सीता स्वयंवर में तोड़े गए धनुष का क्या था रहस्य , जानें

Edited By Lata,Updated: 21 Feb, 2019 11:55 AM

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हिंदू धर्म में रामायण (Ramayan) एक ऐसा ग्रंथ हैं जिसके प्रसंगों को पढ़ने या सुनने से ही व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है। वैसे तो रामायण का हर एक प्रसंग ही मन को मोहित करने वाला है। लेकिन आज हम बात करेंगे राम और सीता के स्वयंवर (Sita Swayamvar) से...

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हिंदू धर्म में रामायण (Ramayan) एक ऐसा ग्रंथ हैं जिसके प्रसंगों को पढ़ने या सुनने से ही व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है। वैसे तो रामायण का हर एक प्रसंग ही मन को मोहित करने वाला है। लेकिन आज हम बात करेंगे राम और सीता के स्वयंवर (Sita Swayamvar) से जुड़े एक प्रसंग के बारे में। जिसमें श्री राम द्वारा तोड़े गए धनुष को लेकर कुछ रहस्य बताए गए हैं, जो शायद ही किसी को पता हो। तो चलिए हम बात करते हैं इस प्रसंग के बारे में-

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राजा जनक भगवान शिव के वंशज थे और भोलेनाथ का धनुष उनके राज महल में रखा था। एक बार महाराज जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर की घोषणा का साथ ये भी एलान कर दिया कि जो धनुष की प्रत्यंचा को चढ़ा देगा, उसी से मेरी पुत्री सीता का विवाह होगा। शिव धनुष कोई साधारण धनुष नहीं था बल्कि उस काल का ब्रह्मास्त्र था। शंकर जी का परम भक्त रावण भी उस धनुष को पाने के लिए मां सीता के स्वयंवर में आया था। उसको इस बात पर भरोसा था कि शिव भक्त होने के कारण वह धनुष तो हासिल करेगा और साथ ही माता सीता भी उसी की होगी। 
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उस चमत्कारिक धनुष के संचालन की विधि राजा जनक, माता सीता, आचार्य श्री परशुराम और आचार्य श्री विश्वामित्र को ही ज्ञात थी। जनक राज को इस बात का डर सताने लगा था कि अगर धनुष रावण के हाथ लग गया तो इस सृष्टि का विनाश हो जाएगा। इसलिए विश्वमित्र ने पहले ही भगवान राम को उसके संचालन की विधि बता दी थी। जब श्री राम द्वारा वह धनुष टुट गया तभी परशुराम जी को बहुत क्रोध आया लेकिन आचार्य विश्वामित्र एवं लक्ष्मण के समझाने के बाद कि वह एक पुरातन यन्त्र था इसलिए संचालित करते ही टूट गया तब जाकर श्री परशुराम का क्रोध शांत हुआ।
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वह धनुष साधारण नहीं था वह शिवजी का धनुष और उस ज़माने का आधुनिक परिष्कृत नियुक्लियर वेपन था। जब ऋषि-मुनियों को पता चला कि शिव धनुष पर रावण की दृष्टि हैं तभी उन्होंने विचार किया कि इसको गलत हाथों में नहीं जाने देना चाहिए वरना भयंकर विनाश हो सकता है। तो इसलिए धनुष को नष्ट करने का आयोजन करने के लिए सही व्यक्ति चुनने का निर्णय ऋषि विश्वामित्र को दिया गया और तब सीता स्वयंवर का आयोजन हुआ और प्रभु श्रीराम जी द्वारा वह नष्ट किया गया। 
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