Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Dec, 2024 01:00 AM
Inspirational Story: बंगाल में द्वारका नदी के तट पर तारापीठ नामक एक प्रसिद्ध स्थान है। वहां पर तारा देवी का भव्य मंदिर है। किसी समय में एक जमींदार व्यक्ति तारा देवी के दर्शन करने के लिए वहां पर आया। दर्शन करने के पूर्व जमींदार ने नदी में स्नान कर...
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Inspirational Story: बंगाल में द्वारका नदी के तट पर तारापीठ नामक एक प्रसिद्ध स्थान है। वहां पर तारा देवी का भव्य मंदिर है। किसी समय में एक जमींदार व्यक्ति तारा देवी के दर्शन करने के लिए वहां पर आया। दर्शन करने के पूर्व जमींदार ने नदी में स्नान कर अपनी नित्य पूजा करने का निश्चय किया और स्नान करने के बाद वह नदी के तट पर बैठकर पूजा-पाठ करने लगा। उसी समय प्रसिद्ध अघोरी संत वामाक्षेपा नदी में स्नान कर रहे थे। वामाक्षेपा हंसते हुए जमींदार के ऊपर जल के छींटे डालने लगे। उस जमींदार को पता नहीं था कि जल फैंकने वाला सज्जन संत वामाक्षेपा है।
जमींदार के मुंह से निकला, ‘‘क्या अंधे हो? मैं यहां पूजा-पाठ कर रहा हूं और तुम उसमें विघ्न डाल रहे हो।’’
वामाक्षेपा बोले, ‘‘तुम पूजा-पाठ कर रहे हो या कलकत्ते की मूर कम्पनी में बैठकर जूते खरीद रहे हो।’’
कलकत्ते की मूर कम्पनी उन दिनों जूतों की प्रसिद्ध कम्पनी थी। इतना कहने के बाद भी वामाक्षेपा उन पर जल डालते रहे, किंतु अब व्यक्ति का क्रोध शांत हो गया था। उनको लगा यह कोई बहुत बड़े संत हैं जो मनुष्य के मन की बात जान लेते हैं। मनुष्य की सोच पहचान लेते हैं। वह समझ गए कि यह कोई असाधारण संत हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हां, महाराज, मैं यही सोच रहा था कि पूजा-पाठ करने के बाद मूर कम्पनी के जूते खरीद कर घर लौटूंगा। आपको यह सब कैसे मालूम हुआ ? पूजा के साथ-साथ यही विचार मेरे मन में चल रहा था।’’
यह कहते हुए जमीदार संत के चरणों में नतमस्तक हो गए। संत ने जवाब दिया कि दैव कार्य में दंभ नहीं करना चाहिए। ईश्वर पूजा में ध्यान एकाग्रता से लगाना चाहिए, तभी पूजा-अर्चना का फल हमें प्राप्त होता है। यह कह कर संत वामाक्षेपा मंदिर की ओर चले गए।