Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jan, 2024 10:39 AM
सौ योजन चौड़े विशाल समुद्र को पार कर हनुमान जी आकाश में उड़ते हुए शीघ्र ही लंका नगरी के निकट जा पहुंचे। वहां का दृश्य बड़ा ही सुहावना था। चारों ओर
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Ramayan Story: सौ योजन चौड़े विशाल समुद्र को पार कर हनुमान जी आकाश में उड़ते हुए शीघ्र ही लंका नगरी के निकट जा पहुंचे। वहां का दृश्य बड़ा ही सुहावना था। चारों ओर तरह-तरह के सुंदर वृक्ष लगे हुए थे। सुंदर फूल खिले हुए थे। भांति-भांति के पक्षी आनंद में चहक रहे थे। शीतल, मंद, सुगंधित हवा बह रही थी। बड़ा मनमोहक दृश्य था। लेकिन श्री हनुमान जी का मन इस प्राकृतिक छटा में डूबे बिना लंका में प्रवेश करने की योजना बनाने में व्यस्त था।
महावीर हनुमान जी ने सोचा कि माता सीता जी को रावण ने जिस स्थान में छुपा रखा है, उसका पता तो मुझे लगाना ही है, साथ ही मुझे यहां के बारे में अन्य आवश्यक बातें भी जान लेनी चाहिएं। मुझे यहां पूरी सेना के ठहरने लायक स्थान, जल-फल की सुविधा आदि का पता भी करना चाहिए।
हनुमान जी ने सोचा कि रावण का किला दूर से ही देखने पर अत्यंत दुर्गम मालूम पड़ता है। अत: युद्ध के विचार से इसकी एक-एक बात का पता लगा लेना भी आवश्यक है परन्तु अपने असली रूप में और वह भी दिन के उजाले में इस नगरी में प्रवेश करना तो बहुत बड़ी भूल होगी। इसलिए रात में सबके सो जाने पर सूक्ष्म वेश धारण करके ही मेरा इस नगरी में प्रवेश करना उचित होगा।
रात हो जाने पर मच्छर के समान अत्यंत छोटा वेश बनाकर तथा मन ही मन प्रभु श्री रामचंद्र जी का स्मरण करते हुए हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया। चारों ओर भयानक और विकराल राक्षस-राक्षसों का पहरा था। यह नगरी बहुत अच्छी तरह बसाई गई थी। सड़कें, चौराहे सब बड़े सुंदर थे। उसके चारों ओर समुद्र था। पूरी नगरी सोने की बनी हुई थी। स्थान-स्थान पर सुंदर बगीचे और जलाशय बने हुए थे।
हनुमान जी अत्यंत सावधानी के साथ आगे बढ़ रहे थे कि लंका की रक्षा करने वाली लंकिनी राक्षसी ने उन्हें पहचान लिया। उसने आगे बढ़कर हनुमान जी को डराते हुए कहा, ‘‘अरे! तू कौन है, जो चोर की तरह छिपकर लंका में प्रवेश कर रहा है? क्या तुझे यह पता नहीं कि लंका में घुसने वाले चोर ही मेरे आहार हैं? इससे पहले कि मैं तुझे खा जाऊं, तू अपना रहस्य बता दे कि यहां क्यों आया है?’’
हनुमान जी ने सोचा कि यदि मैं इससे किसी प्रकार का विवाद करता हूं तो शोर सुनकर बहुत से राक्षस यहां इकट्ठे हो जाएंगे। अत: मुझे इसे बेहोश करके आगे बढ़ जाना चाहिए। यह सोच कर उन्होंने बाएं हाथ की मुठी से उस पर प्रहार किया। उस प्रहार से वह मुंह से खून फेंकती हुई बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। परन्तु शीघ्र ही पुन: उठकर खड़ी हो गई।
उसने कहा, ‘‘वानर वीर! अब मैंने तुम्हें पहचान लिया है। तुम भगवान श्री रामचंद्र जी के दूत हनुमान हो। मुझसे बहुत पहले ब्रह्मा जी ने कहा था कि त्रेतायुग में हनुमान नामक एक वानर लंका में सीता जी की खोज करता हुआ आएगा। तू उसकी मार से बेहोश हो जाएगी। जब ऐसा हो तब समझना कि शीघ्र ही सारे राक्षसों के साथ रावण का संहार होने वाला है। वीर रामदूत हनुमान, अब तुम निर्भय होकर लंका में प्रवेश करो। मेरा परम सौभाग्य है कि ब्रह्मा जी की कृपा से मुझे श्री रामदूत के दर्शन हुए।’’
इसके बाद हनुमान जी सीता जी की खोज करते हुए आगे की ओर बढ़ चले।