Edited By ,Updated: 12 Apr, 2017 11:30 AM
सुखद और खुशहाल जीवन व्यतित करने के लिए श्रीरामचरितमानस की शिक्षाएं जितनी कल सहायक थी उतनी ही आज हैं।
सुखद और खुशहाल जीवन व्यतित करने के लिए श्रीरामचरितमानस की शिक्षाएं जितनी कल सहायक थी उतनी ही आज हैं। ये एक ऐसा ग्रंथ है, जिसका कोई भी पात्र ऐसा नहीं है, जिससे शिक्षा प्राप्त न की जा सके। प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी रावण की बहन शूर्पणखा का जब श्रीलक्ष्मण ने नाक काट दिया, वो क्रोध में भरी हुई अपने भाई के पास आकर खूब भला-बुरा बोलती है। इस सब में एक पते की बात बोलती है-
सोरठा
रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।
अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन।।
अर्थात- अपनी ताकत के अभिमान में कभी भी शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, स्वामी और सर्प को दुर्बल न समझें। यह कभी भी आपका अहित कर सकते हैं।
शत्रु
अपने दुश्मन को कमजोर समझने वाला महामूर्ख होता है। हाथी विशाल काया का मालिक होता है, बड़े-बड़े महारथी उसके आगे घुटने टेक देते हैं लेकिन एक छोटी सी तुच्छ चिंटी उसे मौत के घाट उतारने की शक्ति रखती है।
रोग
शरीर को जब कोई रोग लग जाता है तो व्यक्ति चाह कर भी संसार का कोई सुख प्राप्त नहीं कर पाता। छोटी सी छोटी बीमारी भी जानलेवा रोग बनने में समय नहीं लगाती। तंदरूस्त तन ही स्वस्थ मन को जन्म देता है।
अग्नि
आग की एक छोटी सी चिंगारी, बड़े से बड़े जंगल को खाक करने की क्षमता रखती है। इससे बच कर रहें, कभी भी ये विकराल रूप लेकर किसी भी चीज को तबाह कर सकती है।
पाप
परमात्मा मनुष्य को पाप-पुण्य प्रदान नहीं करता। प्रकृति ही ऐसा करती है। ज्ञान-अज्ञान से आवृत्त होता है। यही कारण है कि सारे जीव भ्रमित होते रहते हैं। ब्रह्म उन्हीं के लिए प्रकट होता है जिन्होंने आत्मज्ञान द्वारा अज्ञान को हटा दिया है। वहीं इस भव के जन्म और मृत्यु रूपी चक्र पर विजय पाते हैं।
स्वामी
किसी भी व्यक्ति को अपने मालिक को छोटा समझने की भुल नहीं करनी चाहिए। वह जब चाहे अपने नौकर का अहित कर सकता है।
सांप
सांप एक जहरीला जीव है। उसके काटने से किसी भी व्यक्ति की संसारिक लीला उसी समय समाप्त हो जाती है। उसे कभी भी कमजोर समझने की गलती न करें।