Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Aug, 2023 09:54 AM
रावण की लंका पूरी की पूरी सोने की बनी हुई थी। हनुमान जी उसे जितना जलाते थे, उसकी चमक-दमक उतनी ही बढ़ती जाती थी। यह देख कर उन्हें बड़ी
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Ramayana story: रावण की लंका पूरी की पूरी सोने की बनी हुई थी। हनुमान जी उसे जितना जलाते थे, उसकी चमक-दमक उतनी ही बढ़ती जाती थी। यह देख कर उन्हें बड़ी चिंता हुई। उन्होंने सोचा कि मेरे द्वारा जलाए जाने से लंका की सुंदरता पहले से भी अधिक निखरती जा रही है। इसे किसी प्रकार काली और कुरूप बनाना चाहिए। उन्हें याद आया कि रावण ने अपने यहां अन्य बहुत से देवताओं के साथ शनि देवता को भी बंदी बना रखा है। उन्होंने तुरंत रावण के बंदीगृह में पहुंच कर शनि देवता के बंधन खोल दिए।
बंधन खुलते ही शनि देवता ने पहले हनुमान जी की ही ओर देखा। उनके देखते ही महावीर पवन पुत्र हनुमान जी का लाल मुंह एकदम काला पड़ गया।
हनुमान जी ने हंस कर कहा, ‘‘भगवान ! आपने यह क्या किया ? आपने तो मेरे ही मुंह को काला बना दिया। मैं रामदूत पवन पुत्र हनुमान हूं। आप शीघ्र लंका की ओर पूरी तरह से निहारने की कृपा करें, ताकि यह एकदम काली पड़ जाए।’’
शनिदेव ने हनुमान जी की बात मानकर तुरंत लंका की ओर देखा। उनकी दृष्टि पड़ते ही रावण की वह सोने की चमचमाती हुई लंकापुरी एकदम काली और कुरूप हो गई। अपनी प्यारी लंका की यह दशा देख कर रावण जोर-जोर से विलाप करने लगा। लंका नगरी को पूरी तरह से जला कर हनुमान जी अपनी पूंछ की आग बुझाने और थकान मिटाने के लिए समुद्र में कूद पड़े। वहां पूंछ की आग बुझा कर और थकान मिटाकर वह माता सीता जी के चरणों में हाथ जोड़कर पुन: खड़े हो गए।
उन्होंने कहा, ‘‘माता, अब मैं आपका समाचार प्रभु श्री रामचंद्र जी को देने के लिए उनके पास वापस जाना चाहता हूं। लंका का बहुत-सा गुप्त भेद मैंने जान लिया है। अब मेरे वहां पहुंचते ही प्रभु श्री रामचंद्र जी सारे वानरों, भालुओं के साथ लंका पर चढ़ाई करेंगे। वह सारे राक्षसों सहित रावण का वध करके आपको यहां से ले चलेंगे।’’
‘‘हे जननी ! मैं स्वयं आपको इन राक्षसों के चंगुल से छुड़ाकर ले जाने में समर्थ हूं लेकिन इससे भगवान श्री राम जी की मर्यादा की हानि होगी। लोग सोचने और कहने लगेंगे कि भगवान राम ने स्वयं अपने हाथों सीता जी का उद्धार नहीं किया। माता ! अब आप शोक न करें। अति शीघ्र ही आपको लक्ष्मण जी सहित परम प्रभु श्री राम चंद्र जी के दर्शन प्राप्त होंगे।
हां, आपसे मेरा एक निवेदन है कि जैसे प्रभु श्री रामचंद्र जी ने मुझे पहचान के रूप में आपको देने के लिए अपनी मुद्रिका प्रदान की थी, उसी प्रकार आप भी मुझे पहचान के लिए कोई वस्तु देने की कृपा करें।’’
हनुमान जी की बातें सुनकर माता सीता जी ने ‘चूड़ामणि’ नामक अपना आभूषण उन्हें प्रदान करते हुए कहा, ‘‘पुत्र हनुमान ! यह चूड़ामणि प्रभु के चरणों में रख कर उनसे कहना कि यदि अब उनके यहां आगमन में एक मास से अधिक विलम्ब हुआ तो मैं स्वयं को जीवित न रख सकूंगी।’’
यह कह कर माता सीता जी भगवान श्री रामचंद्र जी की याद में करुण विलाप करने लगीं। हनुमान जी ने बहुत प्रकार से उन्हें समझाया और फिर उनसे विदा लेकर वह अत्यंत शीघ्रता से भगवान श्री राम चंद्र जी के पास पहुंचने के लिए आकाश की ओर उछल पड़े।