Edited By Prachi Sharma,Updated: 04 Feb, 2024 07:20 AM
पंचांग के अनुसार हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर रथ सप्तमी मनाई जाती है। इसे अचला सप्तमी, भानु सप्तमी और सूर्य जयंती
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Rath Saptami 2024: पंचांग के अनुसार हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर रथ सप्तमी मनाई जाती है। इसे अचला सप्तमी, भानु सप्तमी और सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। रथ सप्तमी के दिन मुख्य रूप से सूर्य देव की पूजा की जाती है। शास्त्रों में अनुसार इस दिन सूर्य देव का अवतरण हुआ था। मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करता है उसे आरोग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार कुंडली में सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना अवश्य करनी चाहिए। तो चलिए अब ऐसे में जानते हैं रथ सप्तमी की तिथि और मुहूर्त।
When is Rath Saptami कब है रथ सप्तमी 2024
पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 15 फरवरी को सुबह 10 बजकर 12 मिनट से शुरू हो रही है और 16 फरवरी दिन शुक्रवार को इसका समापन होगा। उदया तिथि के अनुसार 16 फरवरी के दिन अचला सप्तमी मनाई जाएगी।
Rath Saptami auspicious time रथ सप्तमी शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त- सुबह 5 बजकर 17 मिनट से लेकर सुबह 06 बजकर 59 मिनट तक।
इस दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
Achala Saptami auspicious yoga अचला सप्तमी शुभ योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है। ये योग सुबह से लेकर दोपहर 3 बजकर 18 मिनट तक है। इसके बाद इंद्र योग बनेगा। इसी के साथ आपको बता दें कि रथ सप्तमी के दिन भद्रा स्वर्ग लोक में निवास करेंगी। कहते हैं जब भद्रा स्वर्ग लोक होती हैं तो पृथ्वी के समस्त लोगों को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Importance of Rath Saptami रथ सप्तमी का महत्व
मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव ने पूरी पृथ्वी को प्रकाशमय किया था। इस वजह से इस दिन सूर्य जयंती मनाई जाती है। यूं भी कहा जा सकता है इस दिन सूर्य देव का जन्मदिन मनाया जाता है।
Chant these mantras इन मंत्रों का करें जाप
ऊँ घृणि सूर्याय नम:
ऊँ सूर्याय नम:
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।