mahakumb

Ramayan: कैकेयी से अच्छी मां संसार में हो ही नहीं सकती, जानें पूरा सच

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Oct, 2020 12:30 PM

ramayan ram ki maa kaikai

कैकेयी जी केकय नरेश की पुत्री तथा अयोध्या नरेश दशरथ की तीसरी पटरानी थीं। यह अनुपम सुंदरी, बुद्धिमान, साध्वी और श्रेष्ठ वीरांगना थीं। महाराज दशरथ इनसे सर्वाधिक प्रेम करते थे। इन्होंने देवताओं और असुरों के

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

कैकेयी जी केकय नरेश की पुत्री तथा अयोध्या नरेश दशरथ की तीसरी पटरानी थीं। यह अनुपम सुंदरी, बुद्धिमान, साध्वी और श्रेष्ठ वीरांगना थीं। महाराज दशरथ इनसे सर्वाधिक प्रेम करते थे। इन्होंने देवताओं और असुरों के संग्राम में महाराज दशरथ के साथ सारथी का कार्य करके अनुपम शौर्य का परिचय दिया और महाराज दशरथ के प्राणों की दो बार रक्षा की।

यदि शम्बरासुर के साथ संग्राम में महाराज के साथ महारानी कैकेयी न होतीं तो उनके प्राणों की रक्षा असंभव थी। महाराजा दशरथ ने अपनी प्राण रक्षा के लिए इनसे दो वर मांगने का आग्रह किया और इन्होंने समय आने पर मांगने की बात कह कर उनके आग्रह को टाल दिया। इनके लिए पति प्रेम के आगे संसार की सारी वस्तुएं तुच्छ थीं।

महारानी कैकेयी भगवान श्री राम के साथ सर्वाधिक स्नेह करती थीं। श्री राम के युवराज बनाए जाने का संवाद सुनते ही वह आनंदमग्न हो गईं। मंथरा के द्वारा यह समाचार पाते ही इन्होंने उसे अपना मूल्यवान आभूषण प्रदान किया और कहा, ‘‘मंथरे! तूने मुझे बड़ा ही प्रिय समाचार सुनाया है। मेरे लिए श्री राम अभिषेक के समाचार से बढ़कर दूसरा कोई प्रिय समाचार नहीं हो सकता। इसके लिए तू मुझसे जो भी मांगेगी, मैं अवश्य दूंगी।’’

इसी से पता लगता है कि वह श्री राम से कितना प्रेम करती थीं। इन्होंने मंथरा की विपरीत बात सुनकर उसकी जीभ तक खींचने की बात कही।

इनके श्री राम के वन गमन में निमित्त बनने का प्रमुख कारण श्री राम की प्रेरणा से देवकार्य के लिए सरस्वती देवी द्वारा इनकी बुद्धि का परिवर्तन कर दिया जाना था। महारानी कैकेयी ने भगवान श्री राम की लीला में सहायता करने के लिए जन्म लिया था। यदि श्री राम का अभिषेक हो जाता तो वन गमन के बिना श्री राम का ऋषि-मुनियों को दर्शन, रावण वध, साधु परित्राण, दुष्ट विनाश, धर्म संरक्षण आदि अवतार के प्रमुख कार्य नहीं हो पाते। इससे स्पष्ट है कि कैकेयी जी ने श्री राम की लीला में सहयोग करने के लिए ही जन्म लिया था, इसके लिए इन्होंने चिरकालिक अपयश के साथ पापिनी, कुलघातिनी, कलंकिनी आदि अनेक उपाधियों को मौन रह कर स्वीकार कर लिया।

चित्रकूट में जब माता कैकेयी श्री राम से एकांत में मिलीं, तब इन्होंने अपने नेत्रों में आंसू भर कर उनसे कहा, ‘‘हे राम! माया से मोहित होकर मैंने बहुत बड़ा अपकर्म किया है। आप मेरी कुटिलता को क्षमा कर दें क्योंकि साधुजन क्षमाशील होते हैं। देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए आपने ही मुझसे यह कर्म करवाया है। मैंने आपको पहचान लिया है। आप देवताओं के लिए भी मन, बुद्धि और वाणी से परे हैं।’’

भगवान श्री राम ने उनसे कहा, ‘‘महाभागे! तुमने जो कहा, वह मिथ्या नहीं है। मेरी प्रेरणा से ही देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए तुम्हारे मुख से वे शब्द निकले थे। उसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। अब तुम जाओ। सर्वत्र आसक्ति रहित मेरी भक्ति के द्वारा तुम मुक्त हो जाओगी।’’

भगवान श्री राम के इस कथन से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि कैकेयी जी श्री राम की अंतरंग भक्त, तत्वज्ञान-सम्पन्न और सर्वथा निर्दोष थीं। इन्होंने सदा के लिए अपमान का वरण करके भी श्री राम की लीला में अपना विलक्षण योगदान दिया।

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!