Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Mar, 2025 07:36 AM

Hanuman Jayanti 2025: सनातन धर्म में बहुत सी ऐसी बातों का वर्णन किया गया है, जिन्हें जानकर आम जनमानस हैरान हो जाता है। संसार में बहुत से भक्त हुए हैं जिन्होंने प्रभु प्रेम में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया लेकिन हनुमान जी का स्थान सबसे ऊंचा है। श्रीराम...
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Hanuman Jayanti 2025: सनातन धर्म में बहुत सी ऐसी बातों का वर्णन किया गया है, जिन्हें जानकर आम जनमानस हैरान हो जाता है। संसार में बहुत से भक्त हुए हैं जिन्होंने प्रभु प्रेम में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया लेकिन हनुमान जी का स्थान सबसे ऊंचा है। श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी का श्रीरामायण में विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यह ही जानते हैं की हनुमान जी ने अपना सारा जीवन श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दिया व ब्रह्मचार्य का पालन किया।
शास्त्रों में उनके विषय में एक ऐसा रहस्य भी प्राप्त होता है, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को होगी। हनुमान जी के 5 विवाहित सगे भाई थे। उनका भरा-पूरा परिवार था।
'ब्रह्मांडपुराण' में वानरों की वंशावली का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। उसी के अनुसार हनुमान जी के सगे भाईयों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। हनुमान जी अपने भाईयों में सबसे बड़े थे, उनके 5 अनुज भाई थे जिनके नाम- मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। उनके सभी भाई गृहस्थ थे और सभी संतान से युक्त थे।

शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि हनुमान जी को कभी भी पारिवारिक सुख नहीं मिल पाया और न ही कभी उनका गृहस्थ जीवन शुरू हो पाया। हनुमान जी के जीवन का उद्देश्य प्रभु दासता और ईश्वरीय शक्ति की सत्यता को साधना ही रहा। धन्य है ऐसे हनुमान जो राज-पाठ, सुख-वैभव, भोग-विलासिता से दूर वनों में दुख व कष्ट सहकर राम नाम रमते रहे।

'ब्रह्मांडपुराण' में हनुमान जी और उनके भाईयों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इसके अनुसार, हनुमान महाऋषी गौतम की पुत्री अप्सरा पुंजिकस्थली अर्थात अंजनी के गर्भ से पैदा हुए। माता-पिता के कारण हनुमान जी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरी जी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे। अंजना अपनी युवा अवस्था में केसरी से प्रेम करने लगी। जिससे वह वानर बन गई तथा उनका विवाह वानर राज केसरी से हुआ।

एक बार राजा केसरी पत्नी अंजनी जब श्रृंगारयुक्त वन में विहार कर रही थीं तब पवन देव ने उनका स्पर्श किया, जैसे ही माता कुपित होकर शाप देने को उद्यत हुईं, वायुदेव ने अति नम्रता से निवेदन किया ‘‘मां! शिव आज्ञा से मैंने ऐसा दु:साहस किया परंतु मेरे इस स्पर्श से आपको पवन के समान द्युत गति वाला एवं महापराक्रमी तेजवान पुत्र होगा।’’
इसी पवन वेग जैसी शक्ति युक्त होने से सूर्य के साथ उनके रथ के समानांतर चलते-चलते अनन्य विद्याओं एवं ज्ञान की प्राप्ति करके अंजनी पुत्र पवन पुत्र हनुमान कहलाए।