Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 May, 2023 11:49 AM
देश के महान क्रांतिकारियों में से एक रास बिहारी बोस ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत के साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस को ‘आजाद हिन्द फौज’ की कमान सौंपी थी
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Birth anniversary of Rash Behari Bose 2023: देश के महान क्रांतिकारियों में से एक रास बिहारी बोस ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत के साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस को ‘आजाद हिन्द फौज’ की कमान सौंपी थी। उनका जन्म 25 मई, 1886 को बंगाल के वर्धमान जिले के ‘सुबालदाह’ गांव में मां भुवनेश्वरी देवी और पिता विनोद बिहारी बोस के घर हुआ। मात्र 3 वर्ष की आयु में इन्होंने अपनी मां को खो दिया जिसके बाद इनकी मामी ने इनका पालन-पोषण किया। बचपन से ही इन्होंने महामारी और सूखे का दौर तथा ब्रिटिश साम्राज्य के जुल्म देखे जिससे इनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत भर गई।
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रास बिहारी बोस की कॉलेज शिक्षा चंदननगर के डुप्लेक्स कॉलेज में हुई जहां के प्राचार्य चारू चंद्र रॉय ने उन्हें क्रांतिकारी राजनीति के लिए प्रेरित किया। बाद में इन्होंने फ्रांस और जर्मनी से मैडीकल साइंस और इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की। रास बिहारी बोस के क्रांतिकारी कार्यों का प्रमुख केंद्र वाराणसी रहा।
23 दिसम्बर,1912 को हाथी पर सवार भारत के वायसराय गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग की सवारी दिल्ली के चांदनी चौक में निकाली जा रही थी तो बसन्त कुमार विश्वास ने हार्डिंग की बग्गी पर रास बिहारी बोस द्वारा बनाया बम फैंका लेकिन निशाना चूक गया। पुलिस ने बसंत को पकड़ लिया लेकिन भगदड़ का लाभ उठाकर रास बिहार रातों-रात रेलगाड़ी से देहरादून पहुंच गए जहां वह फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट में हैड क्लर्क थे।
अगले दिन उन्होंने कार्यालय में इस तरह काम किया जैसे कुछ पता ही न हो। फिर उन्होंने एक सभा बुला कर अंग्रेजों को दिखाने के लिए हार्डिंग पर हुए हमले की निंदा भी की। पुलिस की बढ़ी सख्ती को देखते हुए जून 1915 में राजा पी. एन. टैगोर के नाम से वह जापान पहुंचे और वहां रहकर देश की आजादी के लिए काम करने लगे। उन्होंने वहां अंग्रेजी अध्यापन के साथ-साथ लेखक व पत्रकार के रूप में भी काम किया और ‘न्यू एशिया’ नामक एक समाचार पत्र निकाला।
इतना ही नहीं, उन्होंने जापानी भाषा सीखी और 16 पुस्तकें लिखीं। इन्होंने टोक्यो में होटल खोल कर भारतीयों को संगठित किया तथा ‘रामायण’ का जापानी भाषा में अनुवाद किया। जापान के प्रसिद्ध पैन एशियाई समर्थक ‘सोमा आइजो’ और ‘सोमा कोत्सुको’ की पुत्री ‘तोशिको सोमा’ से उनका विवाह हुआ जिससे उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुई।
एक सम्मेलन में उन्होंने भारत की आजादी के लिए सेना बनाने का प्रस्ताव पेश किया और 28 मार्च 1942 को टोक्यो में ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग’ की स्थापना का निर्णय लिया गया। 22 जून, 1942 को रासबिहारी बोस ने बैंकाक में लीग का दूसरा सम्मेलन बुलाया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और उसका अध्यक्ष बनने के लिए आमन्त्रित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।
जापान द्वारा मलय और बर्मा के मोर्चे पर पकड़े भारतीय युद्धबंदियों को लीग में शामिल होने और अंतत: ‘आजाद हिंद फौज’ का सैनिक बनने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ‘आजाद हिंद फौज’ देश की पूर्वोत्तर सीमा तक पहुंच गई थी लेकिन विश्व युद्ध में जापान की हार ने बाजी पलट दी।
21 जनवरी, 1945 को रास बिहारी बोस का निधन हो गया। उनके निधन के 2 वर्ष बाद आजाद भारत का उनका सपना पूरा हुआ। निधन से कुछ समय पहले जापान सरकार ने उन्हें ‘आर्डर ऑफ द राइजिंग सन’ के सम्मान से अलंकृत किया था।