Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jul, 2023 07:33 AM
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प्रसंग उस समय का है जब बंगाल में एक जमींदार परिवार की रानी रासमणि ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना की थी। कहते हैं रानी मछुआरे के परिवार से
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Ramakrishna Paramhansa story: प्रसंग उस समय का है जब बंगाल में एक जमींदार परिवार की रानी रासमणि ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना की थी। कहते हैं रानी मछुआरे के परिवार से ताल्लुक रखती थीं, इसलिए वहां के ब्राह्मणों ने पूजा कराने से इंकार कर दिया। अंत में रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई रामकुमार ने वहां पूजा कराना स्वीकार किया।
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उनके साथ छोटे भाई गदाधर (रामकृष्ण) और भांजे हृदयराम मुखोपाध्याय भी वहीं पहुंचे। जिस दिन मंदिर में काली मां की मूर्ति की स्थापना हुई उस दिन बड़ा आयोजन रखा गया था। तरह-तरह के व्यंजनों का इंतजाम था। दूर-दूर से आकर लोगों ने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया।
पूजा समाप्त होने पर रानी ने पुजारी रामकुमार को भोजन के लिए बुलावा भेजा। वह छोटे भाई गदाधर को तलाशने लगे। जब वह कहीं नजर नहीं आए तो रामकुमार चिंतित हो उठे। भांजे को साथ लेकर वह गदाधर को तलाशने निकल पड़े। भटकते-भटकते वह गंगा की तरफ गए।
सुनसान जगह होने के चलते उधर कोई नहीं जाता था। दूर से ही गाने की आवाज सुनकर दोनों चौंक उठे। नजदीक जाकर देखा तो गदाधर भाव-विभोर होकर काली मां का भजन गा रहे थे। भजन पूरा होने तक रानी रासमणि भी वहां पहुंच गईं।
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भजन समाप्त होने पर रामकुमार ने कहा, ‘‘गदाधर! मैंने तुम्हें कहां-कहां नहीं तलाशा, तुम यहां बैठे हो। चलो भोजन कर लो।’’
गदाधर ने जवाब दिया, ‘‘नहीं। वहां का भोजन खाने लायक नहीं है। उस भोजन में अहंकार की बू आ रही थी, इसलिए मुझसे नहीं खाया गया।’’
भोजन में अहंकार कैसे? खिलाने वाले खिलाए जा रहे थे और बड़े ही घमंड से भोजन की तारीफ किए जा रहे थे। जहां भाव नहीं हो, वहां भोजन नहीं करना चाहिए।
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