात्र सात वर्ष की

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ramakrishna Jayanti 2021: शांति के अग्रदूत स्वामी राम कृष्ण परमहंस का जन्म 17 फरवरी, 1836 को बंगाल के ग्राम कामारपूकूर में श्री खुदीराम के घर मां चंद्रादेवी की कोख से हुआ था। उनका बचपन का नाम गदाधर था। मात्र सात वर्ष की अल्प आयु में ही पिता श्री खुदीराम का देहांत हो गया। उनका जीवन संघर्षमय रहा। वह सांसारिक सुखों और धन-दौलत के पीछे नहीं भागे।  उनके भक्त उन्हें हजारों रुपए भेंट में देते थे मगर वह स्वीकार नहीं करते थे। उनके जीवन से हमें बहुत सी सीख मिलती हैं। जैसे कि :

PunjabKesari Ramakrishna Jayanti
सादा जीवन उच्च विचार
23 वर्ष की आयु में  वह कोलकाता के रानी रासमणि के मंदिर में पुरोहित पद पर आसीन हुए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी काली मां की आराधना एवं पूजा-अर्चना में संलग्न रहे। मंदिर की सेवा में लीन, वह सादा जीवन उच्च विचार रखते थे। उनका मानना था कि जब ईश्वर की कृपा हो जाए तो दुनिया के दुख-दर्द नहीं रहते। यदि हम ईश्वर की दी हुई शक्तियों का दुरुपयोग करेंगे तो वह हमें दी हुई शक्तियां हमसे वापस छीन लेंगे। पुरुषार्थ से ईश्वर कृपा का पात्र बना जा सकता है।

माया जाल में फंसने वाला परमात्मा को नहीं पा सकता
जैसे सिर्फ परमहंस ही दूध में से दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता है, दूसरे पक्षी ऐसा नहीं कर सकते, इसी प्रकार साधारण पुरुष मायाजाल में फंस कर परमात्मा को नहीं देख सकता। चिंताओं और दुखों का रुक जाना ही ईश्वर पर निर्भर रहने का सच्चा स्वरूप है, मात्र ईश्वर ही विश्व के पथ प्रदर्शक और सच्चे गुरु हैैं।

आध्यात्मिक ज्ञान का महत्व
जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया उस पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का विष प्रभाव नहीं करता। उनके इन्हीं गुणों के कारण स्वामी विवेकानंद जी उनके परम शिष्य बन गए।

PunjabKesari Ramakrishna Jayanti
नहीं देख सकते थे जनता के दुख
काली माता मंदिर में कठिन तपस्या, साधना से सिद्धि प्राप्त करने के बाद वह अपने परम भक्त मधुर दास विश्वास के साथ वृंदावन, वाराणसी और काशी विश्वेश्वर के लिए रेल यात्रा पर निकले।  यात्रा के दौरान वह साथियों सहित बिहार के एक गांव वर्धमान के पास रुके।

उन दिनों बिहार अकाल की चपेट में था। अन्न और जल दोनों की कमी थी। जनता दुख और कष्टों से बेहाल थी। करूणामय श्री राम कृष्ण परमहंस इस अवस्था को बर्दाश्त न कर सके।

वह अपने साथी माथुर बाबू से बोले, ‘‘देखो भारत मां की संतान कैसे दीन और हीन भाव से ग्रस्त है। आप इन दरिन्द्रनारायण के भरपेट भोजन की व्यवस्था करो, तभी मैं यहां से आगे जाऊंगा। मैं उन्हें तड़पते-बिलखते नहीं देख सकता।’’

शांति के अग्रदूत थे स्वामी जी
स्वामी परमहंस जो शांति के अग्रदूत थे, उन्हें साक्षात नारायण ही उन देहों में दिख रहे थे। वह उन लोगों के साथ बैठ गए। जब तक इन नर-नारायणों की सेवा नहीं करोगे तब तक मैं यहां से नहीं हिलूंगा।

उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। तब माथुर बाबू कोलकाता गए और राशन की व्यवस्था की तथा करूणामयी श्री राम कृष्ण परमहंस की इच्छानुसार उनकी सेवा की। उनके इस असीम प्रेम से उन लोगों के चेहरों पर मुस्कान की लहर दौड़ गई। तब नन्हे बालक की भांति खुश होकर श्री राम कृष्ण परमहंस जी आगे की यात्रा पर रवाना हुए।

Sri Ramakrishna Paramahansa jayanti- 16 अगस्त, 1886 को स्वामी परमहंस गले के रोग के कारण मृत्यु शैया पर पड़ गए। नश्वर शरीर त्याग कर इस भवसागर को पार कर गए। उनका अंतिम संस्कार काशीपुर घाट पर किया गया। चंदन की चिता पर श्री राम कृष्ण परमहंस के शरीर के तत्व धारा और वायुमंडल में समा गए और हमें आत्मज्ञान, आत्मगौरव का पाठ पढ़ा गए।

Who is Ramakrishna Jayanti- श् री राम कृष्ण परमहंस के परलोक गमन के बाद उनकी संस्थाओं की गद्दी पर उनके प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद जी को बैठाया गया।  जो व्यक्ति दूसरों के दुख-दर्द अपना समझकर उनकी मदद करता है वही परमात्मा के निकट होने का अधिकारी बनता है।

PunjabKesari Ramakrishna Jayanti

 

 

 

Related Story

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!