Edited By Jyoti,Updated: 22 Jun, 2022 03:03 PM
“रावण” एक ऐसा नाम जो लगभग हर व्यक्ति ने अपने जीवन में कभी न कभी सुना है। बात करें हिंदू धर्म से जुड़े लोगों की तो इन्हें तो न केवल इनके नाम के बारे मे ही बल्कि इनके चरित्र से जुड़ी भी कई बातें
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“रावण” एक ऐसा नाम जो लगभग हर व्यक्ति ने अपने जीवन में कभी न कभी सुना है। बात करें हिंदू धर्म से जुड़े लोगों की तो इन्हें तो न केवल इनके नाम के बारे मे ही बल्कि इनके चरित्र से जुड़ी भी कई बातें भी पता होंगी। आप सही सोच रहे हैं, आज हम आपको इस आर्टिकल में रामायण के इस प्रुमख पात्र के बारे में ही बात करने जा रहे हैं। आप में से काफी लोग जहां इनसे रूबरू हैं, वहीं आज भी ऐसे कुछ लोग हैं जो इनसे पूरी तक अंजान है। तो चलिए बिना देर किए हुआ जानते हैं रामायण में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले लंकापति राजा रावण के बारे में-
धर्म ग्रंथों आदि में रावण से जुड़े उल्लेख के अनुसार रावण लंकापति के राजा माने जाते थे। हालांकि जिस लंका के वो राजा कहलाते थे वो असल में भगवान शिव की थी, जिसे रावण ने वरदान में मांगा था। ये न केवल रामाणय के मुख पात्र के तौर पर जाने जाते हैं बल्कि इनमें ऐसी कई विशेषताएं थी जिस कारण इन्हें आदर-सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। परंतु अपनी मां के राक्षस कुल के चलते ही रावण में राक्ष्सी गुण पैदा हुए अतः वह ब्राह्मण होने के बाद हमेशा एक असुर के नजरिए से देखे गए। बता दें ये अपने दस सिरों के चलते दशानन नाम से भी अति प्रसिद्ध थे। ये दस सिर उन्होंने असुरी शक्ति की मदद से ही प्राप्त किए थे।
रामकथा के दौरान एक प्रसंग ऐसा आता है जिसमें इन्हें श्री राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने वाला पात्र माना गया है। शाकद्वीपीय ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र तथा ऋषि विश्रवा के पुत्र लंकेश शिव के परम भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी थे।
कहा जाता है ये अपने समय के सबसे बड़े विद्वान थे। इस बात का प्रमाण है रामायण का वो प्रसंग जिसमें जब रावण मृत्यु शय्या पर थे तब श्री राम ने लक्ष्मण जी को उनके पैरों की तरफ बैठकर उनसे राजपाट चलाने और नियंत्रित करने के गुण सीखने के लिए कहा था। कथाओं के अनुसार रावण के शासन काल में लंका का तेज अपने चरम पर था इसलिए उसकी लंका को सोने की लंका व सोने की नगरी भी कहा जाता था।
रावण का जन्म-
पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार सतयुग के असुर हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में इस बात का वर्णन किया है कि त्रेता युग में रावण का जन्म श्राप के चलते हुआ था।
बात करें रावण के दस सिरों की तो इससे भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसके अनुसार एक बार जब रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए गए थे तब जैसे राम जी उनके सिर को काटकर गिराते वैसे ही उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता। प्रचलित किंवदंतियों की मानें तो असल में रावण के ये सिर कृत्रिम यानि आसुरी माया से बने हुए थे। कथाओं के मुताबिक श्री राम द्वारा एक-एक दिन रावण के एक-एक सिर काटने पर भी जब रावण का वध नहीं हुआ तो दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को श्री राम ने उनकी नाभि पर वार किया कर और उन्हें मुक्ति दिलाई थी।
रावण से जुड़ी कुछ रोचक बातें-
रावण के दादा जी का नाम प्रजापति पुलस्त्य था जो ब्रह्मा जी के दस पुत्रों में से एक थे। जिसका अर्थ ये हुआ कि रावण ब्रह्मा जी का पड़पौत्र थे। हालांकि शास्त्रों के अनुसार रावण ने अपने पिता जी और दादाजी से हटकर धर्म का साथ न देकर अधर्म का साथ दिया था। बात करें हिन्दू ज्योतिषशास्त्र के लिहाज़ से तो इसमें भी रावण ने अपना अहम योगदान दिया है। बता दें रावण संहिता नामक ज्योतिष विद्या से जुड़े ग्रंथ की रचना रावण द्वारा की गई थी।