Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Jun, 2024 07:28 AM
अच्छे और बुरे कर्म को पहचानना न तो किसी संत के बस की बात है और न ही किसी ज्ञानी के बस की बात है । साधारण इंसान तो इसको जानता ही नहीं है । हर संत-महात्मा, ज्ञानी और साधारण मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के लिए
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Good and bad karma: अच्छे और बुरे कर्म को पहचानना न तो किसी संत के बस की बात है और न ही किसी ज्ञानी के बस की बात है । साधारण इंसान तो इसको जानता ही नहीं है । हर संत-महात्मा, ज्ञानी और साधारण मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के लिए बुरे कर्म को ही अपनी इच्छा अनुसार अच्छा बना लेता है । जिस प्रकार कर्ण, गुरु द्रोणाचार्य और कृपाचार्य ने अपने बुरे कर्म को और दुर्योधन के नमक के बदले अच्छे कर्म में बदलने की कोशिश की थी ।
बुरे कर्म वो कर्म होते हैं जिनको करने बाद भय लगता है और रात को नींद नहीं आती है । उन कर्मों को करने के बाद आपको नकली आनंद की अनुभूति तो अवश्य होती है लेकिन मन में भय रहता है । अच्छे कर्म वो होते हैं जिनको करने के बाद आपको न तो भय लगता है और रात को चैन और आनंद की नींद आती है ।
बुरे और अच्छे कर्मों का फैसला दो प्रकार से होता है । एक तो सरकार और समाज फैसला करता है और दूसरा भगवान फैसला करता है । जो फैसला समाज और सरकार करती है वो तो गलत भी हो सकता है पर जो फैसला भगवान करता है वो कभी गलत नहीं होता है। बुरे कर्मों का आधार भूख, धन, स्त्री, जमीन, सत्ता, यश, ईर्ष्या और शक्ति मुख्य तौर पर होते हैं। इस सबकी प्राप्ति लिए मनुष्य बुरे और अच्छे कर्म करता है ।
अगर आप भूख से तड़फ रहे हैं तो आपको पेट भरने के लिए बुरे या अच्छे कर्म करने होंगे। अगर आपने किसी का भोजन छीना और खा लिया तो बुरा कर्म हो जाएगा । यह छीना हुआ भोजन आपकी आत्मा स्वीकार नहीं करेगी तथा यह बुरा कर्म आपके चित में संचित हो जाएगा । आप बुरे कर्म करके धन कमाते हो जैसे आपने किसी का अपहरण किया, चोरी की, रिश्वत ली या डकैती डाली । ऐसा धन आपके बुरे कर्मो की श्रेणी में चला जाएगा । ऐसे धन से आपकी आत्मा डर जाएगी और हमेशा डर लगता रहेगा।
सबसे ज्यादा बुरे कर्म तो स्त्री को लेकर ही होते हैं क्योंकि स्त्री की आत्मा का संबंध तो सीधे-सीधे आपके कर्म के साथ होता है । इसी प्रकार हम जमीन और जायदाद को लेकर बुरे कर्म करते हैं । दूसरे के मकान पर और जमीन को कब्जा कर लेते हैं, इसके कारण जो आत्मा की बद्दुआ लगती है वो भी बुरे कर्म के खाते में चली जाती है । इसी प्रकार सत्ता प्राप्ति के लिए हम जघन्य बुरे कर्म करते हैं । अपने निहित स्वार्थ के लिए लाखों लोगों की हत्या कर देते हैं या करवा देते हैं ।
इसी प्रकार हम अपने यश और शक्ति को बढ़ाने के लिए दूसरे लोगों के यश और शक्ति को कुचलते हैं । अपने को हम श्रेष्ठ बताते हैं और दूसरों को नकारा या अज्ञानी बताते हैं । एक दूसरे के ज्ञान पर ईर्ष्या से अंधे होकर कटाक्ष करते हैं । ये सभी घोर और जघन्य बुरे कर्मो की श्रेणी में आते हैं ।
बुरे और अच्छे कर्म का निर्धारण करने के लिए आप महीने में सिर्फ एक बार ध्यान में योग में साधना में मरने की कल्पना करो कि मैं मर रहा हूं । जब आपको लगेगा कि मैं मर रहा हूं और मेरे प्राण निकलने वाले हैं । तो उस समय आपके 1 महीने के सभी बुरे कर्म और अच्छे कर्म आपके पास आ जाएंगे और आपकी चारपाई के चारों तरफ घेरा बना लेंगे । आपको चिल्ला-चिल्ला कर बताएंगे कि क्या-क्या बुरा कर्म किया है आपने इस महीने में और मौत के वक्त आप बुरी तरह से उन बुरे और जघन्य कर्मों के डर से भयभीत हो जाएंगे ।
आपको मरने से डर लगेगा । इसी प्रकार आपके सभी अच्छे कर्म भी आपके चारों तरफ खड़े होंगे और बोल रहे होंगे जाओ खुश होकर मरो आपने दुनियां के लिए अच्छे कर्म किये हैं । आपको स्वर्ग मिलेगा और चैन से मृत्यु को प्राप्त करोगे । जब भय के कारण मृत्यु होती है तो आत्मा का जाने का रास्ता बुरे मार्ग से होता है और जब प्रसन्न मुद्रा में मृत्यु होती है तो आत्मा का जाने रास्ता अच्छे मार्ग से होता है । अपने बुरे और अच्छे कर्मो का विश्लेषण रोजाना सोने से पहले अवश्य करना चाहिए । ऐसा करने से आपके जीवन में आनंद कूट-कूट कर भर जाएगा ।
डॉ एच एस रावत (वैदिक और आध्यात्मिक फिलॉस्फर)