Edited By Lata,Updated: 12 May, 2019 12:24 PM
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व्यष्टि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है।
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व्यष्टि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्राय: शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रामाला, पीत-पुष्प एवं पीतवस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका आठवां स्थान है। इनके ध्यान में बताया गया है कि ये सुधा समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराज रही हैं। ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है।
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स्वतंत्र तंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है- सत्युग में सम्पूर्ण जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर आए संकट को देख कर भगवान महाविष्णु चितिंत हो गए। वह सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्या ने उस सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तम्भन कर दिया। बगलामुखी महाविद्या भगवान विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी है। मंगलवार युक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शांति, धन-धान्य के लिए पौष्टिक कर्म एवं आभिचारिक कर्म के लिए भी होता है। यह भेद केवल प्रधानता के अभिप्राय: से है, अन्यथा इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती है।
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यजुर्वेद की काठक संहिता के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुंदर स्वरूप धारिणी ‘विष्णुपत्नी’ त्रिलोक जगत की ईश्वरी मानोता कही जाती है। स्तम्भनकारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वी रूपा शक्ति है। बगला उसी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। शक्ति रूपा बगला की स्तम्भन शक्ति से द्युलोक वृष्टि प्रदान करता है। उसी से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है और उसी से स्वर्ग लोक भी स्तम्भित है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में ‘विष्टभ्याहमिंद कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत’ कह कर उसी शक्ति का समर्थन किया है। तंत्र में वही स्तम्भन शक्ति बगलामुखी के नाम से जानी जाती है।
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श्री बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता है। पारलौकिक देश अथवा समाज में दुखद अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के समान कोई मंत्र नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं। इनके बडवामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पांच मंत्रभेद हैं। कुण्डिकातंत्र में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मुंडमाला तंत्र में तो यहां तक कहा गया है कि इनकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है।
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सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया। सनत्कुमार ने देवर्षि नारद को और नारद ने सांख्यायन नामक परमहंस को इसका उपदेश किया। सांख्यायन ने छत्तीस पटलों में उपनिबद्ध बगलातंत्र की रचना की। बगलामुखी के दूसरे उपासक भगवान विष्णु और तीसरे उपासक परशुराम हुए।
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