Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Dec, 2024 09:25 AM
Religious Katha: एक कंजूस धनिक ने ख्याति अर्जित करने के लालच में भूखों के लिए भंडारा शुरू किया। वह अपने अनाज के गोदाम में घुन लगे आटे से रोटियां बनवाकर गरीबों को खिलाता। गले और सड़े आटे की रोटियां खाकर लोग बीमार पड़ने लगे।
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Religious Katha: एक कंजूस धनिक ने ख्याति अर्जित करने के लालच में भूखों के लिए भंडारा शुरू किया। वह अपने अनाज के गोदाम में घुन लगे आटे से रोटियां बनवाकर गरीबों को खिलाता। गले और सड़े आटे की रोटियां खाकर लोग बीमार पड़ने लगे। उस व्यक्ति के पुत्र का विवाह हुआ। धनिक की पुत्रवधू एक दानी व धार्मिक परिवार की संस्कारी बेटी थी। उसे अपने श्वसुर की यह बात अच्छी नहीं लगी कि झूठी शान के लालच में वह गरीबों को गले-सड़े अनाज की रोटियां खिलाएं।
Significance of Donation in Hinduism: एक दिन उसने गोदाम से ज्वार का आटा मंगवाया तथा उसी की रोटियां बनाकर अपने श्वसुर की थाली में परोस दीं। श्वसुर ने जैसे ही रोटी का कौर मुंह में रखा कि थू-थू करते हुए बोले, ‘‘बेटी हमारे घर में गेहूं का बढ़िया आटा भरा पड़ा है, फिर तूने खराब और कड़वे आटे की रोटियां क्यों बनाई हैं?’’
बहू विनम्रता से बोली, ‘‘पिताजी, आपके द्वारा संचालित भंडारे में ज्वार के इसी आटे की रोटियां बनाई जाती हैं जो भूखों को दी जाती हैं। परलोक में वही मिलता है जो यहां दान में दिया जाता है। आपको वहां इसी कड़वे आटे की रोटियां मिलनी हैं। आपको इन्हें खाने की आदत पड़ जाए इसीलिए मैंने खराब आटे की रोटियां बनाकर दी हैं।’’
सेठ जी इन शब्दों को सुनकर अवाक रह गए। उसी समय उन्होंने भंडारे का सड़ा आटा फिंकवा दिया तथा गेहूं के अच्छे आटे की रोटियां बनवाकर भूखों को खिलाने लगे।