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नारद मुनि के घमंड को चकना चूर करने के लिए लिया था श्री हरि ने ये अवतार

Edited By Jyoti,Updated: 11 Feb, 2020 02:59 PM

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हिंदू धर्म में तीन प्रमुख देवता हैं, जिन्हें त्रिदेव के नाम से जाना जाता है जो हैं, भगवान विष्ण, ब्रह्मा तथा देवों के देव महादेव भगवान। शास्त्रों में इनके कई अन्य अवतार बताए गए हैं,

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हिंदू धर्म में तीन प्रमुख देवता हैं, जिन्हें त्रिदेव के नाम से जाना जाता है जो हैं, भगवान विष्ण, ब्रह्मा तथा देवों के देव महादेव भगवान। शास्त्रों में इनके कई अन्य अवतार बताए गए हैं, जिनके अवतरण के पीछे कोई न कोई अहम कारण रहा है। आज हम बात करने वाले हैं भगवान विष्णु के ही एक ऐसे अवतार के बारे में जिससे जुड़ी एक ऐसी कथा प्रचलित है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। बल्कि हो सकता है इस तथ्य के बारे में शायद ही कभी किसी ने सुना होगा।

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हम बात कर रहे हैं भगवान विष्णु के श्री राम अवतार के बारे में, जिसके बारे में सब यही जानते हैं कि श्री हरि ने ये अवतार रावण का वध करने के लिए लिया था। मगर ऐसा नहीं है असल में श्री राम के रूप में त्रेता युग में जन्म लेने के पीछे का एक कारण नारद मुनि से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि के अहम को चकना चूर करने के लिए उन्होंने श्री राम बनकर त्रेता युग में राजा दशरथ के घर में जन्म लिया था।

आइए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा-
एक बार की बात है देवर्षि नारद को घमंड हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सके। नारद जी ने यह बात शिव जी को बताई। भगवान शंकर को इस बात का अच्छे से ज्ञात हो गया था कि देवर्षि नारद अभिमानी हो गए हैं। उनके अंहकार भरे शब्दों को सुनने के बाद भोलेनाथ ने देवर्षि नारद से कहा कि आप कृप्या भगवान श्री हरि के समक्ष अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना। इतना सुनकर नारद जी वहां से शिव जी की आज्ञा लेकर भगवान विष्णु के पास गए। परंतु शिव जी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्री हरि को पूरा प्रसंग सुना दिया। जिससे साफ़ पता चल रहा था कि नारद भगवान विष्णु के सामने भी अपना घमंड प्रदर्शित कर रहे थे।

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उनके अंहकार को देखते हुए श्री हरि ने सोचा कि इनमें घमंड के लक्षण होना कोई अच्छी बात नहीं है। इसलिए इनके अहम को मुझे ही तोड़ना होगा। एक बार जब नारद कहीं जा रहे थे, तब रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही उस पर मोहित हो गए। असल में ये सारी भगवान श्री हरि की माया थी।

राजकुमारी का रूप और सौंदर्य नारद मुनि के तप को भंग कर चुका था। इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बना लिया। नारद मुनि भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए, जिससे कि राजकुमारी स्वयंवर में मुझे ही पति के रूप में चुने। भगवान ने ऐसा ही किया, परंतु जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। इस स्वयंवर में दो भगवान शिव के गण भी थे जो ब्राह्मण का वेष बनाकर यह सब देख रहे थे।

जैसे ही राजकुमारी स्वयंवर में आई तो बंदर के मुख वाले नारद जी को देखकर क्रोधित हो गई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा के रूप में वहां आए। सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुना लिया। यह देखकर शिव गण नारद जी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए, फिर राजकुमारी से विवाह का सोचना। जब नारदजी ने अपना चेहरा वानर के समान पाया तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। क्रोधित होकर उन्होंने नारद मुनि के शिव गणों को राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

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शिवगणों के क्षमा मांगने के बाद नारद मुनि ने उन्हें कहा कि तुम दोनों की राक्षय योनि में मृत्यु स्वयं भगवान विष्णु के हाथो होगी, जिसके बाद तुम्हें मोक्ष मिलेगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्हीं दोनों शिवगणों ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया था।

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