मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगः दर्शन मात्र से ही होती है हर मनोकामना पूरी

Edited By Lata,Updated: 25 Jul, 2019 11:34 AM

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जैसे कि हम पहले बता चुके हैं कि हमारे देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं और कल हमने पहला ज्योतिर्लिंग, सोमनाथ के बारे में बात की थी।

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जैसे कि हम पहले बता चुके हैं कि हमारे देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं और कल हमने पहला ज्योतिर्लिंग, सोमनाथ के बारे में बात की थी। ऐसे ही आज हम बता करेंगे दूसरा ज्योतिर्लिंग, जिसे श्री मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाता है। कहते हैं सावन के माह में अगर कोई इंसान किसी एक भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन ही कर लेता है तो उसके सारे पाप दूर हो जाते हैं। 
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श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट, पवित्र श्री शैल पर्वत पर स्थित है और जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। शिवपुराण की मान्याता के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिव तथा पार्वती दोनों का सयुंक्त रूप है। मल्लिका का अर्थ है पार्वती और अर्जुन शब्द शिव का वाचक है। इस प्रकार से इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों की ज्योतियां समाई हुई हैं। आइए जानते हैं, इससे जुड़ी कथा के बारे में। 

शिव पुराण की कथा के मुताबिक जब श्रीगणेश और कार्त्तिकेय पहले विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे। तो भगवान शिव ने कहा जो पहले पृथ्वी का चक्कर लगाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। गणपति ने अपनी सुझ-बुझ के साथ अपने माता-पिता के ही चक्कर लगा लिए, लेकिन जब कार्त्तिकेय पूरी पृथ्वी के चक्कर लगाने के बाद लौटा तो गणेश को पहले विवाह देखकर वह शिव-पार्वती से नाराज़ हो गए और क्रोंच पर्वत पर चले गए। अनेकों देवताओं ने भी कुमार कार्तिकेय को लौटने के लिए आग्रह किया। किंतु कुमार ने सबकी प्रार्थनाओं को अस्वीकार कर दिया। माता पार्वती और भगवान शिव पुत्र वियोग के कारण दुःख का अनुभव करने लगे और फिर दोनों स्वयं क्रोंच पर्वत पर चले गए। माता-पिता के आगमन को जान कर स्नेहहीन हुए कुमार कार्तिकेय और दूर चले गए। अंत में पुत्र के दर्शन की लालसा से जगदीश्वर भगवान शिव ज्योति रूप धारण कर उसी पर्वत पर विराजमान हो गए। उस दिन से ही वहां प्रादुर्भूत शिवलिंग मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ। शास्त्रों के अनुसार पुत्र स्नेह के कारण शिव-पार्वती प्रत्येक पर्व पर कार्तिकेय को देखने के लिए जाते हैं। अमावस्या के दिन स्वयं भगवान वहां जाते हैं और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती जाती हैं।
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एक अन्य कथा के अनुसार इसी पर्वत के पास चन्द्रगुप्त नामक राजा की राजधानी थी। एक बार उसकी कन्या किसी विशेष विपत्ति से बचने के लिए अपने पिता के महल से भागकर इस पर्वत पर चली गई। वह वहीं ग्वालों के साथ कंद-मूल एवं दूध आदि से अपना जीवन निर्वाह करने लगी। उस राजकुमारी के पास एक श्यामा गाय थी, जिसका दूध प्रतिदिन कोई दुह लेता था। एक दिन उसने चोर को दूध दुहते देख लिया, जब वह क्रोध में उसे मारने दौड़ी तो गौ के निकट पहुंचने पर शिवलिंग के अतिरिक्त उसे कुछ न मिला। बाद में शिव भक्त राजकुमारी ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और तब से भगवान मल्लिकार्जुन वहीं प्रतिष्ठित हो गए।
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कहते हैं कि मल्लिकार्जुन-शिवलिंग का दर्शन-पूजन एवं अर्चन करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। वह सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होते हैं और इसके साथ ही उन्हें अनंत सुखों की प्राप्ति होती हैं।

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